जर्मनी और पोलैंड को जोड़ती 'संस्कृति रेल'
१३ जनवरी २०२३जर्मनी की राजधानी बर्लिन और पोलैंड के दक्षिण पश्चिमी शहर व्रोक्लॉ के बीच एक "संस्कृति रेल" 2016 से चल रही है. स्प्री और ओडर नदियों के किनारे बसे शहरों के बीच, ये साढ़े चार घंटे की रेल यात्रा है. इतना वक्त बहुत होता है यात्रियों को उस संस्कृति से रूबरू कराने का, जो सफर के आखिर में उनका इंतजार करती है और उनका मनोरंजन भी.
सफर के दौरान यात्रीगण लेखकों, संगीतकारों और कलाकारों से मुलाकात करते हैं, एक लाइब्रेरी का दीदार करते हैं और उन्हें देखने को मिलती है एक स्थायी प्रदर्शनी. ये प्रोजेक्ट मूल रूप से छह महीने की अवधि के लिए तैयार किया गया था लेकिन इतना कामयाब रहा कि कभी बंद करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. जर्मन-पोलैंड सीमाओं से इतर ये एक सम्मानजनक संस्थान बन चुका है.
संस्कृति के प्रोत्साहन पर दोनों देशों का जोर
व्रोक्लॉ शहर के पूर्व मेयर रफाल दुत्किएविच कहते हैं कि आइडिया को अंजाम देने में वो भी शामिल रहे थे. उन्होंने बताया, "नगर प्रशासन से किसी ने नाम भी फौरन सुझा दियाः 'पौचियाग दो कुल्टूरी' – संस्कृति रेल." उनके मुताबिक संस्कृति के क्षेत्र में बर्लिन और ब्रांडेनबुर्ग के साथ सहयोग को बढ़ाने के अलावा दोनों शहरों के बीच दो साल पहले रोक दिए गए रेल लिंक को फिर से शुरू करने का इरादा भी इस कार्यक्रम का था.
उन्होंने बताया कि जर्मनी की ओर से सांस्कृतिक जुड़ाव के विचार को अमलीजामा पहनाने और उसे कामयाब बनाने के लिए "रचनाधर्मी युवाओं के एक समूह" ने प्रमुख भूमिका निभाई. प्रोजेक्ट शुरू होने से काफी पहले, थियेटर की जानकार और जर्मन स्टडीज की अध्येता इवा स्त्रोचिंस्का-विले और अनुवादक नताली वासरमन ने निर्माता निर्देशक ओलिवर स्पात्स से इस जर्मन-पोलिश उद्यम को हरकत में लाने के लिए मुलाकात की.
ओलिवर स्पात्स 2015 से 2016 तक फ्रांकफुर्ट स्थित क्लाइस्ट फोरम के निदेशक थे. वो अभी भी संस्कृति रेल के प्रोजेक्ट मैनेजर हैं. नताली वासरमन कहती हैं, "चलती ट्रेन में संस्कृति से रूबरू कराने का विचार हमारा काफी पहले से था." जब व्रोक्लॉ 2016 में यूरोप की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में चुना गया तो उनके मुताबिक, सारे विचार आपस में जुड़ने लगे थे.
पहला सफर तो हाथोंहाथ बिक गया
30 अप्रैल 2016 को जब कल्चर ट्रेन बर्लिन के लिष्टेनबर्ग स्टेशन से अपने पहले सफर पर रवाना हुई तो स्पात्स की टीम की सांसें थमी हुई थीं. वो याद करते हैं, "हमें डर था कि लंबी यात्रा की वजह से कोई भी रेल में नहीं चढ़ेगा." आखिर में वे सब हैरान रह गए. स्पात्स कहते हैं, "लोगों का हुजूम टूट पड़ा, सब आना चाहते थे, हमारे पास जगह ही नहीं थी. योजना रेल में 420 सीटों की क्षमता की थी. दो हफ्तों में ही सारी सीटें बिक गईं. हमारे तो होश ही उड़ गए."
आयोजकों के सामने, व्यापक पैमाने पर लोगों को आकर्षित करने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को तैयार करने की मुश्किल चुनौती थी. एक व्यापक ऑडियंस को लक्षित एक बुनियादी स्कीम बनाई गई, सफर के दौरान क्विज और एक मोबाइल लाइब्रेरी रखी गई. यात्रियों से सामान्य सवाल पूछे गए जैसे कि दोनों देशों में राज्यों की संख्या बताओ. नताली वासरमन के मुताबिक "बात ये थी कि लोग एक दूसरे से बातचीत में व्यस्त हो सकें."
रेलयात्रा में साहित्य, संगीत, थियेटर और डिस्को
रेल सबसे ज्यादा तो संगीत, थियेटर, नाच और लेक्चर का ठिकाना बन गई. क्लब नाइट्स होती थीं और टी डांस किए जाते थे. हर किसी के पसंद और स्वाद की चीज मौजूद थी. जैसा कि तास दैनिक के रिपोर्टर ने अपनी एक रिपोर्ट में रेलयात्रा का ब्यौरा देते हुए उसके लिए लिखा था "संस्कृति का पिटारा.”
बर्लिन स्थित पोलिश मूल की लेखिका दोरोता दानियेलेविच कहती हैं, "ट्रेन में एक शानदार, खुला, उन्मुक्त माहौल रहता है. लोग अपने अनुभव बांटते हैं और नयी दोस्तियां बनती हैं." वो कल्चर ट्रेन की कमोबेश नियमित यात्री हैं. सफर के दौरान उन्होंने अपनी किताबें, "इन सर्च ऑफ द सोल ऑफ बर्लिन" (बर्लिन की आत्मा की तलाश में) और "द व्हाइट सौंग" (सफेद गीत) यात्रियों को भेंट भी की थी.
इस ट्रेन में राजनीतिज्ञ भी सफर करते रहे हैं. ब्रांडेनबुर्ग राज्य के मुख्यमंत्री डीटमार वोइद्के उनमें से एक हैं. उन्होंने व्रोक्लॉ के पूर्व मेयर दुत्किएविच के साथ ट्रेन में ही एक सफर के दौरान जर्मनी और पोलैंड रिश्तों के भविष्य पर चर्चा की. बर्लिन राज्य के संस्कृति और यूरोप मंत्री क्लाउस लेडेरर ने ट्रेन पर पोलैंड के सहकर्मियों के साथ बातचीत में जर्मन राजधानी के हालात तफ्सील से बताए. ओलिवर स्पात्स कहते हैं, "संस्कृति रेल नेटवर्किंग बढ़ाने के अनौपचारिक स्तरों का निर्माण करती है."
ये प्रोजेक्ट छह महीने के लिए था. मई 2016 से अक्टूबर 2016 तक. लेकिन इसकी बड़ी सफलता के चलते और पहले साल में ही 22 हजार यात्रियों की बुकिंग करा लेने के बाद, रेल को चलाने की मियाद लगातार बढ़ाई जाती रही. नताली वासरमन कहती हैं, "हम हमेशा यही कहते, रेल साल के आखिर तक ही चलेगी, फिर ये प्रोजेक्ट पूरा समझो." लेकिन रेल की लोकप्रियता और यात्रा मजबूत होती गई, और दोनों देशों में हिट हो गई. कोविड महामारी के दौरान इसे रोका गया था लेकिन जून 2021 से रेल फिर चल पड़ी है.
रेल की आगामी फंडिग महफूज
वासरमन कहती हैं, संस्कृति रेल ने आसपास के इलाकों में अंदर तक और शहरों के भीतर भी एक नेटवर्क कायम करने में मदद की है. स्पात्स के मुताबिक पोजनान और स्चेचिन समेत पोलैंड के दूसरे शहरों ने भी इस प्रोजेक्ट में दिलचस्पी जाहिर की है. अब तक 80 हजार से ज्यादा यात्री इस रेल से यात्रा कर चुके हैं. मार्च और अप्रैल 2022 में, पोलैंड से 6,000 यूक्रेनी शरणार्थी भी इसी ट्रेन से जर्मनी आए थे.
हाल तक, प्रोजेक्ट को बर्लिन स्थितजर्मन-पोलिश सोसायटी प्रायोजितकर रही थी. इसकी कीमत बर्लिन और ब्रांडेनबुर्ग प्रांत मिलकर चुका रहे थे. ये अस्थायी व्यवस्था, बर्लिन प्रांत में 2021 से गठबंधन सरकार आने के साथ ही खत्म हो गई थी. कल्चर ट्रेन की फंडिग का जिम्मा तब गठबंधन समझौते का हिस्सा बन गया था. राज्य सरकार की कंपनी कुल्टुरप्रोजेक्टे बर्लिन अक्टूबर 2022 से प्रोजेक्ट को स्पॉन्सर कर रही है.
संस्कृति रेल का भविष्य सुरक्षित
अब प्रोजेक्ट मैनेजर ओलिवर स्पात्स और उनकी टीम साल के अंत के बजाय आगे के लिए भी योजना बना सकते हैं. पिछले दिनों नये साल की पूर्व संध्या पर रेल यात्रा के बाद तीन महीने का ब्रेक रहेगा. इसके बाद रेल, अप्रैल में दोबारा चालू कर दी जाएगी. एक स्टॉप अब बोलेस्लाविच नगर भी होगा जो अपनी गहरी नीली पॉटरी के लिए विख्यात है. 19 यूरो में यात्री, एक सांस्कृतिक प्रोग्राम देखने के साथ बर्लिन से व्रोक्लॉ तक की यात्रा कर सकते हैं.
एक नये कार्यक्रम पर भी काम चल रहा है. एक जमाने में पूर्वी जर्मनी में विपक्षी कार्यकर्ता रहे वोल्फगांग टेम्पलिन को एक ट्रिप के लिए बतौर होस्ट बुक किया गया है. टेम्पलिन ने डीडब्ल्यू को बताया, "यूरोपीय आजादी के इतिहास में पोलैंड के योगदान के बारे में जर्मन लोग बहुत कम जानते हैं. मैं उस अंतराल को भरने की कोशिश करना चाहता हूं."