नेता को तमाचा जड़ने वाला नेपाल का नया हीरो
२५ जनवरी २०११किसी नेता को थप्पड़ या जूते मारने की राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत इराक में बुश पर जूते फेंकने की घटना के साथ हुई थी, और इस बीच अलग-अलग देशों में इसके अलग-अलग संस्करण सामने आ चुके हैं. आम तौर पर सरकार की नीति से नाराज होकर किसी सरकारी नेता को तमाचे या जूते जड़े जाते हैं, लेकिन खनल को तमाचा इसलिए खाना पड़ा, क्योंकि वे सरकार बनाने में नाकाम रहे हैं. नेपाल की संसद में अवरोध बना हुआ है, चुनाव के बाद पिछले 6 महीने से सरकार नहीं बन पा रही है.
देवी प्रसाद रेगमी पहले कभी खनल की पार्टी एमाले के समर्थक हुआ करते थे. पिछले चुनाव में उन्होंने माओवादियों का समर्थन किया था. लेकिन वे कहते हैं कि अब वे सिर्फ एक मामूली किसान हैं, इस बात से नाराज हैं कि चुनाव के बाद भी ये नालायक नेता सरकार नहीं बना पा रहे हैं. खनल को देखते ही उनके मन में आया कि तमाचा जड़ दिया जाए.
एमाले के स्थानीय नेताओं का कहना है कि यह माओवादियों का सोचा-समझा षड़यंत्र था. माओवादियों के स्थानीय सचिव का कहना है कि उनका इस घटना से कोई लेना-देना नहीं है. और झालानाथ खनल कहते हैं - मच्छर या मक्खी मुझे परेशान नहीं कर सकते.
लेकिन रेगमी अगर मच्छर हैं, तो इस बीच नेपाली जनता के प्यारे मच्छर बन चुके हैं. खासकर फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटस् पर. उनके सम्मान में एक पेज खोला गया है, जिसमें कहा गया है कि उनका तमाचा जनता की भावनाओं की अभिव्यक्ति है. एक टिप्पणी में कहा गया है कि यह तमाचा सिर्फ खनल के लिए नहीं, बल्कि पार्टी के सभी नेताओं के लिए था. और नया पत्रिका नामक अखबार के पत्रकार चिरंजिबी पाउडेल ने टिप्पणी की है कि देवी प्रसाद का तमाचा जनता के विद्रोह का प्रतीक है. इसे तभी शांत किया जा सकता है अगर राजनीतिक दलों के नेता शांति स्थापित करें और इस बात की गारंटी दें कि समय के अंदर संविधान तैयार कर लिया जाएगा.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उ भट्टाचार्य
संपादन: एस गौड़