पुराने कपड़े लाओ, नए ले जाओ
२७ फ़रवरी २०१३स्वीडन की रेडिमेड कपड़ों की नामी कंपनी एचएंडएम यूरोप और अमेरीका में बेहद लोकप्रिय है. कंपनी जल्द ही भारत में भी अपने स्टोर खोलने की तैयारी में है. युवाओं में इसकी लोकप्रियता की वजह यह भी है कि दूसरे बड़े ब्रांड की तुलना में यहां सस्ते दाम पर कपड़े मिलते हैं. अब इन्हें और सस्ता करने के लिए एचएंडएम ने नई मुहीम चलाई है.
हालांकि कंपनी खुद इसका बहुत ज्यादा प्रचार नहीं कर रही, पर दुनिया भर में इन स्टोर में 'एचएंडएम कॉनशस' का बड़ा सा बोर्ड लगा है और उसके पास गत्ते का एक डिब्बा रख दिया गया है, जिसमें पुराने कपड़े डाले जा सकते हैं. ये कपड़े किसी भी ब्रांड के हो सकते हैं और किसी भी हालत में. यदि आप एक थैला भर कर कपड़े लाते हैं तो बदले में आपको 15 फीसदी छूट का कूपन मिलता है.
पर्यावरण को फायदा?
लेकिन इस पहल का मकसद क्या है? एचएंडएम का कहना है कि वह पर्यावरण की रक्षा चाहता है. पर कपड़े जमा करने से यह कैसे होगा? कंपनी का दावा है कि इन कपड़ों को रीसाइकिल किया जाएगा. भारत में पुराने कपड़े फेंकने का चलन नहीं है. कपड़े तंग हो जाएं तो उन्हें छोटे भाई बहनों को दे दिया जाता है. पहनने लायक न बचें तो उन्हें बर्तनों से बदलने का भी रिवाज है. गली में बर्तन बेचने वालों का आना भारत में आम बात है, पर पश्चिमी देशों के लिए यह अनोखा है, क्योंकि यहां पुराने कपड़ों को फेंक दिया जाता है.
जर्मनी में रीसाइकिल के लिए कूड़े को छांटा जाता है. घरों के बाहर प्लास्टिक, कागज, बोतलों और किचन के कूड़े के लिए अलग अलग कूड़ेदान होते हैं. कई मुहल्लों में एक बड़ा सा कूड़ेदान कपड़ों के लिए भी होता है. अधिकतर ये बड़े बड़े कंटेनर रेड क्रॉस जैसी संस्थाएं रख जाती हैं. इनका उद्देश्य होता है पुराने कपड़े जमा कर गरीब देशों में जरूरतमंदों में बांटना. कपड़ों के साथ जूते और खिलौने भी जमा किए जाते हैं. पर देश भर में ऐसे हजारों कंटेनर भी पड़े हैं जो एक बड़े घोटाले की ओर इशारा करते हैं. आरोप लगते आए हैं कि कुछ संस्थाएं नेक काम का बहाना कर कपड़े और जूते जमा तो कर लेती हैं, लेकिन फिर उन्हीं कपड़ों को बाजार में बेचा जाता है.
मुनाफा ही मुनाफा
जर्मनी में गर्मी के मौसम में फ्ली मार्केट यानी कबाड़ी बाजार लगते हैं. इन बाजारों में लोग अपने ही घर का पुराना सामान बेचने आते हैं. इन बाजारों में अधिकतर परिवारों को हिस्सा लेते देखा जाता है. लेकिन यहां कुछ पुराने कपड़ों की दुकानें भी मिल जाएंगी. यहां बहुत ही कम कीमत में कपड़े मिल जाते हैं और युवा लोग इनसे खासा आकर्षित होते हैं. आरोप है कि ये वही कपड़े होते हैं जिन्हें कंटेनरों में गरीबों की मदद के नाम पर इकट्ठा किया जाता है.
रेड क्रॉस के डीटर शुत्स बताते हैं कि हर टन पुराने कपड़े से 250 यूरो (करीब 18,000 रुपये) का मुनाफा हो सकता है. उनके अनुसार जर्मनी में हर साल 10 लाख टन कपड़े फेंके जाते हैं. इससे अंदाजा लग सकता है कि यह "कारोबार" कितना बड़ा है. इस तरह की रिपोर्टों के बाद एचएंडएम पर सवाल उठना लाजिमी है. एक ओर पुराने कपड़ों को बेच कर और दूसरी ओर छूट की आड़ में बिक्री बढ़ा कर. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि दाम कम कर देने से एचएंडएम नुकसान में नहीं जाएगा क्योंकि कंपनी इन कपड़ों को भारत और बांग्लादेश में बनवाती है और अपने स्टोर में लागत के मुकाबले बहुत ज्यादा दाम रखती है.
रिपोर्टः ईशा भाटिया/रेचल बेग
संपादनः ए जमाल