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गे बेटे के लिए मां ने दिया इश्तिहार

२१ मई २०१५

भारत के अखबार विवाह के विज्ञापनों से भरे रहते हैं लेकिन यह विज्ञापन कुछ हट कर है. मुंबई में एक महिला ने अपने 36 साल के बेटे के लिए वर ढूंढने की खातिर अखबार में विज्ञापन दिया है. बेटे के लिए रिश्ते आने भी लगे हैं.

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तस्वीर: Getty Images

मुंबई की पदमा अय्यर ने अपने बेटे हरीश के लिए वधु नहीं, वर ढूंढने के लिए विज्ञापन दिया है. 57 वर्षीय अय्यर ने इस विज्ञापन में लिखा है, "तलाश है 25-40 साल के अच्छे नौकरीपेशा, जानवरों से प्यार करने वाले, शाकाहारी वर की, मेरे बेटे (36, 5'11") के लिए जो एनजीओ में काम करता है." विज्ञापन में ग्रूम यानि वर बड़े अक्षरों में लिखा है. किसी अन्य सामान्य विज्ञापन की तरह यहां भी जाति की बात की गयी, "कोई भी जाति चलेगी (लेकिन अय्यर को प्राथमिकता दी जाएगी)."

हरीश की मां ने जब विज्ञापन देना चाहा तो अखबारों ने इससे इनकार कर दिया. हरीश बताते हैं कि वे हैरान थे कि भारत के दो सबसे बड़े अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया और डीएनए ने कानूनी कारण बताते हुए विज्ञापन छापने से इनकार कर दिया. वहीं हिंदुस्तान टाइम्स ने उनके ईमेल का जवाब ना देने का फैसला किया. इसके बाद एनडीटीवी की वेबसाइट पर उन्होंने गुस्से भरे स्वर में लिखा, "मुझे लगता है कि वक्त आ गया है कि हम अपने पूर्वाग्रही रवैये को स्वीकार लें और अपना नजरिया बदलने की कोशिश करें." आखिरकार मुंबई के दैनिक मिडडे ने विज्ञापन छापा और अब तक हरीश से छह लोग संपर्क कर चुके हैं.

377 का चक्कर

भारत में पिछले दो दशक से समलैंगिकों के अधिकारों के लिए मुहिम चल रही है. 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सेक्शन 377 को गलत ठहराते हुए समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दी. अदालत ने माना कि धारा 377 व्यक्ति के समानता, निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. लेकिन धार्मिक संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज की और 2013 में देश की सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर इसे आपराधिक करार दिया. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि धारा 377 को बदलने का अधिकार केवल संसद के पास है.

धारा 377 अंग्रेजों के जमाने का बनाया हुआ कानून है. 155 साल पहले बने इस कानून के अनुसार, "किसी पुरुष, महिला या जानवर के साथ अप्राकृतिक रूप से किया गया शारीरिक संभोग" आपराधिक है और इसके लिए दस साल कैद की सजा दी जा सकती है. संयुक्त राष्ट्र ने उस समय अदालत के फैसले की निंदा करते हुए इसे "पीछे की ओर एक बड़ा कदम" बताया. मानवाधिकार संगठनों को इस फैसले से काफी धक्का पहुंचा. हरीश अय्यर खुद भी मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और समलैंगिकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे हैं. उनका कहना है कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अपने पार्टनर को पति का दर्जा दिलवा पाएंगे या नहीं, "शायद मेरा रिश्ता कानूनी दृष्टि से नाजायज हो लेकिन मैं अपने पार्टनर के साथ एक अच्छा, शांतिपूर्ण और दोस्ताना जीवन बिता सकूंगा."

आईबी/एमजे (रॉयटर्स, पीटीआई)