715 नए ग्रह
२७ फ़रवरी २०१४नासा में सौर मंडल से बाहर के ग्रहों का पता लगाने वाले प्रोग्राम के वैज्ञानिक डगलस हजिंस ने इस खोज को केपलर टेलिस्कोप के अंतिम लक्ष्य-"फाइंडिंग अर्थ 2.0" की दिशा में अहम कदम बताया है. वहीं माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट और हार्वर्ड की खगोलविद लीजा काल्टेनेगर ने कहा कि यह धरती से बाहर जीवन तलाशने की दिशा में भी बड़ा कदम है.
केपलर टेलिस्कोप का इस्तेमाल करने वाले वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा में करीब 1,700 ग्रह ढूंढ लिए हैं. बीस साल पहले खगोलविद एक भी ऐसा ग्रह नहीं ढूंढ पाए थे, जो किसी तारे के आस पास चक्कर लगा रहा हो. सौर मंडल से बाहर के किन आकाशीय पिंडों को ग्रह कहा जाए, इस बारे में खगोलविज्ञानियों ने एक नई कन्फर्मेशन तकनीक का इस्तेमाल किया और एक साथ इतने सारे नए ग्रहों के मिलने की घोषणा की.
नए मिले सभी ग्रह ठीक हमारी ही तरह एक ऐसे मंडल का हिस्सा हैं जहां कई ग्रह किसी एक तारे (सूरज) का चक्कर लगा रहे हैं. सिर्फ 305 तारों का अध्ययन करने के दौरान ये 715 ग्रह मिले हैं. ये करीब करीब धरती जितने बड़े हैं.
और इनमें से चार ग्रह ऐसे हैं जो अपने सूरज से इतनी दूरी पर हैं कि उन पर रहा जा सके, इसे नासा ने "हैबिटेबल जोन" कहा है. लेकिन इनका आकार धरती से दुगना है. तो संभावना है कि ये ग्रह धरती की तरह पथरीले नहीं हो कर गैस प्लानेट होंगे और यहां जीवन की संभावनाएं कम होंगी. अभी तक केपलर ने नौ ऐसे ग्रह ढूंढे हैं, जिन पर जीवन की संभावना बनती है.
केपलर अब काम नहीं कर रहा है, लेकिन उसका भेजा डाटा चार साल का है, जिसे पढ़ कर समझने में समय लगेगा. अभी तक वैज्ञानिक सिर्फ दो ही साल के डाटा का विश्लेषण कर पाए हैं.
रहने लायक इलाके के ग्रह तारे से काफी दूर होते हैं, इसलिए वहां तुलनात्मक रूप से तापमान भी कम होता है लेकिन वो तारे का चक्कर लगाने में ज्यादा समय लेते हैं, उनकी कक्षा भी बड़ी होती है. इसलिए केपलर उन्हें दूसरी बार देख पाए, इसके लिए उसे लंबा इंतजार करना पड़ता है.
केपलर ने एक और जो ताजा खोज की है उसके मुताबिक, हमारी गैलेक्सी में बहुत सारे छोटे ग्रह हैं. और यह भी संभावना जताई जाती है कि छोटे ग्रहों पर जीवन की संभावना बड़ों की तुलना में काफी अधिक होती है.
एएम/एमजे (रॉयटर्स)