ग्रैमी अवार्ड जीतने वाली पहली पाकिस्तानी महिला की कहानी
१९ अगस्त २०२२अरूज आफताब के अब तक उनकी तीन सोलो एल्बम आ चुके है. उन्होंने डीडब्ल्यू के साथ विशेष बातचीत में बताया कि संगीत से जुड़े सपनों को पूरा करने के लिए, उन्होंने किस तरह सभी चुनौतियों को दूर किया. उन्होंने कहा, "मैं ऐसा संगीत बनाना चाहती थी जो मुझे पसंद हो, जिसे मैंने वाकई में कभी नहीं सुना था, और जिसे मैं सुनना चाहती थी." हालांकि, वह जिस तरह का संगीत सुनना चाहती थीं, उसे बनाने के लिए बेहतर वाद्ययंत्रों और शब्दावली की कमी उन्हें खलती थी. यह वह दौर था जब वह लाहौर में रहती थीं. जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थीं और अपने सपनों को उड़ान देना चाहती थीं, लेकिन लाहौर में रहने वाले अधिकांश युवाओं के लिए संगीत करियर का विकल्प नहीं था.
अलग सोच रखने पर टकराव
सबसे बुरी चीज यह थी कि वह इस माहौल में असहज महसूस कर रही थीं. आफताब ने कहा, "जब मैं बड़ी हो रही थी, तो मुझे लगा कि अलग कपड़े पहनना या अलग दिखना, अलग तरह से सोचना, बहुत ज्यादा टकराव पैदा करता है. इससे मुझे ऐसा महसूस होता था कि मैं जो हूं उसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है. खुलकर सपने देखने की आजादी ना होना या अपने स्वभाव के मुताबिक नहीं जीना, बीमार होने जैसा है और एक कलाकार के लिए यह मौत के समान है.”
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हालांकि, तब तक दुनिया काफी बदल चुकी थी. हर जगह इंटरनेट पहुंच गया था. आफताब के पास भी इंटरनेट की सुविधा थी. 2000 के दशक की शुरुआत में 18 साल की उम्र में उन्होंने जेफ बकले के ‘हालिलोया' गाने को अपने अंदाज में रिकॉर्ड किया था, जो इंटरनेट पर काफी वायरल हुआ. उनके गाने को नैप्स्टर, माइस्पेस और लाइमवायर जैसी फाइल शेयर करने वाली साइटों के जरिए काफी ज्यादा शेयर किया गया था. इस गाने के वायरल होने पर आफताब का आत्मविश्वास बढ़ गया. अपनी इस सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने पढ़ाई के लिए कर्ज लिया और अमेरिका के बर्कले कॉलेज में म्यूजिक प्रोडक्शन और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने चली गईं.
आफताब अमेरिका जाकर ना सिर्फ एक गायिका बनीं, बल्कि उन्होंने अलग-अलग साजों का इस्तेमाल करना भी सीखा. वह म्यूजिक कंपोजर के साथ-साथ प्रोड्यूसर भी बन गईं. वह पुराने गानों को बिल्कुल नये समय के मुताबिक और नये तरीके से गा सकती हैं. कठिन शब्दों को अपने हिसाब से बदल सकती हैं.
पुराने गीतों के साथ नया प्रयोग
वह कहती हैं, "मेरा संगीत सिर्फ पुराने नंबरों को दोहराने जैसा नहीं है. जब मेरे संगीत को ‘कवर' कहा जाता है, तब मैं चिढ़ जाती हूं, क्योंकि यह सिर्फ कवर नहीं है. जब आप कुछ बदलाव करते हैं, खासकर तब जब वह काफी पुराना होता है, तो आप सिर्फ उसकी मूल बातों को ले रहे होते हैं, लेकिन बनाते कुछ नया हैं. ऐसा कुछ जो नया है और पहले ऐसा नहीं किया गया है.”
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आफताब के संगीत में जगह से जुड़ी भावनाओं का काफी ध्यान रखा जाता है, ताकि यह पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो सके. उनका संगीत काफी ज्यादा पाकिस्तानी या पश्चिमी नहीं लगता. इसमें किसी जगह के हिसाब से फर्क नजर नहीं आता. सुनने वाले नई जगह की कल्पना करने पर मजबूर हो जाते हैं. उनके संगीत में सब कुछ शामिल होता है.
आफताब कहती हैं, "यह पीढ़ी वास्तव में साहसी है, नई चीजों की मांग करती है और वह समानता चाहती है. युवा अब किसी दायरे में सिमट कर नहीं रहना चाहते हैं. वर्षों से एशियाई कलाकारों को किनारे कर दिया गया था, लेकिन अब यह उभरती हुई जगह है. ये जगह दुनिया को खूबसूरत चीजों से रूबरू करा रही है. हालांकि, ये खूबसूरत चीजें पहले से ही मौजूद थीं, लेकिन दुनिया को इनके बारे में जानकारी नहीं थी.”
‘खूबसूरत' है उर्दू
आफताब ने अपने तीसरे एल्बम ‘वल्चर प्रिंस' में पाकिस्तान के प्रसिद्ध गजल गायक मेंहदी हसन के गीत ‘मोहब्बत' को अपनी आवाज में गाया है. यह काफी ज्यादा लोकप्रिय हुआ है. इस गजल में शायरी को संगीत की तरह प्रस्तुत किया गया है. इसी गाने के लिए आफताब को 2022 ग्रैमी अवार्ड्स में बेस्ट ग्लोबल म्यूजिक परफॉर्मेंस का अवार्ड मिला है.
अपने इस गाने को लेकर आफताब पहले भी पूरी दुनिया में छा चुकी हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ‘मोहब्बत' गाने को अपनी आधिकारिक समर 2021 प्लेलिस्ट में शामिल किया था.
आफताब उर्दू में ही गाना चाहती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह ‘बहुत सुंदर और गाने के लिहाज से अच्छी भाषा है.' वह कहती हैं, "मुझे इस भाषा में हर वो चीज मिलती है जिसका इस्तेमाल अपनी आवाज को बेहतर बनाने के लिए करना होता है और जिसका इस्तेमाल किसी शब्द को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने के लिए करना होता है. शायरी मन को खुश करती है, लेकिन अतीत की यादों को भी कुरेदती है.”
म्यूजिक कंपोजर और प्रोड्यूसर के तौर पर, आफताब संगीत से जुड़ी पेचीदगियों को समझती हैं. इस वजह से, वह वाद्ययंत्रों और संगीत के तालमेल पर काफी ध्यान देती हैं.
अपने संगीत में अलग-अलग साजों का इस्तेमाल करके वह एक बड़े दर्शक समूह को लुभाती हैं. आफताब कहती हैं, "जो कोई भी आपका संगीत सुन रहा होता है, वह अपने उम्मीद के मुताबिक कुछ ऐसा सुन सकता है जो उसे पसंद हो, जैसे कि पॉप या जैज. जो लोग उर्दू या हिंदी समझते हैं, वे इस रहस्य का आनंद लेते हैं.”
अब बदल रही संगीतकारों की स्थिति
1997 में उनके हमवतन, प्रसिद्ध सूफी गायक नुसरत फतेह अली खान को दो ग्रैमी अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था, लेकिन वे आखिरकार अवार्ड पाने की दौड़ से बाहर हो गए. इस वजह से, आफताब ग्रैमी अवार्ड जीतने वाली पहली पाकिस्तानी कलाकार हैं. उन्होंने संगीत के क्षेत्र में सबसे बड़ा सम्मान हासिल किया है. अपने देश में भी इस कड़ी मेहनत के लिए उन्हें बहुत प्रशंसा मिली है.
आफताब बताती हैं, "मेरे परिवार को संगीत से प्यार है और वे काफी उदार हैं, लेकिन उन्हें समझ में नहीं आया था कि मैं क्या करने की कोशिश कर रही थी. हालांकि, यह दुखद है कि ग्रैमी जीतने के बाद ही कुछ लोगों को यह लगा कि जो मैं इतने वर्षों से कर रही थी वह सही था.”
ग्रैमी अवार्ड जीतने के बाद जब आफताब पाकिस्तान पहुंची, तो उन्होंने महसूस किया कि समय अब काफी बदल चुका है. लाहौर जैसे शहर में संगीतकारों को अब सम्मान और स्वीकृति मिल रही है.
फिलहाल, आफताब यूरोप और अमेरिका में ‘वल्चर प्रिंस' एल्बम के गानों का प्रदर्शन कर रही हैं. अपने पिछले प्रदर्शन के सात साल बाद वह एक बार फिर जर्मनी पहुंची हैं. वह 18 अगस्त को कोलोन शहर में संगीत कार्यक्रम में शामिल हुईं. आने वाले महीनों में वह बर्लिन और हैम्बर्ग में भी शो करेंगी.
आफताब कहती हैं, "जर्मनी के दर्शक वास्तव में काफी अच्छे हैं. वे संगीत का काफी सम्मान करते हैं, क्योंकि वे उस समाज से हैं जहां संगीत की सराहना करने के लिए उनके पास संसाधन, समय और ऊर्जा है.”