नए निर्देशकों से गुलजार मुंबइया फिल्में
३१ दिसम्बर २०१०मणिरत्नम से लेकर संजय लीला भंसाली और आशुतोष गोवारिकर तक बीते साल में लोगों को सिनेमाघरों तक खींच पाने में बुरी तरह नाकाम रहे. दूसरी तरफ पहली बार निर्देशन के मैदान में हाथ आजमा रहे अभिषेक चौबे, अभिनव कश्यप, अनुषा रिजवी, अभिषेक शर्मा और विक्रमादित्य मोटवानी की नई बयार लोगों को लुभाने में जबरदस्त कामयाब रही.
विशाल भारद्वाज के साथ अभिषेक चौबे ने इश्किया में विद्या बालन को प्यार में सिर से पैर तक डूबी पतिव्रता और फिर बदला लेने के लिए अपने ही पति की जान लेने वाली कृष्णा बनाया. इसके साथ ही नसीरुद्दीन शाह के दिल को बच्चा बनते देखना भी खासा दिलचस्प रहा नतीजा फिल्म और संगीत दोनों जबर्दस्त कामयाब रहे.
साल के शुरुआत में ही आई इश्किया की कामयाबी ने अगले 12 महीनों तक बॉलीवुड को बार बार गांव में कहानियां ढूंढने के लिए भेजा और ज्यादातर सफल भी रहीं. लंबे समय से शहरी लोगों का बनावटी जीवन देख देख कर ऊब चुके वातानुकूलित मल्टीप्लेक्स दर्शकों को भी गांव से आई ताजा बयार ने ताजगी से भर दिया. छोटे शहरों के साथ ही मेट्रो की भागमभाग में भी लोगों ने इन्हें देखने के लिए वक्त निकाला. इन फिल्मों ने प्रवासी भारतीयों को भी अपनी ओर खींचा.
पहली बार निर्देश कर रहे अभिनव कश्यप साल के सबसे कामयाब निर्देशक साबित हुए और बिगड़ैल सलमान को गांव का दबंग इस्पेक्टर बनाकर लोगों को भरपूर मसाला दिया. बदनाम मुन्नी मलाइका के लटके झटकों के साथ ही मक्खी की मासूमियत, चुलबुल पाण्डेय की दबंगई और छेदी की साजिशें लोगों को पसंद आई और फिल्म जबरदस्त हिट हुई. गांव तो गांव पूरा शहर चुलबुल पाण्डेय की अनोखी शख्सियत का दीवाना बन बैठा.
अभिनव ने सच्चाई में मसाले का तड़का लगाया तो पत्रकार से निर्देशक बनी अनुषा रिजवी ने एक नई लाइन पकड़ी. हंसी ठहाकों से जरा सा भी परहेज किए बगैर अनुषा ने उभरते भारत में पत्रकारों और राजनेताओं की किसानों के प्रति संवेदहीनता दिखाई पीपली लाईव में. फिल्म में वास्तविकता दिखाने के कारण कई सवाल भी खड़े हुए. आम आदमी की पहुंच से दूर हो रहे दाल रोटी के दौर में महंगाई को डायन बताने वाला गाना जारी होते ही हिट हो गया. आमिर की देखरेख में बनी बिना बड़े सितारों की फिल्म ने छोटे से बजट मे वो करिश्मा किया जो बड़े बड़े निर्देशक न कर सके. भारत की तरफ से ऑस्कर में भेजी गई है पीपली लाइव.
सिर्फ गांव ही नहीं मौजूदा दौर में आर्थिक मंदी, अमेरिका जाने का सपना और मध्य वर्ग के संघर्ष ने भी बॉलीवुड को लुभाया और नए निर्देशकों ने इन्हीं विषयों पर काम करना पसंद किया. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के छात्र रहे अभिषेक शर्मा ने छोटे बजट में एक हल्की फुल्की फिल्म बनाई तेरे बिन लादेन. मूल रूप से आतंकवाद से निपटने के अमेरिकी तौर तरीकों की आलोचना करती इस फिल्म ने मध्यवर्ग के मन में पल रहे अमेरिका जाने के सपने की तस्वीर भी खींची.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः ओ सिंह