नीदरलैंड्स की ट्रेनों में शौचालय की जगह थैले
२ नवम्बर २०११सुनने में भले ही अटपटा लगे, लेकिन जल्द ही नीदरलैंड्स की ट्रेनों में लोगों के हाथ में 'ट्रैवल जॉन' नाम के थैले दिखेंगे. लोग पेशाब करने के लिए इन थैलों का इस्तेमाल कर सकेंगे. नीदरलैंड्स रेलवे की प्रवक्ता नीनके कूइस्ट्रा ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हम चाहते हैं कि हमारी स्प्रिंटर ट्रेनों में इन थैलों का इस्तेमाल हो सके. लेकिन लोगों को इनका इस्तेमाल केवल तब ही करना चाहिए जब यह बहुत जरूरी हो, जैसे कि अगर ट्रेन रास्ते में कहीं अटक जाए."
ड्राइवर के केबिन में
दरअसल स्प्रिंटर ट्रेनों को जगह बचाने के लिए बिना टॉयलेट्स के ही तैयार किया गया था. लम्बे समय से लोग इनमें शौचालय के ना होने पर शिकायत करते आए हैं. सरकार ने ट्रेनों में शौचालय बनवाने से इंकार कर दिया, क्योंकि इसके लिए काफी खर्चा आ सकता है. साथ ही टॉयलेट्स बन जाने के बाद उनमें सफाई रखने के लिए नए कर्मचारियों की नियुक्ति भी करनी पड़ती. इसलिए सरकार ने एक सस्ता उपाय निकाला.
अब सवाल यह उठता है कि इन थैलों का इस्तेमाल किया कैसे जाएगा. जाहिर सी बात है, लोग अपनी सीट पर बैठे हुए तो इन्हें इस्तेमाल कर नहीं पाएंगे. इसके लिए भी सरकार के पास एक उपाय है. हर ट्रेन में आगे और पीछे दोनों ही तरफ ड्राइवर का केबिन होता है, लेकिन यात्रा के वक्त इस्तेमाल इनमें से एक ही हो पाता है. तो लोग दूसरे केबिन को शौचालय के रूप में इस्तेमाल कर सकेंगे और बाद में इन थैलों को स्टेशन पर लगे कूड़ेदान में फेंक सकेंगे. हालांकि इस बात से ट्रेन के ड्राइवर काफी नाराज हैं.
महिलाओं का क्या?
नीदरलैंड्स के लोग भी इस अजीब फैसले से हैरान हैं. खास तौर से महिलाएं. टीवी पर लगातार इस पर चर्चा चल रही है. पूछे जाने पर एक महिला ने कहा, "आप मजाक कर रहे हैं? मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती."
नीदरलैंड्स की 16 प्रतिशत ट्रेनों में शौचालय नहीं है. नीदरलैंड्स रेलवे के एक अधिकारी ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में यह समझाना पड़ा कि 'पी बैग' कोई मजाक नहीं है, "अगर आपको तीन या चार घंटे तक ट्रेन में रुकना पड़े तो जाहिर सी बात है कि आपको टॉयलेट्स की जरूरत तो पड़ेगी ही."
'ट्रैवल जॉन' बनाने वाली कंपनी के अनुसार इन थैलों का इस्तेमाल केवल ट्रेनों में ही नहीं, बल्कि शौचालय के अभाव में कहीं भी किया जा सकता है. इन थैलों में एक पाउडर भरा हुआ है, जो नमी के संपर्क में आते ही जैल में बदल जाता है. इस से इस्तेमाल करने के बाद भी इन्हें साथ रखने में दिक्कत नहीं होगी. पर सवाल यह उठता है कि क्या लोग सच में इसे इस्तेमाल करना पसंद करेंगे?
रिपोर्ट: एएफपी/ईशा भाटिया
संपादन: आभा एम