पारसी समुदाय के अस्तित्व पर संकट
२७ दिसम्बर २०१३भारत के मुंबई शहर में शुक्रवार को चार दिन के विश्व जरथुश्ट्र कांग्रेस में दुनिया भर से करीब 1000 पारसी लोग इकट्ठा हो रहे हैं. उनकी चर्चा के केंद्र में यह बात होगी कि समुदाय के सिमटते आकार को और छोटा होने से कैसे रोका जाए.
पारसी धर्म दुनिया के कुछ सबसे पुराने धर्मों में से एक है. इस समुदाय के लोग फारसी लोगों के वंशज हैं. वह इलाका आजकल ईरान के नाम से जाना जाता है. ये लोग करीब 1000 साल पहले ही फारस में उन पर ढाए जा रहे अत्याचारों से बचने के लिए अपना देश छोड़कर भारत आ गए थे. ये समुदाय आगे चलकर भारत के सबसे अमीर लोगों का समूह बना, जिनका मुंबई के विकास में भी बड़ा योगदान माना जाता है. पारसी समुदाय के चमकते सितारों में उद्योगपति टाटा समूह से लेकर रॉकस्टार फ्रेडी मर्करी तक शामिल हैं. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले फिरोजशाह मेहता, दादा भाई नौरोजी और भीकाजी कामा भी पारसी ही थे.
घटती जा रही है आबादी
लेकिन पारसी समुदाय के सामने अब ये समस्या मुंह बाए खड़ी है कि घटती जनसंख्या के साथ साथ अपने धर्म और संस्कृति को कैसे बचाया जाए. मुम्बई में पारसी समुदाय के लिए पारसीआना नाम की पत्रिका के संपादक जहांगीर पटेल कहते हैं, "जनसंख्या के लिहाज से आप ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. ये कम होते होते एक दिन गायब ही हो जाएगी."
जरथुश्ट्र संप्रदाय के लोग एक ईश्वर को मानते हैं जो 'आहुरा माज्दा' कहलाते हैं. ये लोग प्राचीन पैगंबर जरथुश्ट्र की शिक्षाओं को मानते हैं. पारसी लोग आग को ईश्वर की शुद्धता का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए आग की पूजा करते हैं. वे ईरान, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे बहुत से देशों में फैले हुए हैं. दुनिया भर में इनकी औसत संख्या 2004 से 2012 के बीच 10 प्रतिशत से भी ज्यादा गिर कर 112,000 से भी कम रह गई है.
देर से करते हैं शादी
भारत जरथुश्ट्र लोगों का सबसे बड़ा घर है. यहां भी उनकी संख्या 1940 से घटकर आधी रह गई है और अब सिर्फ 61,000 के करीब है. हर साल मुंबई में करीब 850 पारसी लोगों की मृत्यु होती है और उसके मुकाबले सिर्फ 200 बच्चों का जन्म. इस अंतर के पीछे सबसे बड़ी वजह ये बताई जा रही है कि ज्यादातर खूब पढ़े लिखे और समृद्ध परिवेश से आने वाले पारसी लोगों का शादी और बच्चे पैदा करने की तरफ कम झुकाव होता है. यही कारण है कि अब खुद भारत सरकार तेजी से बढ़ती हुई देश की कुल आबादी के बावजूद पारसी लोगों की सीमित होती संख्या पर खास ध्यान दे रही है. सरकार पारसी समुदाय के लिए कृत्रिम गर्भधारण की आईवीएफ योजना को बढ़ावा देना चाहती है. मुंबई की एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ अनाहिता पांडोले कहती हैं कि पारसी लोग अक्सर 35 से 40 की उम्र में जाकर बच्चे पैदा करने के बारे में सोचते हैं, "ये सही दिशा में एक कदम है."
वंश चलाने में दोहरी नीति
पारंपरिक रूप से बाहर की दुनिया से खुद को अलग थलग रख कर पारसी लोगों के अपने समुदाय की पहचान बचा कर रखने की कोशिश की है. अब जब उनकी संख्या घटती जा रही है तब भी वे बाहर के लोगों को अपने साथ मिलाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. एक पारसी जरथुश्ट्र पुरूष ही अपने वंश को आगे बढ़ाता है. अगर एक पारसी महिला अपने समुदाय से बाहर के किसी व्यक्ति से विवाह करती है तो उसके बच्चों को पारसी लोगों के पूजा स्थल या अंतिम संस्कार की जगह 'टावर्स ऑफ साइलेंस' में जाने की अनुमति नहीं मिलती.
'टावर्स ऑफ साइलेंस' में पारसी लोगों की मृत्यु के बाद शव को ऐसे रखा जाता है ताकि गिद्ध उनके मृत शरीर को अपना भोजन बना सकें. पटेल कहते हैं कि यहां भी भेदभाव हो रहा है, "यहां तो नस्लभेद की राजनीति हो रही है. ये नस्ल और लिंग के आधार पर किया गया भेदभाव ही तो है."
वहीं परंपरावदियों का मानना है कि ये नियम उनकी पहचान को बचाए रखने के लिए जरूरी हैं. पारसियों का एक प्रमुख संगठन, द बॉम्बे पारसी पंचायत, मुम्बई के कुछ सबसे बड़े मकान मालिकों में से एक है. ये पंचायत 5,500 मकानों को सस्ती दरों पर सिर्फ पारसी समुदाय के लोगों को मुहैया कराती है जबकि समुदाय के बाहर शादी करने वालों को इसका फायदा नहीं मिल सकता. पंचायत के ट्रस्टी खोजेस्टे मिस्त्री कहते हैं, "अगर हमारे समुदाय के लोग बाहर शादी करते हैं तो उनकी चार पुश्तों में तो समुदाय की जातीयता वैसे ही खत्म हो जाएगी." पंचायत ने दो ऐसे पुजारियों को निलंबित कर दिया है जिन्होंने ऐसी महिलाओं के बच्चों के लिए कुछ धार्मिक कर्मकांड किए थे जिन्होंने पारसी समुदाय के बाहर शादी की थी. बाद में मुंबई हाईकोर्ट ने इस फैसले को अमान्य घोषित कर दिया और ये मामला अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय में है.
हो रही है बचाने की पहल
पारसी लोग आपस में मेलजोल को और बढ़ाने के लिए पारसी पिन अप कैलेंडर, स्पीड डेटिंग नाइट्स और बहुत से अन्य सामाजिक आयोजन भी कर रहे हैं. भारत में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने इस साल 'जियो पारसी' नाम की एक योजना भी शुरू की है. इस योजना का मकसद शादीशुदा पारसी जोड़ों को आर्थिक मदद पहुंचाना है जिससे शादी के संस्थान को बढ़ावा मिले.
26 साल की बानेफ्शा श्रॉफ का जन्म अमेरिका में हुआ था लेकिन दो साल पहले ही वह मुंबई में आ बसी हैं. वह पारसी मान्यताओं को पूरी तरह निभाती आई हैं और अब शादी के लिए भी अपने समुदाय में ही लड़का ढूंढना चाहती हैं. मगर श्रॉफ को अपने लायक पारसी लड़का मिलने में काफी दिक्कत पेश आ रही है. उनके समुदाय के लड़के गैर-पारसी लड़कियों से शादी कर के भी समुदाय का हिस्सा बने रहते हैं जबकि अगर वह ऐसा करती हैं तो उन्हें पारसी समाज अपने से अलग कर देगा. "महिलाओं को तो त्याग करना पड़ता है जबकि पुरूषों को लगता है कि उन्हें तो अपना ही लिया जाएगा."
आरआर/एमजे(एएफपी, पीटीआई)