डाउन सिंड्रोम से जंग
२७ मई २०१३आंके की बेटी आना दो साल की है. वह अपनी बेटी को ले कर नियमित रूप से बर्लिन के एक शिशु संस्थान में जाती हैं, जहां विकलांग और स्वस्थ बच्चे साथ खेलते हैं. आना बाकी बच्चों के मुकाबले धीरे सीखती है, लेकिन उनका नकल करना उसे पसंद है.
39 साल की आंके समझती हैं कि ऐसे बच्चों के लिए अलग स्कूल पुरानी बात हो गई और अब सभी बच्चों को एक साथ पढ़ना चाहिए, "आज कल लोग ऐसे खास बच्चों को सामान्य जीवन में शामिल करने लगे हैं. लोगों को ऐसे बच्चों के साथ पेश आना भी सीखना होगा, उन्हें समाज से बाहर करने या छिपाने की कोशिश खत्म करनी होगी."
भ्रूण हत्या
आंके अपनी बेटी के प्रदर्शन से काफी खुश हैं, "हाल ही में आना की टीचर आईं और कहा कि आना ने बुक को बू कहा है. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे के लिए यह काफी तेज है. मुझे लगता है शायद वह स्वस्थ बच्चों के साथ रहती है इसलिए."
दाई आंत्ये क्रोगर प्रसव के वक्त आंके के साथ थीं. वो कहती हैं कि ऐसी बीमारियों का पता पैदाइश से पहले लग जाता है. इसलिए जर्मनी में डाउन सिंड्रोम वाले नब्बे फीसदी मामलों में गर्भपात कर दिया जाता है, "मुझे डर है कि डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे खत्म हो जाएंगे. पैदा होने से पहले आजकल डाउन सिंड्रोम का पता लगाना गर्व की बात है. लेकिन इसका मतलब है कि इस बीमारी के साथ पैदा होने वाले बच्चे को आप नकार रहे हैं और जीवन के खिलाफ फैसला ले रहे हैं."
आत्मनिर्भरता बनी मिसाल
26 साल की जोरा शेम ने इस बात को साबित किया है कि डाउन सिंड्रोम के बाद भी जीना मुमकिन है. दो साल पहले वह शेयर अपार्टमेंट में आईं और अपनी दोस्त नेले के साथ रहे लगीं. दोनों को डाउन सिंड्रोम है. जोरा को गर्व है कि वह अपने पैरों पर खुद खड़ी हो सकीं, "आप अकेले अपने लिए भी कुछ कर सकते हैं या फिर दोस्तों के साथ. और फिर इसमें आपको अपने मां बाप की जरूरत नहीं होती है."
दोनों सहेलियां थियेटर से जुड़ी हैं. सुबह साढ़े पांच से शाम नौ बजे तक अपार्टमेंट में इनकी देखरेख के लिए कोई न कोई रहता है. लेकिन जोरा और नेले अकेले ही नाटक कंपनी चली जाती हैं. इस कंपनी का नाम है रांबा सांबा, जहां बर्लिन में डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे लोग काम करते हैं. विशेषज्ञों की मदद से जोरा ने यहां गाना और बोलना सीखा है, "बड़ा मजा आता है और अच्छा लगता है, दोस्तों के साथ, यहां काम करने वालों के साथ और हमारी बॉस भी अच्छी है."
जीना इसी का नाम
थियेटर की निर्देशक गीजेला होएन ने 20 साल पहले ऐसे बच्चों के साथ काम शुरू किया. वह बताती हैं, "मुझे पता चला कि यह बहुत प्रतिभाशाली हैं, चाहे वह हर डायलॉग सही तरह याद रखें या नहीं, लेकिन यह इतने शानदार तरीके से मंच पर आते हैं कि गलतियां नहीं दिखतीं."
यहां जो नाटक दिखाया जा रहा है वह प्रेम, आपसी जलन और बच्चों की कामना के बारे में है. इसमें शोर और मजाक भी है. आंके इससे काफी प्रभावित हैं, "मुझे लगता है कि यह काफी आत्मनिर्भर तरीके से काम करते हैं, खुद फैसले लेते हैं, यह जबरदस्त है." आना के लिए भी वह यही चाहती हैं कि लोग उसे पसंद करें, उसके आसपास रहना लोगों को अच्छा लगे और समाज में उसकी कद्र की जाए.
रिपोर्ट: मानसी गोपालकृष्णन
संपादन: ईशा भाटिया