क्यों खास है अमरनाथ
अमरनाथ यात्रा सिर्फ हिंदुओं का तीर्थस्थल ही नहीं है, यह हिंदू मुसलमानों के सौहार्द के प्रतीक के रूप में भी जानी जाती है. अमरनाथ हिंदुओं के लिए एक तीर्थस्थल है जहां वो बाबा बर्फानी के दर्शन करने जाते हैं.
हिंदुओं का प्रमुख तीर्थस्थल
अमरनाथ हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है. हिंदू धर्म में पवित्र समझी जाने वाली अमरनाथ की यह गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर यानी 12,756 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां तक केवल पैदल या खच्चर के जरिये ही पहुंचा जा सकता है. यहां पहुंचने में लगभग पांच दिन लगते हैं. कठिन रास्ते को पार करके गुफा तक पहुंचा जाता है.
गुफा का महत्व
यहां की प्रमुख विशेषता इस गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का बनना है. प्राकृतिक हिम से बने होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं. माना जाता है कि हिंदुओं के भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को इसी गुफा में अमरत्व की कथा सुनाई थी.
सुरक्षा व्यवस्था
अमरनाथ यात्रा के दौरान कड़ी सुरक्षा होती है. यात्रियों की सुरक्षा के लिए हजारों पुलिसकर्मी सुरक्षा में तैनात किये जाते हैं. इस यात्रा की सुरक्षा में सैटेलाइट ट्रैकिंग सिस्टम, बुलेट प्रूफ बंकर, खोजी कुत्ते और सुरक्षा दस्ते की गाड़ियां जम्मू से पहलगाम तक तैनात किये जाते हैं. तीर्थयात्रा मार्ग की निगरानी के लिए ड्रोन और हेलीकॉप्टर भी इस्तेमाल किये जा रहे हैं.
यात्रियों पर हमले
2000, 2001 और 2002 में अमरनाथ में आतंकवादी हमले हो चुके हैं. हफिंग्टन पोस्ट की एक रिपोर्ट अनुसार साल 2000 में हुए सबसे बड़े हमले में 89 से भी ज्यादा यात्री मारे गए थे. अमरनाथ यात्रा पर जुलाई 2017 में भी हमला हुआ जिसमें सात लोगों की मौत हो गयी.
4 साल नहीं हुई यात्रा
अमरनाथ यात्रा पर हमलों की लगातार आशंका बनी रहती है. आतंकी हमलों के खतरे से इस यात्रा को 1991 से 1995 के बीच में रोक दिया गया था. 1996 में जब यात्रा को बहाल किया गया तो पहले से भी ज्यादा लोग इस यात्रा पर पहुंचे.
यात्रा की मुश्किलें
3,888 मीटर की ऊंचाई और बेहद कठिन रास्ते पर होने के कारण यह यात्रा बेहद मुश्कल बन जाती है. यात्रियों को भारी ठंड ही नहीं बर्फ, हिमस्खलन, खराब मौसम और ऑक्सीजन की कमी से भी जूझना पड़ता है. 1990 और 1996 में यहां खराब मौसम की वजह से सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
यात्रियों को सलाह
कठिन चढ़ाई होने की वजह से अमरनाथ यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे किसी भी रूप में शारीरिक रूप से अक्षम हों तो यात्रा पर न जाएं. यहां यात्रियों को कई बार सांस से संबंधित परेशानियां भी होने लगती हैं. साल 2012 में बड़ी संख्या में यात्रियों की मौत इस कठिन चढ़ाई को चढ़ने के दौरान हो गयी थी.
रोजगार के नए मौके
अमरनाथ यात्रा के दौरान होटलों, भंडारों और लोगों को यात्रा पर ले जाने वाली पालकियों और गधों और खच्चरों के जरिए स्थानीय लोगों के लिए रोजगार पैदा होता है. यहां घाटी में हजारों मुसलमानों की दुकान हैं जो मंदिर में चढ़ाये जाने वाले फूल और प्रसाद की हैं. इसके अलावा पूरे रास्ते में बड़ी संख्या में भंडारे चलते हैं, जहां यात्रियों को मुफ्त भोजन, जलपान और दूसरी सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं.
सौहार्द का प्रतीक
रोजगार और आर्थिक पहलू से अलग यह यात्रा हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र के रूप में भी देखी जाती है. हर साल बड़ी संख्या में हिंदू अमरनाथ की यात्रा के लिए घाटी पहुंचते हैं तो स्थानीय मुसलमान उनके लिए कुली और गाइड का काम करते हैं. उनके खाने की व्यवस्था करते हैं.