चुनाव पर करोड़ों का सट्टा
२४ मार्च २०१४दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अगले महीने चुनाव होना है और भारत के चुनाव नतीजों के बारे में कभी कोई कयास नहीं लगा पाया है. यहां तक कि ज्यादातर चुनाव सर्वे भी गलत साबित होते आए हैं. ऐसे में सट्टेबाजों के पौ बारह हैं. हालात तो यहां तक पहुंच चुके हैं कि कुछ उम्मीदवार भी अपनी जीत को लेकर सट्टेबाजों से बात करते हैं कि उनकी क्या स्थिति है.
सट्टा बाजार भरोसे नेता
बीजेपी के नेता लालजी टंडन का कहना है, "मुझे लगता है कि उन पर चुनाव सर्वे से ज्यादा भरोसा किया जा सकता है. सट्टा बाजार का उतार चढ़ाव वोटरों के मूड के बारे में बेहतर अनुमान दे सकता है." टंडन की पार्टी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है और बीजेपी ने उनके नाम पर पूरी ताकत झोंक दी है. लोकसभा की 543 सीटों के लिए अगले महीने मतदान शुरू होना है.
पुरानी दिल्ली के सर्राफा बाजार का एक जौहरी खूबसूरती से सट्टेबाजी का भी काम कर डालता है. उसका कहना है, "मैं अपने सर्वे पर यकीन करता हूं, जो आप अखबार या टीवी में देखते हैं, उस पर नहीं." जाहिर है कानूनी वजहों से वह अपना नाम नहीं बताता लेकिन कहता है कि उसका अपना तंत्र बहुत मजबूत है, "मेरा एक सोशल नेटवर्क है. मैं हर किसी से पूछता हूं."
भारत में सट्टेबाजी पर रोक है और केपीएमजी की दो साल पुरानी रिपोर्ट बताती है कि भारत में 3,000 अरब रुपये की सट्टेबाजी हर साल हो जाती है. ज्यादातर सट्टा क्रिकेट मैचों पर लगता है.
7 रेसकोर्स की दौड़
वैसे भारत के प्रधानमंत्री का निवास 7, रेसकोर्स पर है. रेसकोर्स, जहां घुड़दौड़ होती है. घुड़दौड़, जो सट्टे और जुए के लिए मशहूर है. देश के सिर्फ दो राज्यों में कसीनो चलाने का लाइसेंस है. सट्टेबाजों को पता होता है कि उन्हें किसके साथ डील करना है और किसके साथ नहीं. वे सोच समझ कर किसी का सट्टा लेते हैं.
आम तौर पर जौहरी के दुकानों पर यह काम हो जाता है. यहां बड़ी रकम का लेन देन होता है और बड़े आराम से 5,000 से 50 लाख का सट्टा लगाया जा सकता है. मोदी के नाम की सबसे ज्यादा चर्चा है और सट्टा बाजार में फिलहाल उनके लिए 6-5 का भाव चल रहा है. यानि अगर मोदी जीते, तो 100 रुपये लगाने वाले को 120 रुपये मिलेंगे. हालांकि पहले भाव 8-5 था.
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, सट्टा बाजार में भी उसकी हालत खराब है. भ्रष्टाचार से जुड़े मामले और आर्थिक विकास पर लगाम के बाद वोटरों का मन बदलता दिख रहा है और सट्टा बाजार भी इसकी ओर इशारा कर रहा है. राहुल गांधी को कहीं न कहीं कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा है और उनके नाम पर सट्टा बाजार दोगुना पैसे देने को तैयार है. भाव है 1-2. लेकिन सबसे बड़ा सट्टा इस बात पर चल रहा है कि क्या बीजेपी सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटें जुटा पाएगी.
कैसे कैसे सट्टे
इस बात पर भी पैसे लग रहे हैं कि चुनाव के बाद गठबंधन में कौन सी पार्टी किसके साथ जा सकती है. भारत में 1984 के बाद से किसी भी पार्टी ने अपने दम पर सरकार नहीं बनाई है. इसके अलावा अलग अलग सीटों पर सट्टे चल ही रहे हैं. बीजेपी के लालजी टंडन का कहना है, "मुझे कई नेताओं के बारे में पता है, जो सट्टा बाजार में अपनी स्थिति का पता लगाते हैं." हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या वह खुद भी ऐसा करते हैं.
भारत में सर्वे का बुरा हाल है. पिछले महीने एक स्टिंग ऑपरेशन में पता चला कि किस तरह सर्वे करने वाले धांधली करते हैं. सट्टा बाजार ने पिछली बार 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का कयास लगाया था, जो सही साबित हुआ. जबकि उससे पहले 2004 के चुनाव में सर्वेक्षणों में बीजेपी की एनडीए को जीतता हुआ बताया गया था, जो पूरी तरह गलत साबित हुआ.
हालांकि सीएसडीएस के संजय कुमार सट्टा बाजार को कोई श्रेय नहीं देना चाहते हैं, "वे कोई तरीका थोड़े ही अपनाते हैं. वे तो बस यूं ही कयास लगाते हैं."
एजेए/आईबी (रॉयटर्स)