क्रांति की तस्वीर और शांति की आस
११ फ़रवरी २०१२स्पेन के फोटोग्राफर सैमुएल अरांडा के कैमरे ने इस फ्रेम को यमन में कैद किया. वह यमन में प्रदर्शनों के दौरान लुके छिपे फोटो खींच रहे थे. लेकिन न्यू यॉर्क टाइम्स में जब यह तस्वीर छपी, तो तहलका मच गया. यह 15 अक्तूबर को यमन में एक मस्जिद के अंदर ली गई फोटो है लेकिन अरब की क्रांति और उसमें औरतों की भागदारी को बिन बोले बयान कर देती है.
वर्ल्ड प्रेस फोटो अवार्ड में अरांडा की तस्वीर को पुरस्कार देते हुए जज कोयू कोयूह ने कहा, "यह ऐसी तस्वीर है, जो पूरे क्षेत्र की कहानी कहती है. यह यमन, मिस्र, ट्यूनीशिया, लीबिया या सीरिया कहीं की भी हो सकती है. लेकिन यह तस्वीर एक निजी कहानी भी कहती है. यह औरतों की दास्तान भी बता रही है कि वे सिर्फ लोगों का ध्यान नहीं रख रही हैं, बल्कि वे भी प्रदर्शनों में कार्यरत हैं."
दूसरे अरब देशों के साथ पिछले साल यमन में भी क्रांति की शुरुआत हुई थी और लंबे वक्त से शासन कर रहे अली अब्दुल्लाह सालेह से हटने की अपील की गई. सालेह खुद से तो नहीं हटे लेकिन हाल ही में उन्होंने इलाज के बहाने देश छोड़ दिया और यह भी कह गए कि वह अब दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं.
इकलौते विदेशी पत्रकार
यमन में विदेशी मीडिया को इजाजत नहीं मिली थी और अरांडा वहां काम कर रहे इकलौते विदेशी फोटोग्राफर थे. जूरी की एक और सदस्य नीना बेरमान का कहना है, "पश्चिमी जगत में बुर्के के अंदर किसी महिला को इस अंदाज में हम शायद ही कभी देखते हैं. ऐसा लगता है कि जैसे पूरी अरब क्रांति इसी तस्वीर में सिमट गई हो." फोटोग्राफर को अप्रैल में पुरस्कृत किया जाएगा और 10,000 यूरो का पुरस्कार उन्हें दिया जाएगा.
वर्ल्ड प्रेस फोटो के अध्यक्ष आयेदान सुविलन का कहना है, "हो सकता है कि हम कभी न जान पाएं कि यह औरत कौन है, जो अपने एक जख्मी रिश्तेदार को बांहों में लपेटे हुए है. लेकिन ये दोनों मिल कर आम इंसान की साहस के प्रतीक बन गए हैं, जिसके बल पर मध्य पूर्व में इतिहास बदल रहा है."
दर्द से तड़पते यमन के इस मर्द को बुर्के में लिपटी औरत ने अपने आगोश में भर लिया है. पहले फोटोग्राफर ने समझा कि यह मर्द उसका पति होगा लेकिन इस बात की पुष्टि कभी नहीं हो पाई.
तहरीर का एक साल
इस बीच मिस्र में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के सत्ता से हटने का एक साल पूरा हो गया है. भारी दबाव के बीच पिछले साल 11 फरवरी को मुबारक ने सत्ता छोड़ दी थी. उसके बाद उन्हें दो बेटों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. मिस्र में उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है और बीमार मुबारक आम तौर पर स्ट्रेचर पर लद कर सुनवाई में आते हैं.
हालांकि साल भर बाद भी मिस्र की जनता के लिए लोकतंत्र ख्वाब ही बना हुआ है. चुनाव तो हुए हैं लेकिन अभी तक नई सरकार नहीं बन पाई है.
रिपोर्टः एएफपी, एपी/ए जमाल
संपादनः ओ सिंह