डिजिटल तकनीक के बावजूद करोड़ों का स्कॉलरशिप घोटाला
११ नवम्बर २०२०लेकिन पुलिस का कहना है कि अभियुक्तों से पूछताछ के बाद ही असली रकम का पता चलेगा. इससे पहले झारखंड में भी ऐसा घोटाला सामने आ चुका है. सब कुछ डिजीटल तरीके से होने के बावजूद बड़े पैमाने पर चलने वाले इस घोटाले के सामने आने पर हैरत जताई जा रही है. असम में बीते साल भी सरकार ने ऐसे एक घोटाले की बात कबूल की थी. असम में सीआईडी ने इस मामले में राज्य के चार जिलों से कम से कम 21 लोगों को गिरफ्तार किया है. अभियुक्तों में चार हेड मास्टरों के अलावा एक शिक्षक भी शामिल है. यह घोटाला 2018-19 और 2019-20 के दौरान आवंटित रकम के वितरण में हुआ है. असम अल्पसंख्यक कल्याण बोर्ड के निदेशक और उक्त स्कॉलरशिप योजना के नोडल अधिकारी महमूद हसन की शिकायत के आधार पर इस मामले की जांच शुरू की गई और राज्य के विभिन्न जगहों पर छापे मार कर अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है.
सीआईडी की ओर से गुवाहाटी में जारी एक बयान में कहा गया है कि जांच के दौरान मिले सबूतों के आधार पर ग्वालपाड़ा, दरंग, कामरूप और धुबड़ी जिलों से स्थानीय पुलिस के सहयोग से अब तक 21 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (बी), 406, 409, 419, 420, 468 और 471 के तहत एक मामला दर्ज किया गया है. सीआईडी के आईजी सुरेंद्र कुमार बताते हैं, "छह लोगों को न्यायिक हिरासत में भेजा गया है जबकि बाकी अभियुक्त चार दिनों की पुलिस रिमांड पर हैं. सीआईडी की टीम ने अभियुक्तों के कब्जे से तीन लैपटॉप के अलावा 217 छात्रों की तस्वीरें, स्कॉलरशिप के लिए 173 आवेदन पत्र और 11 बैंक पासबुक भी जब्त किए गए हैं.”
इस मामले की जांच कर रहे सीआईडी के एक अधिकारी बताते हैं कि गिरफ्तार लोगों में ग्राहक सेवा केंद्र के तीन मालिक, 10 बिचौलिए, स्कूल प्रबंध समिति का एक अध्यक्ष और तीन इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसरों के शामिल होने से पता चलता है कि यह घोटाला एक संगठित गिरोह के जरिए अंजाम दिया जा रहा था. जांच अधिकारियों का कहना है कि इस योजना के तहत स्कॉलरशिप के लिए छात्रों का दो स्तरों पर सत्यापन किया जाता है. पहला सत्यापन स्कूल के स्तर पर होता है और दूसरा जिले के स्तर पर. लेकिन घोटाले में शामिल लोग हेडमास्टरों के लॉगिन और पासवर्ड में सेंध लगा कर सिस्टम में घुसने और घोटाला करने में कामयाब रहे थे.
असम का स्कूल बिहार में
इस घोटाले में असम के शिवसागर जिले के नाजिरा स्थित एक केंद्रीय विद्यालय को तो बिहार का स्कूल बता दिया गया है. यही नहीं, यह स्कूल बिहार के छह अलग-अलग जिलों की सूची में शामिल है. बीते दिनों दिल्ली से छपने वाले एक अंग्रेजी अखबार ने इस घोटाले की रिपोर्ट की थी. उक्त स्कूल के नाम पर बिहार में 39 लाभार्थियों के नाम पर स्कॉलरशिप की रकम वसूली जा चुकी है. केंद्रीय विद्यालय के प्रिंसिपल अखिलेश्वर झा बताते हैं, "जिन लोगों के नाम इस स्कूल के छात्र के तौर पर दर्ज हैं, वे सब फर्जी हैं. हमारे रजिस्टर में उन छात्रों के नाम ही नहीं हैं. लेकिन दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया और पूर्वी चंपारण जिलों में रहने वाले छात्रों को इस केंद्रीय विद्यालय का छात्र बता कर उनके नाम स्कॉलरशिप की रकम उठाई जा चुकी है.”अखिलेश्वर झा बताते हैं कि इस साल भी असम सरकार के जिला कल्याण अधिकारी ने एक मेल भेज कर छात्रों के नामों की पुष्टि करने को कहा था. लेकिन हमने जांच में पाया कि उनमें से कोई भी कभी इस विद्यालय का छात्र नहीं रहा है. हमने स्कूल के स्तर पर उनके फॉर्म का सत्यापन भी नहीं किया था. उन तमाम फॉर्मों में स्कूल के ही एक कंप्यूटर शिक्षक का नाम कॉन्टैक्ट पर्सन के तौर पर दर्ज था. इसकी गहन जांच की जानी चाहिए.
असम सरकार ने इससे पहले बीते साल फरवरी में भी विधानसभा में माना था कि अल्पसंख्यक छात्रों को दी जाने वाली मैट्रिक-पूर्व स्कॉलरशिप योजना में घोटाला हुआ है और सीआईडी को इस मामले की जांच सौंपी गई है. ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के विधायक अमीनुल इस्लाम की ओर से पूछे गए एक सवाल के जवाब में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रंजीत दत्त ने कहा था कि इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. हालांकि मंत्री ने यह नहीं बताया था कि घोटाला कितना बड़ा है. दत्त ने कहा था कि असम के सभी जिलों में जांच चल रही है. मोरीगांव और बरपेटा में दो शिक्षकों के अलावा बैंक ग्राहक सेवा केंद्र के दो कर्मचारियों और एक बिचौलिए को गिरफ्तार किया जा चुका है.
क्या है योजना
प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम नामक यह योजना 2008 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने शुरू की थी. इसके तहत एक लाख से कम सालाना आय वाले मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध परिवारों के छात्रों को सालाना 10,700 रुपये की स्कॉलरशिप दी जानी थी. इसके लिए छात्रों को स्कूली परीक्षा में कम से कम 50 फीसदी नंबर लाना अनिवार्य है. पहली से पांचवीं कक्षा के छात्रों को सालाना एक हजार और छठी से दसवीं तक 5,700 रुपये दिए जाते हैं. लेकिन छठी से दसवीं तक के छात्र अगर हॉस्टल में रहते हों, तो उन्हें सालाना 10,700 रुपये मिलते हैं. सबसे ज्यादा घोटाला इसी वर्ग में हुआ है.
दिलचस्प बात यह है कि योजना में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होती है. छात्रों को ऑनलाइन आवेदन करना होता है और पैसे भी सीधे उनके बैंक खातों में ट्रांसफर किए जाते हैं. बावजूद इसके यह योजना भ्रष्टाचार के गहरे दलदल में डूबी है. एक शिक्षाविद मनोरंजन गोस्वामी कहते हैं, "इस घोटाले से साफ है कि ऑनलाइन प्रक्रिया भी पारदर्शी नहीं है. इनमें स्कूली शिक्षकों के साथ ही कंप्यूटर विशेषज्ञ भी शामिल हैं. सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इस पूरी योजना की गहन जांच कर दोषियों को सख्त सजा देनी चाहिए.”
ऊपरी असम के एक स्कूल में पढ़ाने वाले सुजित कुमार कहते हैं, "खासकर अरुणाचल प्रदेश के दुर्गम इलाकों में स्थित स्कूलों में केंद्र की ओर से मिलने वाली स्कॉलरशिप की रकम में घोटाले का इतिहास तो दशकों पुराना है. वहां स्कूली शिक्षक स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलीभगत से स्कूलों में फर्जी दाखिला दिखा कर सालाना करोड़ों का घोटाला करते रहे हैं. इलाका बेहद दुर्गम होने की वजह से उन स्कूलों में कभी कोई अधिकारी जांच के लिए नहीं जाता. इसी का फायदा उठा कर दशकों ऐसे घोटाले जारी रहे थे. केंद्र सरकार स्थानीय लोगों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए हर साल करोड़ों रुपये भेजती थी. पहले तो सारी कवायद मैनुअल थी. लेकिन अब डिजिटल तकनीक के बावजूद घोटालेबाजों ने उसकी काट तलाश ली है. यह मुद्दा बेहद गंभीर है.”
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