डेंगू से लड़ने वाले मच्छर
२२ नवम्बर २०१९इंडोनेशिया, वियतनाम, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के कई समुदाओं में डेंगू का संक्रमण तेजी से कम हो रहा है. एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्चर टीम का कहना है कि ऐसा खास तरीके से पैदा किए मच्छरों की वजह से हो रहा है जिन्हें लैबोरेट्री में तैयार किया गया है.
बड़े पैमाने पर इन मच्छरों के परीक्षण के दौरान यह बात सामने आई है कि ये मच्छर डेंगू और इस तरह के दूसरे वायरसों को फैलने से रोकते हैं. इसके लिए इन मच्छरों में एक खास बैक्टीरिया की मौजूदगी जरूरी होती है. यह बैक्टीरिया कीड़ों में पाया जाता है और इंसानों के लिए नुकसानदेह नहीं है.
रिसर्च करने वाले गैरलाभकारी संगठन वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम के कैमरून सिम्मंस का कहना है कि कीटनाशकों से कीटो को मारने की बजाय, "यह सचमुच मच्छरों को बदलने जैसा है."
सफलता का पहला संकेत ऑस्ट्रेलिया में नजर आया. उत्तरी क्वींसलैंड के इलाके में वोलबाशिया बैक्टीरिया वाले मच्छरों को 2011 में छोड़ा गया. धीरे धीरे ये मच्छरों की स्थानीय आबादी के साथ मिल गए. डेंगू का फैलाव तब होता है जब कोई मच्छर किसी पीड़ित इंसान को काटने के बाद दूसरे किसी इंसान को काटे. वोलबाशिया बैक्टीरिया किसी तरह इस प्रक्रिया को रोक देता है. सिम्मंस का कहना है कि नॉर्थ क्वींसलैंड के इलाके के समुदायों में स्थानीय स्थर पर संक्रमण लगभग खत्म हो गया है.
हालांकि इसकी असली परीक्षा तो एशिया और लातिन अमेरिका में होगी जहां डेंगू की महामारी लगातार फैलती रहती है और लाखों लोग इसकी पीड़ा झेलते हैं. कई बार तो यह घातक भी हो जाती है.
गुरुवार को सिम्मंस की टीम ने रिपोर्ट दी कि योग्याकार्ता के इंडोनेशियाई समुदाय में 2016 में इन मच्छरों को छोड़ा गया था और वहां अब तक डेंगू बुखार के मामलों में 76 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. इसकी तुलना पास के एक इलाके से की गई जहां अकसर डेंगू बुखार के मामले सामने आते हैं. रिसर्चरों ने वियतनाम के न्हा त्रांग शहर के पास एक समुदाय में भी इसी तरह की कमी देखी. हाल ही में ब्राजील के रियो डे जनेरो के पास भी डेंगू और उससे जुड़े एक और वायरस चिकनगुनिया में भारी कमी देखी गई है. इन देशों और दूसरे इलाकों में रिसर्च अभी जारी है.
विशेषज्ञों का कहना है कि अभी और रिसर्च की जरूरत है. अब तक जो शोध हुआ है उसमें स्थानीय स्वास्थ्य समूहों में डेंगू के मामलों की संख्या देखी गई है. इन लोगों के खून की जांच नहीं की गई है. नॉर्थ क्वींसलैंड के इलाके में वोलबाशिया बीते आठ साल से मच्छरों में मौजूद है लेकिन ये मच्छर डेंगू के लिए कब तक प्रतिरोधी बने रहेंगे, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता.
फल पर बैठने वाली मक्खियों से लेकर तितलियों तक के कीटों की प्रजाति में आधे से ज्यादा ऐसे हैं जो वोलबाशिया से संक्रमित हैं. हालांकि डेंगू फैलाने वाले एडेस एजिप्टी मच्छरों में यह बैक्टीरिया नहीं होते. ये मच्छर दिन में काटते हैं और आमतौर पर शहरी और उपनगरीय इलाकों में पाए जाते हैं. इन इलाकों में बड़े पैमाने पर कीटनाशकों का छिड़काव करके ही इनसे बचाव किया जाता है.
वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम के रिसर्चरों ने पहले मच्छरों के अंडों को वोलबाशिया से लैब में संक्रमित किया. संक्रमित मादा मच्छर इसके बाद इन बैक्टीरिया को अपने अंडों के सहारे दूसरे मच्छरों तक पहुंचाती है. ऐसी मादा जो काटती हैं और ऐसे नर जो नहीं काटते हैं, उनमें वोलबाशिया बैक्टीरिया को पर्याप्त रूप से पहुंचाने के बाद, जब ये मच्छर स्थानीय समुदाय के साथ जोड़े बनाते हैं तो उनके प्रजनन से स्थानीय समुदाय में भी इस बैक्टीरिया का संक्रमण होता है.
इस तरीके में मच्छरों के डंक से तो मुक्ति नहीं मिलती लेकिन सिम्मंस का कहना है कि सालों तक कीटनाशकों के छिड़काव और दवाइयों पर होने वाले खर्च की तुलना में यह सस्ता है.
एनआर/एके(एपी)
__________________________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore