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जापानी कारों से जर्मन कारों की रेस

६ दिसम्बर २०१०

जापानी कारों के मुकाबले देर से भारतीय बाजारों में उतरी जर्मन कार कंपनियां उन्हें पछड़ाने में जुटी हैं. लेकिन उनकी ऊंची कीमत, नकारात्मक छवि और कार्बन उत्सर्जन जैसे मुद्दे इस रेस में उनके लिए स्पीडब्रेकर साबित हो रहे हैं.

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तस्वीर: AP

भारतीय ऑटोमोबाइल क्षेत्र में फिलहाल जापानी कारों का बर्चस्व है. बाजार में उनकी हिस्सेदारी लगभग 27 फीसदी है. वहीं बीएमडब्ल्यू और फोल्क्सवागेन जैसी जर्मन कंपनियां तमाम कोशिशों के बावजूद अब तक 0.5 फीसदी हिस्से पर ही काबिज हो सकी हैं.

जयराम के वार

बीते दिनों केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अधिक धुंआ उगलने वाले स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (एसयूवी) को 'अपराधी' और 'सामाजिक तौर पर बेकार' वाहन करार दिया था. उनकी इस टिप्पणी ने वाहन क्षेत्र में विवाद पैदा कर दिया. उसके बाद जर्मन कंपनी बीएमडब्ल्यू ने रमेश की टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताया था.

रमेश ने कहा कि इन गाड़ियों का निर्माण अब भी इसलिए हो रहा है क्योंकि ये सब्सिडी दर पर बेचे जा रहे डीजल पर चलती हैं जिससे बीएमडब्ल्यू, बेंज और होंडा जैसी कारों के मालिकों को फायदा होता है. मंत्री का सुझाव था कि इन कारों पर अतिरिक्त शुल्क लगाया जाना चाहिए. इन गाड़ियों में ईंधन किफायती मानकों का इस्तेमाल अनिवार्य किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि लोगों को जर्मनी की महंगी गाड़ियों और अत्यधिक ईंधन उपयोग करने वाले एसयूवी खरीदने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए.

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तस्वीर: AP

बुनियादी अड़चनें

आखिर अपनी उच्च तकनीक के बावजूद ऑटोमोबाइल क्षेत्र में इस रेस में जर्मन कारों के पिछड़ने की वजह क्या है? इस सवाल पर आटोमोबाइल एक्सपर्ट जे. थामस कहते हैं, "इनका महंगा होना सबसे बड़ी वजह है. इसके अलावा जर्मन कारों को फैमिली कार नहीं माना जाता है. इनको एसयूवी यानी स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल कहा जाता है. युवा वर्ग की कार के इस तमगे की वजह से अमीर लोग इनकी बजाय टोयटा और होंडा सिटी जैसी जापानी कारों की ओर आकर्षित हो रहे हैं."

जर्मन कंपनी फोल्क्सवागेन के साथ एक और दिक्कत है कि बुकिंग के बाद ग्राहक को समय पर डिलीवरी नहीं मिलती. मुंबई के दिलीप चेरियन ने इस साल दीवाली पर 50 हजार रुपए दे कर अपनी पत्नी के लिए एक पोलो कार की बुकिंग कराई थी. तब कंपनी ने उनसे कहा था कि आठ से 12 सप्ताह के बीच डिलीवरी हो जाएगी. चेरियन बताते हैं, "कंपनी लगातार टालमटोल करती रही. लेकिन बाद में उन्होंने जब दीवाली से पहले डिलीवरी में असमर्थतता जताई तो मैंने सूद समेत अपने पैसे मांगे. कंपनी ने अब तक मेरे पैसे वापस नहीं किए हैं." चेरियन अब इस मामले को उपभोक्ता अदालत में ले जाने की सोच रहे हैं. चेरियन कहते हैं कि कई ग्राहक उनकी तरह ही अपनी गाढ़ी कमाई के पसों से कार की बुकिंग कर डीलर के चक्कर काट रहे हैं.

बड़ा निवेश

अपनी नकारात्मक छवि को सुधारने के लिए फोल्क्सवागेन ने भारत के 41 शहरों में व्यापक प्रचार अभियान शुरू किया है. इसके तहत जगह-जगह बड़े बैनर और बिलबोर्ड लगाए गए हैं. टेलीविजन पर भी विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं. फोल्क्सवागेन इंडिया के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक माइक स्टीफन कहते हैं, "हम भारत में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करना चाहते हैं. हमने यहां 58 करोड़ यूरो यूरो का निवेश किया है जो भारत में किसी जर्मन कंपनी की ओर से सबसे बड़ा निवेश है."

माइक का दावा है कि कंपनी ने बड़े पैमाने पर विस्तार योजना तैयार की है. वह कहते हैं, "हम जल्दी ही फैमिली कार के कुछ नए मॉडल बाजार में उतारेंगे, जो अपेक्षाकृत सस्ते होंगे." इसी साल जून में कंपनी ने दस हजारवीं कार बनाई है. माइक मानते हैं कि शुरूआत में कुछ समस्याएं थीं. लेकिन अब ऐसा कुछ भी नहीं है. इस अभियान को और मजबूती देने के लिए कंपनी ने अब जाने-माने ऑटोमोबाइल विशेषज्ञ जान चाको को भारत में नया अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक बनाया है.

दूसरी ओर, एक अन्य जर्मन कंपनी बीएमडब्ल्यू ने भी अपने चेन्नई संयंत्र में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना बनाई है. बीएमडब्ल्यू इंडिया के अध्यक्ष आंद्रियास शाफ कहते हैं, "फिलहाल सिंगल शिफ्ट में हम सालाना 5400 कारें बना सकते हैं. हम जल्दी ही उत्पादन क्षमता को और बढ़ाएंगे." कारों की बिक्री के मामले में आंकड़ों के हवाले से शाफ कहते हैं, "इन कारों की मांग लगातार बढ़ रही है. हम इस साल अक्टूबर तक 4,721 कारें बेच चुके हैं जबकि बीते साल इसी अवधि में यह आंकड़ा 3600 था." शाफ के मुताबिक कंपनी को इस साल अपने कारोबार में 60 फीसदी वृद्धि की उम्मीद है. वह कहते हैं कि भारत में लक्जरी कारों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है. वर्ष 2009 में यह नौ हजार कारों का था जिसके इस साल बढ़ कर 15 हजार होने की उम्मीद है.

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दिलचस्प रेस

बीएमडब्ल्यू को इस साल भारत में पांच हजार कारें बिकने की उम्मीद है जबकि फोल्क्सवागेन को बिक्री का आंकड़ा बीते साल के मुकाबले दोगुना होने की उम्मीद है. उसने बीते साल 1800 कारें बेची थी. कोलकाता में इंडो-जर्मन चैंबर ऑफ कामर्स की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में फोल्क्सवागेन इंडिया के माइक स्टीफन ने कहा, "हम भारतीय बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की ठोस योजना पर आगे बढ़ रहे हैं."

बीएमडब्ल्यू को भारत में एक अन्य जर्मन कंपनी मसीर्डिज से सबसे कड़ी चुनौती मिल रही है. इस साल अब तक यहां पांच हजार मर्सीडिज कारें बिकी हैं. भारत के प्रीमियम कार बाजार में बीएमडब्ल्यू और मर्सीडिज का हिस्सा 39-39 फीसदी है. स्टीफन का दावा है, "भारत में कंपनी की विकास दर अप्रत्याशित रूप से तेज है और हम जल्दी ही नंबर वन हो जाएंगे."

इन कंपनियों के दावों और तमाम विज्ञापन अभियानों के बावजूद क्या जर्मन कारें भारतीय सड़कों पर कब्जे की रेस में जापानी कारों को पछाड़ने में सक्षम होंगी ? लाख टके के इस सवाल का जवाब तो बाद में मिलेगा. लेकिन यह होड़ धीरे-धीरे दिलचस्प बनती नजर आ रही है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः ए कुमार

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