पति के नाम के खिलाफ महिलाओं की जंग
१३ फ़रवरी २०११इन चार महिलाओं के अलावा इन्हीं में से एक का पति भी है. ये लोग 19वीं सदी के आखिर में बनाए गए एक सिविल कोड को खत्म करने की मांग कर रहे हैं. टोक्यो की जिला अदालत में दाखिल केस में इन लोगों ने मानसिक प्रताड़ना झेलने के लिए हर्जाने की भी मांग की है.
2009 में जापान की वामपंथी झुकाव वाली सरकार ने देश के सिविल कोड में बदलाव लाने की कोशिशें की थीं लेकिन दक्षिणपंथी ताकतों के विरोध के आगे ये कोशिशें नाकाम हो गईं. इसके बाद ही इन चार महिलाओं ने अपने नाम वापस पाने के लिए अदालत में जाने की सोची.
जापान में यह मुकदमा काफी अहम हो गया है क्योंकि इसे देश में महिलाओं को सामाजिक बराबरी दिलाने की जंग का हिस्सा माना जा रहा है. जापानी समाज में महिलाओं पर काफी दबाव होता है. खासतौर पर शादी के बाद उनकी मर्जी कम ही चल पाती है. मसलन उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ती है और बच्चों को पालने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होती है. यानी हालात भारत से ज्यादा अलग नहीं हैं.
लेकिन आर्थिक मंदी ने महिलाओं को थोड़ा फायदा पहुंचाया है. मंदी की वजह से महिलाएं शादी के बाद भी नौकरी छोड़ नहीं रही हैं क्योंकि पति की नौकरी का भरोसा कम हो गया है. पर महिलाएं नौकरी के साथ साथ अपना पुराना नाम भी रखना चाहती हैं.
मुकदमा करने वाली चार महिलाओं में से एक क्योको सुकामोतो 75 साल की हैं. वह कहती हैं कि आधी सदी से ज्यादा वक्त तक उन्हें मजबूरन अपने पति का नाम इस्तेमाल करना पड़ा जिससे उन्हें मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा. उन्होंने कहा, "मेरा नाम मेरे वजूद का आईना है. मेरे दिन अब गिनती के बचे हैं. लेकिन मैं क्योको सुकामोतो के रूप में पैदा हुई थी और वैसे ही मरना चाहती हूं."
स्कूल टीचर रहीं सुकामोतो निजी कामों के लिए अपना नाम इस्तेमाल करती हैं लेकिन पासपोर्ट या क्रेडिट कार्ड बनवाने जैसे कानूनी कामों के लिए उन्हें पति का नाम इस्तेमाल करना पड़ता है.
पांचों वादियों ने कुल मिलकर 50 लाख येन का हर्जाना मांगा है. उनकी दलील है कि सिविल कानून संविधान का उल्लंघन करता है क्योंकि संविधान में पति और पत्नी दोनों को बराबर हक दिए गए हैं. जापान के सिविल कोड के आर्टिकल 750 के मुताबिक पति और पत्नी दोनों को एक ही नाम इस्तेमाल करना होता है, जो व्यवहार में लगभग हमेशा पति का नाम होता है. हालांकि कुछ मामले ऐसे हुए हैं जबकि पुरुषों ने अपनी पत्नी का नाम इस्तेमाल किया. लेकिन ऐसा बड़े परिवारों में और कभी कभार ही हुआ है.
यह कानून 1889 में बनाया गया था. जापान ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद अपने संविधान को बदला लेकिन शादी के बाद नाम के लिए बनाए गए कानून में कोई खास बदलाव नहीं हुआ. पहले पति का नाम ही इस्तेमाल करना होता था. बाद में व्यवस्था यह कर दी गई कि पति पत्नी दोनों एक ही नाम इस्तेमाल करेंगे, चाहे किसी का भी हो. जर्मनी में भी ऐसा ही कानून है.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः उभ