दिल्ली दंगों में छात्रों और एक्टिविस्टों के खिलाफ कार्रवाई
१४ सितम्बर २०२०दिल्ली पुलिस ने फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों में चल रही जांच के तहत रविवार देर रात एक्टिविस्ट और पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को गिरफ्तार कर लिया. उमर की गिरफ्तारी के सिलसिले में पुलिस ने कोई बयान जारी नहीं किया लेकिन मीडिया में आई खबरों में बताया जा रहा है कि उन्हें आतंकवादियों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है.
बताया जा रहा है कि पुलिस ने उमर का फोन 31 जुलाई को ही जब्त कर लिया था. दंगों की जांच कर रहे दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने उन्हें रविवार को पूछताछ के लिए बुलाया और दिन भर पूछताछ के बाद रात में गिरफ्तार कर लिया. उनके पिता डॉक्टर सय्यद कासिम रसूल ने ट्वीट कर बताया कि उनके बेटे को स्पेशल सेल ने रात 11 बजे गिरफ्तार किया.
उमर खालिद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र हैं और एनडीए सरकार के मुखर आलोचक के रूप में जाने जाते हैं. उन्हें 2016 में जेएनयू में 'देश-विरोधी' नारे लगाने के आरोप में भी गिरफ्तार किया गया था. बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया. 2018 में महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच के तहत भी पुणे पुलिस ने एफआईआर में उनका नाम लिखा था. उन पर हिंसा के पहले पुणे में हुई "एल्गार परिषद" की बैठक में भड़काऊ भाषण देने का आरोप है.
मीडिया में आई खबरों में दावा किया गया है कि दिल्ली पुलिस ने अपने एक मुखबिर द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर खालिद के खिलाफ दंगों की साजिश रचने के आरोप में मार्च में ही एफआईआर दर्ज कर ली थी. इसी बीच दिल्ली दंगों की जांच में पुलिस की एक पूरक चार्जशीट में कुछ जाने माने नेताओं और शिक्षाविदों का नाम आने की खबर पर विवाद छिड़ गया है.
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि दिल्ली पुलिस ने एक पूरक चार्जशीट में पूर्व सांसद और सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी, स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव, जेएनयू की ही अर्थशास्त्री जयति घोष, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और फिल्मकार राहुल रॉय का भी नाम अभियुक्तों के तौर पर दर्ज किया है.
दिल्ली पुलिस ने इन खबरों का खंडन करते हुए कहा है कि येचुरी, यादव, और घोष का नाम अभियुक्तों के तौर पर चार्जशीट में नहीं लिया गया है.
लेकिन मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इन सभी का नाम पुलिस द्वारा पहले से गिरफ्तार कुछ छात्रों और एक्टिविस्टों के कथित कबूलनामे में है. बताया जा रहा है की अलग अलग लोगों के नाम से पुलिस द्वारा दर्ज किए गए ये बयान लगभग पूरी तरह एक जैसे हैं. यहां तक कि इनमें गलतियां भी एक जैसी हैं. कई पन्नों पर जिनके नाम से कबूलनामा दर्ज किया गया है उनके द्वारा हस्ताक्षर से इनकार भी दर्ज है.
इन मामलों की जांच के सिलसिले में पुलिस अपूर्वानंद से पहले ही पूछताछ कर चुकी है और उनका फोन जब्त कर चुकी है. ताजा रिपोर्ट पर उन्होंने एक बयान में कहा है कि सरकार के राजनीतिक बयानों को पुलिस अपनी चार्जशीट में अपराध के तौर पर दोहरा रही है.
विपक्ष के कई नेताओं ने भी पुलिस की कार्रवाई की आलोचना की है. दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे मानवाधिकार संगठन यह पहले ही कह चुके हैं कि दंगों के दौरान खुद दिल्ली पुलिस की ही भूमिका संदिग्ध थी. यह संगठन दंगों में पुलिस की जांच पर भी सवाल उठा चुके हैं. देखना होगा की संसद के मानसून सत्र के दौरान यह चर्चा का विषय बनता है या नहीं.
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