जर्मनी में भी यौन शिक्षा पर छिड़ी बहस
७ नवम्बर २०१५जर्मनी और यूरोप के अन्य देशों में सेक्स एजुकेशन कोई नया मुद्दा नहीं है. यौन शिक्षा लंबे समय से स्कूल की पढ़ाई का हिस्सा है. समाज में इस बात को स्वीकारा जाता है कि किशोरावस्था के दौरान भी यौन संबंध बनाए जाते हैं, इसलिए बच्चों को इस विषय में सही जानकारी होना जरूरी है. कंडोम और गर्भ निरोधक दवाओं के इस्तेमाल पर भी जोर दिया जाता है. लेकिन अब मुद्दा समलैंगिकता का है. जर्मन प्रांत बाडेन वुर्टेमबर्ग में अगले शिक्षा सत्र से इस्तेमाल होने वाली किताबों पर बवाल मचा है. यौन शिक्षा की इन किताबों में समलैंगिकता के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. माता पिता का कहना है कि यह सीमाओं का उल्लंघन है. वे इसे बच्चों के "सेक्सुलाइजेशन" का नाम दे रहे हैं. जहां जर्मन समाज में बगैर शादी के साथ रहने और समलैंगिक संबंधों को स्वीकृति है, वहीं बाडेन वुर्टेमबर्ग जर्मनी का ऐसा प्रांत है जहां सबसे ज्यादा विवाहित जोड़ों वाले परिवार रहते हैं. प्रांत में 78 फीसदी पारंपरिक रूप से विवाहित जोड़े है. शायद यही वजह है कि कुछ दिन पहले राजधानी श्टुटगार्ट में 5,000 लोगों ने नई किताबों के विरोध में प्रदर्शन किए.
जब टीचर ही गे हो
लेकिन अगर समलैंगिक अध्यापकों की सुनें, तो कहानी का दूसरा पहलू सामने आता है. फाबियान श्मिट ने हाल ही में टीचर ट्रेनिंग कोर्स पूरा किया है. 30 साल के फाबियान ने बच्चों को अपने समलैंगिक होने के बारे में नहीं बताया. उनका कहना है कि वे नहीं चाहते थे कि बच्चे उन्हें नापसंद करें और इसका असर उनके टीचर ट्रेनिंग के नतीजे पर पड़े, "आप पूरी तरह उन पर निर्भर करते हैं. हो सकता है कि कोई दिक्कत हो जाती." फाबियान जब क्लास की फेयरवेल पार्टी में पहुंचे, तब उन्होंने अपने बारे में बताया. वे मुस्कुराते हुए कहते हैं कि बच्चों ने उनसे कहा कि वे तो पहले ही भांप चुके थे.
छात्रों को शायद फाबियान के बोल चाल के तरीके या हाव भाव से उनके गे होने का अंदाजा लगा. लेकिन जरूरी नहीं कि हर समलैंगिक पुरुष वैसे ही पेश आता हो. श्टेफान रिष्टर इसका उदाहरण हैं, "जब लोग मुझसे मिलते हैं, तब उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं होता." श्टेफान उनका असली नाम नहीं है, वे अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहते और ना ही अपने छात्रों को अपनी असलियत बताते हैं, "मैंने उन्हें कहते सुना है कि यह सही नहीं है, यह भगवान के खिलाफ है."
ऐसे में श्टेफान को डर है कि अगर बच्चों को इस बारे में पता चलेगा, तो वे अपने माता पिता को बता देंगे, जो फिर स्कूल में शिकायत करने आएंगे और उन्हें अपनी नौकरी खोनी पड़ेगी. श्टेफान बताते हैं कि बाडेन वुर्टेमबर्ग के जिस छोटे से शहर में वे पढ़ाते हैं, वहां ज्यादातर लोग अत्यंत धार्मिक हैं और कई रूढ़िवादी सोच भी रखते हैं. ऐसे में श्टेफान और फाबियान जैसे लोगों के लिए नई किताबें समाज के सामने अपनी पहचान स्थापित करने का एक जरिया हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें पहले माता पिता के दिलों में बसे डर को निकालना होगा.
क्या आप चाहेंगे कि आपके बच्चों को स्कूल में कोई समलैंगिक टीचर पढ़ाए? अपने विचार हमसे साझा करें, नीचे टिप्पणी कर के!