पंजाब को मिला पहला दलित मुख्यमंत्री
२० सितम्बर २०२१पंजाब विधान सभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होना है, जिसका मतलब है राज्य में चुनाव होने से पहले मुश्किल से छह महीनों का समय बचा है. चुनाव के इतने नजदीक सत्तारूढ़ पार्टी का मुख्यमंत्री को बदल देना भारतीय राजनीति में नई बात नहीं है, लेकिन अक्सर यह एक चुनौतीपूर्ण कदम होता है.
पंजाब में कांग्रेस पिछले कई महीनों से गहरे मतभेदों से गुजर रहे थी. यह स्थिति चरम पर तब पहुंची जब जुलाई में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ बगावत कर चुके नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी हाई कमान ने प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.
क्या कर सकते हैं अमरिंदर
अमरिंदर ने तब ही अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी और उनके जल्द ही मुख्यमंत्री पद छोड़ देने की अटकलें लगनी शुरू हो गई थीं. उन्हें इस्तीफा देने का मौका देकर पार्टी ने साफ कर दिया है कि पंजाब को लेकर पार्टी की भविष्य की रणनीति में उनकी कोई विशेष जगह बची नहीं है.
अमरिंदर की करीब पांच दशक लंबी राजनीतिक यात्रा के लिए यह निर्णायक मोड़ है, लेकिन इसे उस यात्रा का अंत नहीं माना जा रहा है. अपने इस्तीफे से पहले 79 वर्षीय सिंह भले ही भारत के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री थे, लेकिन वो राजनीति से सेवानिवृत्ति के मूड में नहीं हैं.
उन्होंने खुद कहा है कि कांग्रेस पार्टी में वो अब अपमानित महसूस कर रहे थे और इस्तीफे के बाद अब उनके सामने सभी विकल्प खुले हैं. अटकलें लग रही हैं कि अमरिंदर अब अपनी नई पार्टी शुरू कर सकते हैं. वो ऐसा पहले भी कर चुके हैं.
1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे कर शिरोमणि अकाली दल का दामन थाम लिया था. लेकिन 1992 में उन्होंने अकाली दल भी छोड़ दिया और शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) नाम से एक नई पार्टी की शुरुआत की.
कांग्रेस को खतरा
हालांकि इस पार्टी का भविष्य उज्ज्वल नहीं रहा. 1998 के विधान सभा चुनावों में अमरिंदर के साथ उनकी पार्टी को भी बड़ी हार का सामना करना पड़ा. उसके बाद सिंह कांग्रेस लौट आए और अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.
अगर आने वाले चुनावों पर नजर रखते हुए वो दोबारा एक नई पार्टी खड़ी करते हैं, तो उसका भविष्य क्या होगा यह अभी कहना मुश्किल है. अमरिंदर ना सिर्फ अभी भी एक सक्रिय नेता हैं, बल्कि राज्य के सबसे कद्दावर नेताओं में से हैं.
इसके बावजूद प्रदेश की राजनीति में एक और पार्टी की जगह है या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है. दशकों से कांग्रेस और अकाली दल के बीच झूल रहे पंजाब को 2014 में आम आदमी पार्टी के रूप में एक तीसरा विकल्प मिला.
2017 के विधान सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा और वो विधान सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई. पार्टी अगले चुनावों में और बेहतर प्रदर्शन कर सत्ता हासिल करने की तैयारी कर रही है.
ऐसे में एक नई पार्टी के लिए इतने कम समय में अपने लिए जमीन तैयार करना एक मुश्किल काम होगा. हां, अमरिंदर चुनावों में कांग्रेस को मिलने वाले कुछ वोट काटने का काम जरूर कर सकते हैं. ऐसे में उनके इस्तीफे से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.
चन्नी से उम्मीद
19 सितंबर के पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट हो गया की मुख्यमंत्री पद के लिए चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस का पहला विकल्प नहीं थे. ऐसे में पार्टी के अंदर मौजूद मतभेद और खुल कर सामने आ गए. इसके अलावा चन्नी पूर्वे में कई विवादों में घिरे रहे हैं, जिनके बारे में पार्टी के अंदर और बाहर के कई नेताओं ने जनता को याद कराना शुरू कर दिया है.
एक बड़ा विवाद 2018 में खड़ा हो गया था जब उनके ऊपर एक महिला आईएएस अधिकारी को अश्लील एसएमएस भेजने का आरोप लगा था. प्रदेश में कई दिनों तक उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई. अंत में अमरिंदर ने बयान दिया कि चन्नी ने अधिकारी से माफी मांग ली है.
उसी मामले को एक बार फिर उछालने की कोशिश की जा रही है और प्रदेश में विपक्षी पार्टियां ट्विटर पर चन्नी के खिलाफ अभियान चला रही हैं. इसी बीच चन्नी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पंजाब कांग्रेस के दो और नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओम प्रकाश सोनी को उप मुख्यमंत्री भी बनाया गया है.
चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बन गए हैं इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें चुनकर कांग्रेस ने प्रदेश के करीब 31 प्रतिशत दलित मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है. हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि प्रदेश के दलित मतदाताओं ने पहले कभी भी एक धड़े के रूप में मतदान नहीं किया है. ऐसे में देखना होगा कि चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का कांग्रेस को कितना लाभ मिल पाता है.