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समाज

नक्सलियों को रास्ते पर लाएगी ग्रीन ब्रिगेड

फैसल फरीद
३० जनवरी २०१८

उत्तर प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिले में नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने का जिम्मा अब ग्रीन ब्रिगेड की महिलाओं ने लिया हैं. ग्रीन ब्रिगेड, वाराणसी के छात्रों के संगठन होप वेलफेयर ट्रस्ट का अंग है.

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Indien Frauenorganisation Green Brigade
तस्वीर: DW/D. Upadhyay

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने सितंबर 2015 में ग्रीन ब्रिगेड बनाया था. बाद में इसके साथ जेएनयू जैसे अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र भी जुड़ गए. अपनी पॉकेट मनी से ये छात्र ग्रामीण इलाके में महिलाओ को साथ ले कर घरेलू हिंसा, नशाखोरी और अन्य सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए काम करते हैं. इन महिलाओं को ये छात्र ट्रेन करते हैं. वे एक खास हरे रंग की साड़ी पहनती हैं. आज पूरे वाराणसी और आसपास के क्षेत्र में ये महिलाएं ग्रीन ब्रिगेड के नाम से मशहूर हैं.

मिर्जापुर वाराणसी से लगा हुआ जिला हैं. ये नक्सल प्रभावित है और भारत सरकार के नोटिफाइड लाल गलियारे का हिस्सा हैं. यह नक्सलवादियों का एक गढ़ माना जाता हैं. पुलिस और प्रशासन के लिए गांव के अंदर नक्सलियों की टोह लेना टेढ़ी खीर साबित हो रहा हैं. ऐसे में, ग्रीन ब्रिगेड को यह जिम्मा सौंपा गया है. मिर्जापुर के दस नक्सल प्रभावित गांवों में ये ब्रिगेड काम करेगी. ग्रीन ब्रिगेड के लिए हर गाँव से कम से कम दस महिलाओं का चयन किया गया हैं. इस तरह लगभग डेढ़ सौ महिलाओं को ग्रीन ब्रिगेड का सदस्य बनाया गया हैं.

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संस्था के सचिव दिव्यांशु उपाध्याय बताते हैं, "जब हम गाँव में गए तो हालात बहुत बुरे थे. गरीबी बहुत ज्यादा, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी. प्राथमिक स्कूल भी जैसे तैसे चल रहे हैं. पहले तो महिलाओं ने हम लोगों से बात ही नहीं की. फिर धीरे धीरे उन्हें विश्वास हुआ." दिव्यांशु के अनुसार नक्सल शब्द वहां इस्तेमाल भी नहीं कर सकते, वरना कोई बात नहीं करता.

Indien Frauenorganisation Green Brigade
तस्वीर: DW/D. Upadhyay

दिव्यांशु कहते हैं कि इन गांवों में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं और हर कोई किसी न किसी चीज के लिए परेशान हैं. महिलाओं को समझाया गया कि अगर वे संगठित हों, अपना हक मांगें और सबको मुख्यधारा में लाएं, तो उनकी बात सुनी जाएगी. इस मामले में मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने भी सहयोग दिया.

ग्रीन ब्रिगेड को अब जिम्मेदारी दी गई है कि वह नक्सल प्रभावित लोगों से बात करे, उन्हें समझाए और वापस मुख्यधारा में लाए. आशीष तिवारी कहते हैं कि ग्रीन ब्रिगेड की महिलाओं का काम बहुत अच्छा रहा है. उनके मुताबिक, "अपने क्षेत्रों में इन्होंने जुआ, घरेलू हिंसा और नशाबंदी के खिलाफ बहुत सार्थक काम किया है. हमने सोचा कि यहां भी ग्रीन ब्रिगेड रहेगी. ये जब गांव वालों को जागरूक करेंगी, तो लोगों का भटकाव कम होगा. हम इन्हें पुलिस मित्र का कार्ड भी देंगे. ये हमें समय समय पर सटीक सूचना भी देते रहेंगी."

दिव्यांशु कहते हैं, "नक्सली भी गांव वालों के बीच के ही लोग होते हैं और अगर महिलाएं उन्हें समझाएंगी, हम ये दिखाएंगे कि विकास हो रहा हैं, बच्चे स्कूल जा रहे हैं, अस्पताल बन रहा है और रोजगार मिल रहा है, तो फिर कोई क्यों इस राह पर जाएगा." ग्रीन ब्रिगेड की सदस्य मुन्नी देवी, निर्मला पटेल, उषा और जग्वंती भी खुश हैं. सबका मानना है कि जब गांव खुशहाल होगा तो कोई समस्या नहीं होगी इसीलिए आपसी सहयोग करेंगे. सरकार ने भी ग्रीन ब्रिगेड की इस पहल को सराहा हैं.