झारखंड में छात्रवृत्ति घोटाला
२ नवम्बर २०२०यह घोटाला केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति की एक योजना, प्री-मेट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम, में हुआ. स्कीम के तहत सालाना एक लाख रुपयों से काम आय वाले मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध परिवारों के मेधावी बच्चों को मदद की रकम दी जाती है.
2019-20 में मंत्रालय ने योजना के लिए 1400 करोड़ रुपये आबंटित किए थे जिसमें झारखंड के हिस्से आए थे 61 करोड़. राज्य में इस योजना के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार नोडल संस्था है झारखंड स्टेट माइनॉरिटीज फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कोरपोरेशन.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने खुद की गई एक जांच में पाया कि कई मामलों में जिन छात्रों के नाम से छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया गया था उन्हें उसका बस एक हिस्सा ही मिला. कई जगह वयस्कों की जानकारी को छात्रों की जानकारी दिखा कर फर्जी आवेदन भरे गए और रकम आने पर उन्हें सिर्फ उसका एक हिस्सा दे दिया गया.
कैसे हुआ घोटाला
आरोप है कि घोटाले के पीछे बिचौलियों, बैंक कर्मचारियों, स्कूल स्टाफ और राज्य सरकार के कर्मचारियों का एक पूरा तंत्र काम कर रहा था. बिचौलियों ने पहले तो कुछ स्कूल मालिकों को अपने साथ मिला कर राष्ट्रीय स्कॉलरशिप पोर्टल पर उनका लॉगिन आईडी और पासवर्ड ले लिया. फिर कुछ बैंक कर्मचारियों की मदद से भावी लाभार्थियों के आधार और उंगलियों के निशान जैसी जानकारी हथिया ली, उनके नाम पर खाते खुलवाए और उनकी तरफ से छात्रवृत्ति के लिए आवेदन भर दिया.
कुछ सरकारी कर्मचारियों की मदद से कई मामलों में छात्रवृत्ति का पैसा हथिया लेने के बाद लाभार्थियों को उसका एक छोटा हिस्सा देकर बाकी चोरी कर लिया गया. कई दूसरे मामलों में फर्जी लाभार्थियों के खाते बनाए गए और पूरी की पूरी रकम चोरी कर ली गई. ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिनमें एक ही स्कूल के 100 से भी ज्यादा फर्जी छात्रों के खाते बना कर रकम हथिया ली गई और स्कूल को खबर तक नहीं हुई.
जहां वयस्कों की जानकारी भरवाई गई वहां उनसे आने वाली रकम के स्रोत के बारे में झूठ बोल दिया गया, जैसे सऊदी अरब से आई धर्मार्थ रकम. इस मामले में राज्य की झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं और घोटाले पर लगाम ना लगाने के लिए बीजेपी की पूर्ववर्ती सरकार पर आरोप लगाया है.
आधार व्यवस्था भी कमजोर
लेकिन राजनीतिक खींच तान से परे इस मामले ने यह दिखा दिया है कि अगर घोटालों के पीछे सरकारी कर्मचारियों से लेकर बिचौलियों तक पूरा का पूरा तंत्र शामिल हो तो आधार और बायोमेट्रिक जानकारी जैसी चीजें भी भ्रष्टाचार के आगे विफल हैं.
अर्थशास्त्री जॉन देरेज ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि भ्रष्ट बैंकिंग करेस्पॉन्डेंट गरीबों से उनकी आधार और बायोमेट्रिक जानकारी लेकर नियमित रूप से उनके वेतन, पेंशन और छात्रवृत्तियां चुरा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने और उनके सहयोगियों ने कई बार इस बारे में आरबीआई, एनपीसीआईएल और अन्य संस्थाओं को बताया है लेकिन किसी भी संस्था ने कभी कोई कदम नहीं उठाया.
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