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खतरे में काशी का वजूद

३ जून २०१४

राजा महाराजाओं की जीवनशैली की गवाह रही ऐतिहासिक कोठियां और मंदिर वाराणसी की पहचान हैं. लेकिन अब उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी की इन इमारतों का वजूद खतरे में है.

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तस्वीर: DW/Murali Krishnan

काशी की इन प्राचीन कोठियों के दीदार करने के लिए हजारों पर्यटक हर साल वाराणसी आते हैं. गंगा किनारे स्थित इन कोठियों की शोभा ही अलग है. काशी के घाटों का महत्व भी इन्हीं कोठियों से है. इनके प्राचीन स्वरूप को नष्ट कर उसकी जगह आलीशान होटल खड़ा करने का प्रचलन काशी के अतीत का मखौल बनाने जैसा है.

स्थानीय निवासियों का मानना है कि तीनों लोकों से न्यारी काशी में निवास करने वाले लोगों को सहज मोक्ष मिल जाता है. शायद इसीलिए देश के तमाम राजे रजवाडों और अमीरों ने काशी में प्रवास के लिए गंगा तट पर कोठियां बनवाई. ये कोठियां जहां अपनी निराली छटा और वास्तुकला के लिए विख्यात हैं और निश्चित रुप से संस्कृति और इतिहास की विलक्षण धरोहर हैं.

Varanasi Ganga Umweltverschmutzung
तस्वीर: DW

गंगा घाट के किनारे बनी ये इमारतें रखरखाव के अभाव में जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी हैं. ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व की कोठियों में जो ठीक ठाक हैं, उन पर प्रभावशाली और दबंग लोगों ने कब्जा जमा रखा है. भान मंदिर महल, राणा महल और अहिल्याबाई घाट पर बनी इंदौर की महारानी अहिल्या बाई कोठी बुरी हालत में हैं. इसी तरह राजा चेत सिंह का किला और रीवा कोठी समेत अनेक कई कोठियां और महल देखरेख के अभाव में खंडहर बनने की कगार पर हैं. इनमें से कुछ इमारतों में तो लोग सालों से जमे हैं. उनका किराया इतना कम है कि टैक्स टैक्स नहीं चुकाया जाता. कई कोठियों का वास्तविक स्वरूप नष्ट कर उन्हें होटलों में परिवर्तित किया जा चुका है.

काशी की इन धरोहरों को बचाने के लिए पुरातत्व विभाग और जिला प्रशासन कतई गंभीर नहीं है. कई कोठियों में तो नगर निगम एवं जिला प्रशासन की लापरवाही का फायदा उठाकर लोग जबरन ही रह रहे हैं. एक जनहित याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गंगा से 20 मीटर तक के दायरे में किसी नए निर्माण पर रोक लगा रखी है. लेकिन नगर के कई स्थानों पर अदालती आदेश की अनदेखी कर नए निर्माणकार्य जारी हैं.

आईबी/एएम (वार्ता)