बगैर एसी घरों को ठंडा रखने की चुनौती
१ जुलाई २०२३कई जगहों पर, चढ़ते पारे के बीच ठंडक बनाए रखना सिर्फ सुविधा और आराम की बात नहीं है. तापमान में भीषण बढ़ोतरी का असर हमारी सेहत, उत्पादकता, हमारी अर्थव्यवस्थाओं और यहां तक कि हमारे अस्तित्व पर पड़ता है.
तापमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से महज डेढ़ डिग्री सेल्सियस की बढ़त, 2.3 अरब लोगों को तीखी लू से झुलसा सकती है. वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर कार्बन उत्सर्जनों में कटौती नहीं की तो 2030 के दशक की शुरुआत से ही हम तापमान में उस वृद्धि की चपेट में होंगे.
घरों को ठंडा नहीं धरती को गर्म कर रहे हैं हम
गर्म मौसम हर साल 12,000 मौतों का जिम्मेदार पहले से है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि उम्रदराज लोगों के गर्मी की चपेट में आने की वजह से 2030 तक, हर साल 38000 अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं.
एयर कंडिशनरों खरीद लेना एक फौरी और आसान रास्ता हो सकता है लेकिन ऊर्जा की भारी खपत वाले ये उपकरण समस्या को बढ़ा ही रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की लिली रियाही ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमें इस दुष्चक्र से निकलना होगा. जिस तरह से हम अभी अपने घरों और दफ्तरों को ठंडा रखते हैं, वो तरीका जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण है."
ठंडक मुहैया कराने का गोरखधंधा
एयर कंडिशनरों से ऐसे नुकसानदायक रेफ्रिजरेंट्स का रिसाव होता है जो ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ाते हैं. एसी और पंखे पूरी दुनिया में इमारतों में इस्तेमाल होने वाली 16 फीसदी बिजली खपत के जिम्मेदार है. ज्यादातर बिजली अभी भी जीवाश्म ईंधनों से मिलती है.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक, वैश्विक तापमान की तरह भारत और चीन जैसे देशों में बढ़ती आबादी और आय के बीच, दुनिया भर में काम कर रही एसी इकाइयों की संख्या 2050 तक करीब 2 अरब से बढ़कर 5.7 अरब हो सकती है.
एजेंसी का ये भी अनुमान है कि कुशलता में सुधार किए बिना, स्पेस कूलिंग में ऊर्जा की मांग सदी के मध्य तक तीन गुना हो सकती है- यानी आज चीन और भारत जितनी बिजली की खपत.
मिट्टी के घरों में एसी की जरूरत नहीं पड़ती
सस्टेनेबल कूलिंग को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहे ग्लोबल कूल कोएलिशन की समन्वयक रियाही कहती हैं कि ये परिदृश्य बिजली की ग्रिडों पर बड़ा भारी दबाव बनाएगा और जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिशों में आखिरकार रुकावट ही डालेगा.
रियाही कहती हैं, "2050 तक, अनुमानों के मुताबिक, कई देशों में पीक बिजली लोड का 30 से 50 फीसदी हिस्सा अकेले स्पेस कूलिंग से मिलेगा. आज का औसत 15 फीसदी है. "तो आपको ग्रिड के फेल होने के मामले भी देखने को मिलेंगे."
इस बारे में क्या करना होगा?
गर्म देशों के लोगों को आरामदायक स्थितियों में जीने और काम करने की सुविधा देकर एयर कंडिश्निंग का संपन्नता और आर्थिक विकास में अहम योगदान है. हालांकि जब तक एसी उल्लेखनीय रूप से ज्यादा जलवायु अनुकूल नहीं बनेंगे तब तक उनकी संख्या में अनुमानित विस्फोट एक बड़ी चुनौती बना रहेगा.
रियाही कहती हैं कि कूलिंग विकल्पों के इर्दगिर्द जागरूकता की कमी है वित्तीय रुकावटें भी हैं जो लोगों को ऊर्जा सक्षम, कम उत्सर्जन के रेफ्रिजरेंट वाले एसी खरीदने से रोकती है.
वो कहती हैं, "एसी का मतलब बाजार में उपबल्ध सबसे सस्ती एयर कंडिश्निंग से नहीं है. बात ये है कि हम अपने शहरों और इमारतों को कैसे निर्मित करें कि उनमें कूलिंग की मांग में कटौती की जा सके. और इसका मतलब ये भी हो सकता है कि ऐसे प्रोत्साहनों के निर्माण के लिए तरीकों की तलाश हो जिनसे बाजार में सबसे सक्षम और योग्य प्रौद्योगिकियां उतारी जा सकें."
कच्ची बस्तियों में कूलिंग छतें
ऊंचे तापमान से बचे रहने और साथ ही साथ उत्सर्जन को कम करने के लिए एसी की कार्यक्षमता में सुधार से ज्यादा की जरूरत होगी. जैसे कि इमारतों में एक्सटीरियर शेडिंग, हरी छतें लगाई जाएं या सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट लगाया जाए जिनसे तपिश कम होगी. शहरों में हरित जगहों, पानीदार जगहों और हवा के गलियारों का विस्तार करने से भी मदद मिलेगी.
भारत में, महिला हाउसिंग ट्रस्ट, घरों को ठंडा रखने के लिए झुग्गियों में उन लोगों के साथ मिलकर काम कर रहा है जो एसी नहीं खरीद सकते. संगठन का फोकस सस्ते उपायों पर है जैसे टिन की जंग लगी तपती छतों पर सफेद रंग कर दें, घरों के आसपास छायादार पेड़ लगाएं या बांस की चटाइयों से बनी छतें लगाएं जो गरमी को कम सोखती हैं.
ट्रस्ट की निदेशक बिजल ब्रह्मभट्ट कहती हैं कि सोलर रिफलेक्टिव पेंट से छतों की पुताई कर दी जाए तो उतने भर से तापमान 6 डिग्री सेल्सियस गिर सकता है. लोगों का कहना है कि ये बदलाव कमोबेश एसी सरीखा था.
वो कहती हैं, "हिफाजत का स्तर काफी बढ़ गया है. एक बार तापमान में कमी आने से आर्थिक उत्पादकता डेढ़ घंटे से बढ़कर दो घंटे हो गई." उनका कहना है कि लोगों ने पंख चलाने बंद कर दिए हैं, इस तरह बिजली के बिल भी कम हो गए हैं.
रेगिस्तान के सबक
मिस्र के रेगिस्तान में, जहां गर्मियो में तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है, वहां चल रहा दूसरा प्रोजेक्ट, अकेले स्मार्ट बिल्डिंग डिजाइन की बदौलत तपिश से निपट रहा है.
हरित निर्माण कंपनी इकोनसल्ट की संस्थापक, आर्किटेक्ट सारा अल बतूती का कहना है कि यांत्रिक समाधानों के बगैर ही उनकी कंपनी इमारतों का तापमान करीब 10 डिग्री सेल्सियस तक कम करने में सफल रहे हैं.
इकोएनसल्ट कंपनी पांच करोड़ अस्सी लाख की आबादी वाले 4000 गांवों को अपग्रेड करने के लिए मिस्र सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि वे प्रचंड गर्मी से बेहतर ढंग से जूझ सकें. लेकिन हाईटेक सॉल्युशन लाने के बजाय, अल बतूती कहती हैं कि बहुत से हरित बदलाव स्थानीय देशज ज्ञान से प्रेरित थे.
वो कहती है, "ये गांव बचे रह गए हैं. क्योंकि कड़ी स्थितियों में खुद को ढालने का ये ज्ञान हजारों वर्षों से रहा है. हम देखते हैं कि इनमें से कौनसे समाधान हासिल किए जा सकते हैं फिर हम उन्हें एक साथ रखते हैं. हमें सब कुछ फिर से शुरू नहीं करना."
इसका मतलब चूने के पत्थर और सैंडस्टोन जैसी स्थानीय तौर पर उपलब्ध सामग्रियों के इस्तेमाल से है जो दीवारों के जरिए हवा को बहने देती है. ढांचे भी जमीन से थोड़ा ऊपर उठाकर बनाए गए जिससे गर्मी नीचे से सोखी न जा सके, अंदर आने के रास्तों पर अंधेरा रखा गया, रिफलेक्टिव छतें लगाई गई और गर्मी रोककर रौशनी को अंदर आने देने के लिए एंगल्ड खिड़कियां और एडजस्टेबल शेडिंग का इस्तेमाल किया गया.
'कूलिंग का नया मोर्चा'
अल बतूती कहती हैं कि आर्किटेक्चर सेक्टर में नयी सोच की जरूरत है ताकि इमारतें शुरू से ही ठंडक के लिहाज से डिजाइन की जा सकें.
वो कहती हैं, "जितना गर्म होता जाता है, गर्मियां जितना खिंचती हैं, उतना ही ज्यादा लोग एयर कंडिश्निंग जैसे समाधानों की ओर देखते हैं. हमें खुद ही आवासीय सेक्टर से सवाल करना चाहिएः क्या ये गर्मी से निजात दिलाने को बनी हैं या नहीं?"
अल बतूती का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन जैसे वार्षिक कार्यक्रमों में भी गर्मी से निपटने में हाउसिंग की भूमिका पर ज्यादा बड़ा फोकस होना चाहिए.
"हमें ठंडक को एक अत्यन्त महत्वपूर्ण मुद्दे की तरह देखना होगा- जैसे कि अक्षय और साफ ऊर्जा को देखते हैं. अगला मोर्चा कूलिंग का है."