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जर्मन अखबारों में मोदी के चर्चे

२४ सितम्बर २०११

नरेंद्र मोदी के अनशन, गुजरात के दंगों और मोदी के राज्य में विकास की तारीफ पर जर्मन अखबारों ने खास ध्यान दिया है. इसके अलावा तमिलनाडु के स्कूलों पर समाचार हैं.

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तस्वीर: UNI

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन दिन अनशन करके खुद को देश के सबसे प्रमुख विपक्षी नेता के तौर पर स्थापित कर दिया. मोदी पिछले 10 साल से गुजरात के मुख्यमंत्री हैं. लेकिन उनके दामन से फरवरी 2002 के दंगों का दाग अभी तक धुला नहीं है. बर्लिन का टागेसत्जाइटुंग लिखता है-

अभी तक दंगों में शामिल आरोपियों के बारे में कोई फैसला नहीं लिया गया है और कोई सहूलियत भी उन्हें नहीं दी गई है. 2002 से अब उनके मुख्यमंत्री पद के दौरान कोई और अप्रिय घटना नहीं हुई है. उनके विरोधी कहते हैं कि मोदी ने तब से अब तक कुछ नहीं सीखा है. रविवार को मोदी ने इस्लामिक रीति रिवाजों के हिसाब से टोपी पहनने से इनकार कर दिया. और इससे पहले लोगों ने उन्हें तरह तरह के साफे पहनाए.

Narendra Modi
तस्वीर: UNI


पिछले महीनों के दौरान भ्रष्टाचार के कई मामले, जनता के विरोध प्रदर्शन और सरकार की ढीली प्रतिक्रियाओं ने भारत में आक्रोश पैदा कर दिया.

इसका नतीजा सिर्फ सड़कों पर ही नहीं बल्कि आंकड़ों में भी दिखाई दिया. विदेशी निवेश काफी कम हुआ. इसका कारण सिर्फ सामाजिक अशांति नहीं बल्कि सुधारों का न होना भी है. लगातार बढ़ती महंगाई के कारण लोन भी महंगा हुआ है. कई विधाओं में 50 से 80 प्रतिशत ज्यादा है. गरीबी से निबटने के सरकारी कार्यक्रमों का भी कोई नतीजा नहीं आ रहा है. इस कारण गरीब और अमीर में अंतर बढ़ता जा रहा है. इसके कारण नक्सलवादियों को फायदा हो सकता है.

अगले पांच साल में तमिलनाडु में स्कूली बच्चों के लिए 68 लाख लैपटॉप दिए जाएंगे. खास कर सरकारी स्कूलों और यूनिवर्सिटियों में. इसके लिए 102 अरब रूपये लगेंगे. नौए ज्यूरिषे त्साइटुंग लिखता है-

सवाल यह है कि स्कूली बच्चों को इसका फायदा होगा कैसे. हमेशा बिजली की मुश्किल बनी रहती है. चेन्नई से बाहर गावों में दिन में कुछ ही घंटे बमुश्किल बिजली आती है. स्कूली शिक्षा के मंत्री थंगम थेनारासु इसके पीछे किसी राजनैतिक हेतु से इनकार करते हैं. हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हर बच्चे के पास कंप्यूटर इस्तेमाल करने की सुविधा हो. अभी तक वैश्विक निवेश का 11 फीसदी हिस्सा यहां आईटी क्षेत्र के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस कोटा को राज्य सरकार अगले सालों में बढ़ा कर 25 प्रतिशत करना चाहती है.

अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी के कारण भारत में अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इनमें से ज्यादातर लोगों लगातार शिक्षाक्षेत्र, स्वास्थ्य और गरीबी के खिलाफ संघर्ष में शामिल हो रहे हैं. पारंपरिक तौर पर उन लोगों के संस्थान हैं और उनमें से अधिकतर धार्मिक पृष्ठभूमि के हैं. नौए ज्यूरिषे त्साइटुंग कहता है-


55 अरबपतियों की आय सकल घरेलू उत्पाद का पांचवां हिस्सा बनता है लेकिन साथ ही साथ करीब 45 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जी रहे हैं. 2006 से 2010 के बीच भारतीय फ्रिलांथ्रोपी रिपोर्ट के मुताबिक निजी स्तर और कंपनियों का दान देने की प्रवृत्ति दो अरब से बढ़ कर पांच-छह अरब डॉलर तक बढ़ गई है जबकि भारत में लोग इसका सिर्फ 26 फीसदी ही देते हैं.

इसका एक कारण यह है कि परोपकार से कंपनियों या निजी स्तर पर कोई लाभ नहीं होता. दुनिया के कई देशों में दान देने पर यह धन टैक्स से लिया जा सकता है जबकि भारत में सिर्फ 50 प्रतिशत ही रिटर्न होता है.

रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न/आभा एम

संपादनः वी कुमार

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