खतरे उठाकर किक लगातीं सोमाली महिला फुटबॉलर
२३ मार्च २०१८मैदान के पास ही कुछ सोमाली नौजवान खड़े होकर लड़कियों को खेलते देख रहे हैं. कुछ लोगों को उनका इस तरह खेलना पसंद नहीं है. फिर भी वे उन्हें देख रहे हैं. दरअसल सोमालिया में लड़कियों का फुटबॉल खेलना बहुत ही अनोखी बात है. एक तो सोमाली समाज बेहद रुढ़िवादी है और दूसरा इन लड़कियों को कट्टर आतंकवादी संगठन अल शबाब का खतरा है. अल कायदा से जुड़ा अल शबाब अकसर सोमाली राजधानी मोगादिशु में हमले करता रहा है और वह फुटबॉल जैसे मनोरंजन के साधनों को बुरा समझता है और अगर महिलाएं ऐसे खेल खेलें तो उसकी नजर में वह और भी बुरा है.
मोगादिशु में फुटबॉल खेलने वाली 20 साल की एक खिलाड़ी हिबाक अब्दुकादिर का कहना है, "डर तो हमें लगा ही रहता है. हालांकि पिच तक पहुंचने से पहले हम अपनी टीशर्ट और निक्कर के ऊपर भारी भरकम कपड़े पहने रहते हैं. खेल वाले कपड़ों को पहनकर आम तौर पर यहां चलना बहुत ही मुश्किल है. हम कभी आम जिंदगी में स्पोर्ट्स वाले कपड़े नहीं पहनते."
हिबाक मोगादिशु की उन 60 लड़कियों में से एक हैं जो सोमालिया के पहले महिला फुटबॉल क्लब गोल्डन गर्ल के सेंटर में आकर ट्रेनिंग करती हैं.
28 साल के मोहम्मद अबु बकर अली इस सेंटर के सह संस्थापक हैं. उनका कहना है कि सोमालिया में महिला फुटबॉलर नहीं थीं और इसी बात ने उन्हें यह सेंटर शुरू करने के लिए प्रेरित किया. वह कहते हैं, "हम कोशिश कर रहे हैं कि ये लड़कियां सोमालिया की पहली पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी बनें," हालांकि यह काम आसान नहीं है. वह कहते हैं, "जब लड़कियों को ट्रेनिंग करनी होती है तो हम उन्हें उनके घरों से यहां लाते हैं और बाद में वापस घर भी छोड़ते हैं क्योंकि वे लड़कियां हैं और हमें उनकी सुरक्षा के बारे में सोचना पड़ता है."
अली कहते हैं कि सुरक्षा से लेकर संसाधनों तक, उनके समाने कई चुनौतियां हैं लेकिन वह सोमालिया में महिला फुटबॉल क्लब स्थापित करने के अपने इरादे से पीछे हटने वाले नहीं हैं. उनका कहना है, "हम समझते हैं कि यह सही समय है जब हमें अलग तरह से सोचने का साहस दिखाना चाहिए."
गोल्डन गर्ल सेंटर में ट्रेनिंग करने वाली बहुत लड़कियों का कहना है कि वे हमेशा से फुटबॉल खेलना चाहती थीं, लेकिन उन्हें कभी मौका नहीं मिला था. 19 साल की सोहद मोहम्मद कहती है, "मैं सात महीने से फुटबॉल खेल रही हूं, लेकिन मेरे परिवार को सिर्फ दो ही महीने से इस बात की जानकारी है. मैं अपनी मां को बताती नहीं थी कि कहां जा रही हूं, वरना वह मुझे नहीं जाने देती. लेकिन अब कम से कम मेरी मां को इससे कोई समस्या नहीं है. हालांकि परिवार के बाकी लोग अब भी खुश नहीं है."
सोमालिया में महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर छोटे कपड़े पहनने की अनुमति नहीं है. इस्लामी विद्वान कहते हैं कि निक्कर, टी शर्ट और चुस्त ट्राउजर इस्लामी पोशाकों के अनुरूप नहीं हैं. ट्रेनिंग फील्ड के पास रहने वाले यूसुफ अब्दीरहमान का कहना है, "मैं यहां आकर उन्हें ट्रेनिंग करते हुए देखता हूं. लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं कभी नहीं चाहूंगा कि मेरी बहन इस तरह से खेले. यह समाज की नजर में अच्छा नहीं है क्योंकि वे छोटे कपड़ों में नंगी दिखती हैं."
वहीं पास ही में खड़े मोहम्मद याह्या को महिलाओं के फुटबॉल खेलने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उनके कपड़ों को लेकर वह भी सहज नहीं हैं. उनका कहना है, "मैं समझता हूं कि महिलाओं के फुटबॉल खेलने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन उन्हें अपना ड्रेस कोड बदलना चाहिए. वह कुछ ऐसा पहनें जो स्लिम फिटिंग का ना हो. लेकिन जब तक उनके शरीर का कोई हिस्सा नहीं दिखता, वह इस्लामी ड्रेस कोड के हिसाब से ठीक है." लेकिन गोल्डन गर्ल्स को इन सब बातों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. हिकाब अब्दुकादिर कहती हैं, "मेरी महत्वाकांक्षा इतनी ऊंची है कि बार्सिलोना के लिए खेलने वाली महिला फुटबॉलरों के जितनी तरक्की करूं."
एके/एमजे (एएफपी)