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नई सरकार से नाखुश क्यों हैं जर्मनी के लोग

२२ अगस्त २०२२

जर्मनी में अभी नई सरकार को सत्ता में आये महज आठ महीने ही हुए हैं लेकिन चांसलर शॉल्त्स की लोकप्रियता लगातार कम होती जा रही है. करीब दो तिहाई जर्मन लोग चांसलर से नाखुश हैं, आखिर इसकी वजह क्या है?

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चांसलर शॉल्त्स की लोकप्रियता लगातार घट रही है
चांसलर शॉल्त्स की लोकप्रियता लगातार घट रही हैतस्वीर: Carsten Koall/picture alliance/dpa

रविवार को प्रकाशित एक सर्वेक्षण के नतीजों में जर्मन सरकार के प्रति लोगों की नाखुशी और बढ़ती दिख रही है. सरकार को सत्ता में आये एक साल भी नहीं हुआ और महज 25 फीसदी लोग ही मान रहे हैं कि सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी, यानी एसपीडी अच्छा काम कर रही है. सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व यही पार्टी कर रही है. मार्च में एसपीडी से खुश लोगों की तादाद 46 फीसदी थी. यह सर्वे जर्मन साप्ताहिक बिल्ड आम जोंटाग ने किया है.

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जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के प्रति नाखुश लोगों की तादाद 62 फीसदी तक पहुंच गई है. पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के साथ डिप्टी चांसलर रह चुके शॉल्त्स को लेकर नाखुशी का इतना बढ़ना लोगों को हैरान कर रहा है. मार्च में 39 फीसदी लोगों ने शॉल्त्स के कामकाज पर नाखुशी जताई थी.

सरकार के सामने संकट

सत्ता में आने के बाद शॉल्त्स का सामना यूक्रेन युद्ध, ऊर्जा संकट, बढ़ती महंगाई और भयानक सूखे से हुआ है. इन सब कारणों ने यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को मंदी की कगार पर पहुंचा दिया है. आलोचकों का कहना है कि ऐसे हालात में शॉल्त्स सक्षम नेतृत्व दिखा पाने में नाकाम हुए हैं.

रविवार को चांसलर के सामने दो युवतियों ने टॉपलेस हो कर रूसी गैस आयात रोकने की मांग की
रविवार को चांसलर के सामने दो युवतियों ने टॉपलेस हो कर रूसी गैस आयात रोकने की मांग कीतस्वीर: Carsten Koall/picture alliance/dpa

सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के लिये अब समर्थन भी घट कर 19 फीसदी पर आ गया है. सरकार में जूनियर पार्टनर के तौर पर शामिल ग्रीन और विपक्षी रुढ़िवादियों के साथ ही पिछले साल चुनाव में मिले 25.7 फीसदी से भी यह कम है.

शॉल्त्स के लिये मुश्किल सप्ताह

तीन पार्टियों वाली गठबंधन सरकार के कामकाज से नाखुश लोगों की तादाद मार्च में 43 फीसदी से बढ़ कर अब 65 फीसदी पर पहुंच गयी है. सर्वेक्षण ऐसे समय में आया है जब बीता सप्ताह शॉल्त्स के लिये खासतौर से काफी मुश्किल था.

बीते हफ्ते फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के साथ बर्लिन में एक साझे प्रेस काफ्रेंस में इस्राएल पर फलस्तीन के खिलाफ 50 होलोकॉस्ट को अंजाम देने का आरोप लगाया और उस दौरान शॉल्त्स ने उन्हें घूर कर देखा लेकिन कुछ कहा नहीं. बाद में शॉल्त्स ने बयान जारी किया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. आलोचकों ने उन्हें जम कर खरीखोटी सुनाई है.

इसके बाद शुक्रवार को वो टैक्स घोटाले के एक केस में विधानसभा की जांच कमेटी के सामने पेश हुए. विपक्षी सांसद उन पर सच्चाई को उलझाने का आरोप लगा रहे हैं. यह मामला उनके हैंबर्ग के मेयर रहने के दौरान का है. शॉल्त्स ने इन आरोपों से इनकार किया है.

कनाडा की यात्रा पर चांसलर

इस बीच जर्मन चांसलर और उनके डेपुटी रॉबर्ट हाबेक रविवार को तीन दिन की यात्रा पर कनाडा के लिये रवाना हो गये. जर्मनी गैस के लिये रूस का विकल्प ढूंढने की कोशिशों में जी जान से जुटा है और यह यात्रा भी इसी सिलसिले में है.

कनाडा में शॉल्त्स की अगवानी के लिये  पहुंची उप प्रधानमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड
कनाडा में शॉल्त्स की अगवानी के लिये पहुंची उप प्रधानमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंडतस्वीर: Graham Hughes/Zuma/IMAGO

इस यात्रा के दौरान कनाडा के साथ हाइड्रोजन के उत्पादन और परिवहन के लिये एक करार पर दस्तखत हो सकते हैं. साथ ही लिक्विफाइड नेचुरल गैस की सप्लाई और कनाडा में निकेल, कोबाल्ट, लिथियम और ग्रेफाइट जैसे खनिजों के खनन पर भी चर्चा होगी. ये खनिज बैट्रियों के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं.

ऊर्जा संकट से निबटने के रास्ते तलाशने के लिये हाबेक  इससे पहले कतर, संयुक्त अरब अमीरात, नॉर्वे की यात्रा कर चुके हैं.

महामारी के बाद युद्ध

दिसंबर में जब नई सरकार ने शासन संभाला तब देश कोरोना के संकट से उबर रहा था. हालांकि इस संकट के जारी रहते ही यूक्रेन युद्ध की समस्या शुरू हो गई और इसने कई नई समस्याओं को जन्म दिया है. जर्मन चांसलर पर इन समस्याओं के समाधान का असरदार तरीका नहीं ढूंढ पाने के आरोप लग रहे हैं.

यूक्रेन युद्ध में भी जर्मनी ने सैन्य मदद के रास्ते देर से खोले और जिसने लोगों को उस पर ऊंगली उठाने का मौका दिया. महंगाई, ऊर्जा संकट भी कुछ इसी तरह की चीजें जिसने लोगों के मन में सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ाया है. हाल ही में सरकार ने गैस पर अधिभार भी लगाया है जिसके कारण जर्मन परिवार पर तकरीबन 500 यूरो का बोझ बढ़ने की आशंका है. इस बीच सरकार ने लोगों को राहत देने के लिये जो उपाय किये हैं उनमें सार्वजनिक परिवहन के लिये 9 यूरो टिकट के अलावा और कोई बड़ा कदम नहीं है. 9 यूरो टिकट काफी सफल तो रहा  लेकिन अब वह खत्म हो रहा है. जाहिर है कि लोगों के पास सरकार से नाराजगी की कई वजहें हैं.

एनआर/ओएसजे (डीपीए, एएफपी)