गांधी की विरासत के लिए लड़ रहे भारत के सबसे बड़े राजनीतिक दल
२ अक्टूबर २०१९गांधी उपनिवेश विरोध के एक आइकॉन थे जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को स्वतंत्रता आंदोलन का माध्यम बना दिया था. आज भारत की दो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियां, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) गांधी का अनुसरण और उनका कीर्तिगान करने की होड़ में हैं. दोनों पार्टियों ने अपने अपने कार्यकर्ताओं को गांधी से प्रेरित यात्राओं पर जाने के लिए कहा है, जिसके तहत उन्हें रोज 15 किलोमीटर तक की यात्रा करनी होगी और गांवों में ही सोना होगा. बुधवार को इन कार्यक्रमों की शुरुआत करते हुए कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी ने गांधी से प्रेरित एक पद यात्रा का स्वयं नेतृत्व किया. महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ और भारत में एक राष्ट्रीय अवकाश के दिन दिल्ली में हुई यह पदयात्रा कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय से शुरू होकर यमुना नदी के तट पर बने महात्मा गांधी के समाधि स्थल पर खत्म हुई.
आज मुख्य विपक्षी दल के रूप में सक्रिय कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता के बाद कई दशकों तक लोकप्रिय रही. लेकिन उसे पिछले दो लोकसभा चुनावों में बहुत बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है. हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने कुछ ही महीने पहले हुए आम चुनावों में दोबारा भारी बहुमत से जीत हासिल की. कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता प्रणव झा के अनुसार एक आदर्श प्रत्याशी वो होता है जो शराब बिलकुल भी न पीता हो और जो खादी पहनता हो, ठीक महात्मा गांधी की तरह. झा कहते हैं, "ये गांधी की 150वीं वर्षगांठ पर उन्हें एक श्रद्धांजलि की तरह है."
उत्तराधिकार की होड़
पंथनिरपेक्षता और सामाजिक लोकतंत्र की परंपरा वाली कांग्रेस वैसे तो महात्मा गांधी की स्वाभाविक उत्तराधिकारी लग सकती है. गांधी ने खुद भी 1920 के दशक में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया था. लेकिन हाल में सालों में कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व के कारण बीजेपी को गांधी से प्रेरित कई चकाचौंध वाले कार्यक्रमों की रचना का मौका मिला है. इनके पीछे बीजेपी की कोशिश रही है कि वह गांधी की विरासत को अपने राष्ट्रवादी अजेंडा में समाहित कर सके.
इतनी विविध पार्टियों के गांधी पर अधिकार जमाने के पीछे मुख्य कारण गांधी का जटिल संदेश है जो राजनीतिक अफरा-तफरी में कहीं खो सा गया है. गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के मुखिया थे और बाद में वह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और कांग्रेस पार्टी के ध्वजवाहक जवाहरलाल नेहरू के मार्गदर्शक भी बने. नेहरू और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने गांधी की धर्मनिरपेक्ष बहुलता के प्रति निष्ठा को भारत के संविधान में जोड़ा. गांधी ने अपना उपनाम नेहरु की बेटी इंदिरा को दिया और इंदिरा गांधी का ही परिवार 1947 में ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता पाने के बाद से लेकर अभी तक कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व कर रहा है.
पर इस साल कांग्रेस से गांधी की वर्षगांठ के जश्न में शामिल होने में थोड़ी देर हो गई. अब अपने अधिकार का दावा करने में उसे संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि मोदी और बीजेपी लगातार और जोर शोर से महात्मा का नाम जप रहे हैं और अपने आप को उनसे संबद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं.
गांधी की राजनीति भी सुस्पष्ट नहीं है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली में दर्शन और साहित्य पढ़ाने वाली दिव्या द्विवेदी कहती हैं, "जहां गांधी बहुलतावाद की वकालत करते थे वहीं उनका यह भी मानना था कि भारतीय राजनीति में धर्म की भी एक जगह है." द्विवेदी खुद भी 'गांधी एंड फिलोसोफी' नामकी पुस्तक की सहलेखिका हैं, जिसमें उन्होंने गांधी के दर्शन को धर्म और राजनीति के परिदृश्य में समझा है.
योजनाओं को गांधी का नाम देना
मोहनदास करमचंद गांधी गुजरात के एक वकील थे जिन्होंने अहिंसात्मक प्रतिरोध का इस्तेमाल करके भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का सफलतापूर्वक संचालन किया. भारतीय रुपए के हर नोट पर उनका चेहरा छपा रहता है और जिस चरखे को उन्होंने सुप्रसिद्ध किया था वह भारत के राष्ट्रीय ध्वज के केंद्र में है. द्विवेदी कहती हैं, "आज हर राजनीतिक परियोजना का गांधी के बैनर तले होने का दावा करने का कारण यह है कि आज अगर भारत को कोई चीज परिभाषित करती है तो वह है उपनिवेश विरोधी होना." उनका कहना है, "वह गांधी ही हैं जिन्होंने इस उपनिवेश विरोधी परियोजना की सबसे यादगार रूपरेखा दी थी ताकि इससे हर किसी को यह कहने का मौका मिल सके कि वह एक बंधन मुक्ति के अभियान के साथ जुड़ा हुआ है."
कांग्रेस प्रवक्ता प्रणव झा कहते हैं महात्मा गांधी हमेशा कांग्रेस के निर्देशक प्रकाश और संचालक शक्ति रहेंगे. कांग्रेस की विचारधारा मध्यमार्गी परंतु वामपंथ की तरफ झुकाव वाली, पंथनिरपेक्ष और सामाजिक लोकतंत्र में विश्वास करने वाली है और इस पार्टी ने भारत को 14 में से 6 प्रधानमंत्री दिए हैं. लेकिन दिल्ली से सटे गुड़गांव में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक गौरव राठौर कहते हैं, "आज ऐसे मतदाताओं की संख्या बढ़ रही है जो यह नहीं मानते कि कांग्रेस पार्टी ही भारत का भविष्य है." इसी साल हुए आम चुनावों में संसद की 543 सीटों में से कांग्रेस ने सिर्फ 52 पर जीत हासिल की जबकि भाजपा ने 303 पर. राठौर बताते हैं, "मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस ने पिछले चुनाव के बाद से अभी तक कोई आत्मविश्लेषण किया है. उसके पास कोई भी नया विचार नहीं है. उसे लगता है कि उसका इतिहास और पुरानी प्रतिष्ठा उसके लिए काफी है." राठौर यह भी कहते हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र में होने वाले चुनावों के लिए कांग्रेस कोई खास तैयारी भी नहीं कर रही है और वह निश्चित ही दोनों राज्यों में हार जाएगी.
कैसा होता गांधी के सपनों का भारत
कांग्रेस पार्टी की बहुलतावादी सोच अब नेपथ्य में चली गई है और आगे आ गई है बीजेपी की ऐसी विचारधारा जो एक केंद्रीकृत और समानांगी राष्ट्र की वकालत करती है. बीजेपी के अनुसार हिंदुत्व ही जीवन जीने का और राज्य चलाने का सब से परिपूर्ण तरीका है. इसके विपरीत महात्मा गांधी पूरे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान धार्मिक, भाषाई और नस्लीय विविधता के मुखर समर्थक थे. इसके बावजूद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में बीजेपी को गांधी के सिद्धांतों का सच्चा उत्तराधिकारी बताया था.
द्विवेदी कहती हैं, "अगर आप गांधी की विस्तृत विचारधारा को देखें तो यह उतना अवास्तविक नहीं है जितना लगता है. गांधी ने आज के भारत में हिंदू बहुसंख्यक समाज की पहचान को एक करने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की थी और उनकी हिंदू-मुस्लिम अवधारणा का मतलब यह था कि सबको अपनी-अपनी आस्था में श्रद्धा रखने की स्वतंत्रता होगी.
बीते कुछ सालों में बीजेपी गांधी से भी आगे बढ़ गई है और भारत के कई पथ प्रदर्शकों की विरासत पर अपने अधिकार का दावा कर रही है. इनमें शामिल हैं देश के पहले उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल और बाबासाहेब अंबेडकर, जो कि मुखर रूप से हिंदुत्व विरोधी थे.
हालांकि गांधी के साथ किया जाने वाला ज्यादातर राजनीतिक संवाद सतही है - चाहे वह कांग्रेस का हो या भाजपा का या किसी भी और पार्टी का. उनका अनुसरण करने के नाम पर या तो उनके वस्त्र या उनकी पदयात्राओं की नकल की जाती है या उनसे जुड़े चिन्हों का इस्तेमाल किया जाता है.
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान का चिर-परिचित चिन्ह गांधी का गोल चश्मा है. द्विवेदी कहती हैं, "गांधी का नाम और उनके चिन्हों का इस्तेमाल करके हर चीज को एक नैतिक और उपनिवेश विरोधी चरित्र दिया जा सकता है. लेकिन उनके जो असली प्रस्ताव थे - जैसे भारत के गांवों को पुनर्जीवित करना या उपभोक्तावाद से दूर रहना- उनका अनुसरण करना किसी भी पार्टी के लिए कहीं ज्यादा कठिन है."
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