नहीं उबरा है म्यांमार नर्गिस के कहर से
२ मई २००९साल भर का वक्त भी म्यांमार के इरावादी डेल्टा इलाके के लोगों के गम और डर को निकाल नहीं पाया है. जिस बारिश को कई पीढ़ियों से यहां के लोग राहत देने वाली मानते आए थे, बीते साल उसके दिए घाव अब भी यहां के लोगों के ज़ेहन में गीले ही हैं. बीते साल बर्मा में इरावादी डेल्टा इलाके में नरगिस तूफान ने क़हर मचा दिया था.
तूफान ने न छोटे बच्चों को छोड़ा, न लाठी के सहारे चलने वाले बुजुर्गों को. मई में आए इस तूफान में 1,38,000 लोग मारे गए थे. 24 लाख लोग 2 और 3 मई को आए इस तूफान से प्रभावित हुए. मदद के लिए कई देशों के हाथ आगे बढ़े, लेकिन म्यांमार की सरकार ने हर मदद को ठुकरा कर जिंदा बचे लोगों को जिंदगी के तूफान से लड़ने के लिए ढकेल दिया.
जिन लोगों ने तूफान से पीड़ित लोगों की मदद करने की कोशिश की थी उन्हें गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया था. गिरफ्तार हुए लोगों में देश के जाने माने कॉमेडियन ज़रगनार भी थे. ज़रगनार को कुल 59 साल की जेल की सज़ा सुनाई गयी थी जो कि बाद में बदल कर 35 साल कर दी गई थी. इसके कारण म्यांमार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी निंदा भी की गई थी.
म्यांमार ने किसी भी सहायता एजेंसी को तूफान ग्रस्त इलाक़ों में नहीं जाने दिया था. उसने तूफान के बाद काफ़ी दिनों तक अंतरराष्ट्रीय सहायता भी नहीं ली थी. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने मई 2008 के अंत तक सैन्य शासन को अंतरराष्ट्रीय सहायता लेने के लिए मना लिया था. इस करार के तहत जनरलों की सरकार ने आसियान देशों से सहायता लेने पर हामी भर दी थी.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अगले तीन सालों में म्यांमार में सहायता के लिए कम से कम 1 अरब डॉलर की ज़रूरत होगी. आसियान और संयुक्त राष्ट्र के द्वारा किए गये एक सर्वे के अनुसार तूफान ग्रस्त लोगों में से सिर्फ़ 11 प्रतिशत को सहायता पहुँच पाई है.
तूफान से प्रभावित एक चौथाई लोगों में मनोवैज्ञानिक दबाव के लक्षण देखे गये हैं. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस ने अब तक 600 स्वयंसेवकों को मुसीबत में फँसे लोगों को मनोवैज्ञानिक दबाव से उबरने में मदद करने की ट्रैनिंग दी है. संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के हिसाब से म्यांमार में अभी 2400 प्राथमिक अध्यापकों को मनोविज्ञान में ट्रेनिंग मिली है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र का मानना है की यह काफ़ी नहीं है.
रिपोर्ट: पुखराज चौधरी/एजेंसियां
संपादन: महेश झा