जर्मनी में बेघरों को घर देने की मुहिम
३ दिसम्बर २०१९आंद्रे कुरकोवाइक को अपने घर के बाथरूम पर बहुत गर्व है. बारिश जैसा अहसास देने वाला शावर हो या उसमें लगा रेडियो या फिर शानदार वॉशबेसिन, उन्हें इसकी हर चीज पसंद है. पांच साल पहले तक वह सोच भी नहीं सकते थे कि कभी ये चीजें उनके पास होंगी. उस वक्त कुरकोवाइक हेरोइन के आदी थे और जेल की कोठरी में जिंदगी काट रहे थे. उन्होंने अपनी जिंदगी के दस साल सड़कों पर सोते हुए, बेघरों के बने शेल्टरों और जेल में बिताए हैं. पिछले तीन साल से वह 34 वर्ग मीटर के फ्लैट में रह रहे हैं जिसे वह अपना खुद का घर कहते हैं.
यह सब संभव हुआ जर्मन शहर ड्यूसलडॉर्फ के एक संगठन "फिफ्टीफिफ्टी" की बदौलत. इस संगठन की शुरुआत दस साल पहले हुई और यह अमेरिकी पहल "हाउसिंग फर्स्ट" से प्रेरित है. इसका आइडिया सिंपल है. बेघर लोगों को रहने की जगह दी जाती है, जो उनकी अपनी होगी. इसके लिए पहले से ऐसी कोई शर्त नहीं रखी जाती है कि उन्हें ड्रग्स की लत छोड़नी होगी या फिर मानसिक बीमारी का इलाज कराना होगा. इसके पीछे विचार यह है कि जब कोई स्थिर माहौल में रहेगा तो ड्रग्स की लत जैसी समस्याओं के साथ आसानी से निपटा जा सकता है.
मकान में शिफ्ट जाने के बाद इन लोगों को अतिरिक्त मदद या फिर समर्थन कार्यक्रमों में हिस्सा लेना जरूरी नहीं होता. सब कुछ स्वेच्छा से होता है. किसी तरह का दबाव नहीं डाला जाता है. फिफ्टीफिफ्टी के साथ जुड़ीं सामाजिक कार्यकर्ता यूलिया फॉन लिंडर्न कहती हैं, "हाउसिंग से जुड़े मामले में हम लोग एक बड़े बदलाव का प्रतीक हैं. सवाल सिर्फ नजरिए का है. क्या हम इस शर्त पर काम करेंगे कि लोगों को इस तरह के घरों में रहने से पहले इसके लिए लायक बनना होगा. हमें लगता है कि लोगों को घर चलाने का तरीका सिखाने के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि उन्हें घर दे दिया जाए."
ये भी पढ़िए: जर्मनी में गरीबों का ऐसे ध्यान रखा जाता है
आंकड़े बताते हैं कि यह कार्यक्रम बेहद कामयाब रहा है. कई अध्ययनों में पता चला है कि 75 से 90 फीसदी लोग इन घरों में बाकायदा रह रहे हैं. फिफ्टीफिफ्टी के तहत जिन 62 लोगों को फ्लैट मुहैया कराए गए, उनमें से सिर्फ चार लोग वापस सड़कों पर रहने चले गए.
ड्यूसलडोर्फ में छह लोगों की टीम बेघर लोगों से जुड़े मामलों को देखती है. रेंट कॉन्ट्रैक्ट से लेकर उनके फ्लैट में जाने तक हर तरह की मदद दी जाती है. फॉन लिंडर्न कहती हैं, "हम स्लीपिंग बैग में सोने से लेकर अपने घर में सोने तक के सफर में उनका साथ देते हैं." जर्मनी की कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंस के सोशल वर्क डिपार्टमेंट में रिसर्च असिस्टेंट नोरा जेलनर कहती हैं कि भरोसा कायाम करना सबसे अहम है. बेघर लोगों की मदद करने वाली टीम में सामाजिक कार्यकर्ता, मनोविज्ञानी और डॉक्टर शामिल होते हैं. वे इन लोगों को देखते हैं और जो भी मदद जरूरी है, वह मुहैया कराई जाती है.
कुरकोवाइक के पास अब अपना घर है लेकिन वह अब भी हर रोज फिफ्टीफिफ्टी कैफे में जाते हैं. वहां काम करने वाले लोगों के साथ ना सिर्फ उनका भरोसा कायम हो चुका है, बल्कि उन्हें वहां ऐसे लोग मिलते हैं जो कभी उनकी जगह बेघर हुआ करते थे. वह कहते हैं, "मैं अपने अपार्टमेंट में बहुत खुश हूं लेकिन कभी कभी अकेलापन महसूस होता है."
यूलिया फॉन लिंडर्न मानती है कि अकेलापन एक समस्या हो सकती है. लोगों को अपने घर में डिप्रेशन हो सकता है. वह कहती है कि घर मिल जाने का यह मतलब नहीं है कि आपकी सारी समस्याएं हल हो गईं. कई लोग अपने घर में पहुंचने के बाद भी ड्रग्स और शराब के आदी बने रहते हैं.
आंद्र कुरकोवाइक को कभी हेरोइन की बहुत लत थी. वह अब भी हर रोज डॉक्टर के पास जाते हैं, जहां उन्हे हेरोइन की जगह मेथाडोन दी जाती है. वह नियमित रूप से शराब भी पीते हैं. उन्हें लगता है कि वे इसे नहीं छोड़ पाएंगे. फॉन लिंडर्न कहती हैं, "लेकिन इसकी वजह से उन लोगों से फ्लैट नहीं छीने जाएंगे. जब वे शर्मिंदा होते हुए स्वीकार करते हैं कि वे बार बार शराब पी रहे हैं तो हम उनसे कहते हैं: कोई बात नहीं, होता है. लेकिन हमें बताइए कि इससे दूर रहने में हम आपकी कैसे मदद कर सकते हैं."
रिपोर्ट: लीजा हैनेल/एके
__________________________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore