ग्रीन केमिस्ट्री पर चर्चा
४ जुलाई २०१३जर्मनी के बवेरिया प्रांत को यहां के खूबसूरत शहर म्यूनिख और यहां होने वाले अक्टूबरफेस्ट और बीयर की मस्ती के लिए जाना जाता है. लेकिन इसी बवेरिया में एक और बेइंतहा खूबसूरत जगह है जहां हर साल दुनिया के सबसे बुद्धिमान लोग जमा होते हैं. लिंडाऊ.. जर्मनी के सबसे दक्षिणी छोर पर एक झील पर बसा छोटा सा टापू. लिंडाऊ कोस्टांस झील पर बसा है. यहां खड़े हो कर एक तरफ जर्मनी के नजारे दिखते हैं तो दूसरी ओर बर्फ से ढके स्विट्जरलैंड के आल्प्स के पहाड़ और तीसरी तरफ ऑस्ट्रिया की वादियां.
यह झील इन तीनों देशों की सीमा पर स्थित है. नीला आसमान, साफ पानी, ताजा हवा और एक शांत माहौल लिंडाऊ को बाकी जगहों से अलग बनाते हैं, और इसी माहौल में मौका मिलता है दुनिया भर में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लोगों को एक दूसरे से और युवा वैज्ञानिकों से मिलने और भविष्य पर चर्चा करने का.
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77 देशों से 626 युवा रिसर्चर
30 जून से 5 जुलाई तक चल रहे लिंडाऊ नोबेल विजेता सम्मलेन में इस बार 11 देशों से 35 नोबेल विजेता शामिल हुए हैं. 63वीं बार हो रहे इस सम्मलेन में इन प्रतिभाओं को सुनने के लिए 77 देशों से 626 युवा रिसर्चर पहुंचे हैं. इनमें 139 के साथ सबसे ज्यादा संख्या जर्मनी के रिसर्चरों की ही है. इसके बाद 92 रिसर्चरों के साथ नंबर है अमेरिका का. तीसरे स्थान पर हैं भारत और चीन. दोनों ही देशों ने अपने 38 रिसर्चरों को यहां भेजा है. इनमें से कई पीएचडी कर चुके वैज्ञानिक हैं तो कुछ यूनिवर्सिटी के छात्र भी हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से मास्टर्स की पढ़ाई कर रही अंजलि दास भी इनमें से एक हैं. सम्मलेन के बारे में डॉयचे वेले से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, "मुझे मेरे एक प्रोफेसर ने इस कॉन्फ्रेंस के बारे में बताया. मैंने फौरन इंटरनेट पर इसके बारे में पता किया और वेबसाइट पर आ कर जब पिछले साल के वीडियो देखे तो मैं दंग रह गयी. यहां आना, नोबेल विजेताओं से मिलना, ये सब हर उस शख्स का सपना है जो वैज्ञानिक बनना चाहता है".
ग्रीन केमिस्ट्री
इस साल केमिस्ट्री यानी रसायन शास्त्र पर ध्यान दिया जा रहा है और सम्मलेन का मुख्य केंद्र है ग्रीन केमिस्ट्री. 1990 के दशक में अमेरिकी वैज्ञानिक पॉल एनेसटस और जॉन सी वॉर्नर ने मिल कर इस ओर लोगों का ध्यान खींचा. इस सिद्धांत के अनुसार रसायन के साथ की जा रही प्रक्रियाओं के दौरान इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि वह पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचाएं.
कम्प्यूटेशनल केमिस्ट्री के क्षेत्र में काम कर रही गरिमा जिंदल इस बारे में बताती हैं, "लैब में हम रसायनों को मिला कर टेस्ट करते हैं. ऐसा करने में हम जहरीला कचरा पैदा करते हैं. लेकिन अगर यही काम हम कंप्यूटर पर कर लें, वीडियो गेम की ही तरह रसायनों को कंप्यूटर में ही मिला कर नतीजे पा सकें तो इस से हम जहरीला कचरा पैदा करने से बच सकेंगे". लिंडाऊ पहुंचे नोबेल विजेता पैनल डिस्कशन के दौरान इस पर चर्चा कर रहे हैं.
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नोबेल विजेताओं से मुलाकात
कॉन्फ्रेंस के दौरान रिसर्चरों के लिए कई तरह के आयोजन किए जा रहे हैं. लेक्चर और वर्कशॉप तो हैं ही, पर साथ ही नोबेल विजेताओं और वैज्ञानिकों के साथ बातचीत के अन्य कई मौके भी हैं. मिसाल के तौर 'साइंस ब्रेकफास्ट'. यह है तो साधारण सुबह का नाश्ता ही, लेकिन आपके साथ नाश्ता करने वाले लोग इसे खास बनाते हैं. नए तरह के एंटीबायोटिक पर शोध कर रहे प्रतीक कुमार भी इसे ले कर उत्साहित हैं, "मैं जर्मनी की केमिकल कंपनी बीएसएफ के कुछ लोगों से मिलने वाला हूं. इसके अलावा मैं इस्राएल के नोबेल विजेता आरोन चीचानोवर के साथ एक क्लास भी करने वाला हूं. मेरे पास उनके लिए कुछ सवाल भी हैं और मैं उम्मीद कर रहा हूं कि मुझे अच्छे जवाब मिलेंगे". प्रतीक का कहना है कि सबसे उत्साह वाली बात तो यही है कि उन्हें यहां एक साथ 30 से भी ज्यादा नोबेल विजेताओं से मिलने का मौका मिल रहा है.
कॉन्फ्रेंस में भविष्य के लिए बेहतर दवाएं बनाने और ऊर्जा के नए विकल्पों पर भी चर्चा हो रही है. सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कई बड़े शोध हो रहे हैं जिन पर यहां तवज्जो दी जा रही है. लिंडाऊ में यह सम्मलेन 1951 से होता आ रहा है. पिछले साल फिजिक्स यानी भौतिक विज्ञान और उस से पहले मेडिसिन यानी चिकित्सा पर. आने वाले सालों में प्रतीक, गरिमा और अंजलि जैसे कई रिसर्चर इस सम्मलेन का फायदा उठा सकेंगे.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया, लिंडाऊ
संपादन: आभा मोंढे