क्या पर्यावरण को वाकई बचा पाएंगे जो बाइडेन?
२१ जनवरी २०२१डॉनल्ड ट्रंप उन लोगों में से थे जिन्हें जलवायु परिवर्तन के विज्ञान पर भरोसा नहीं है. 2017 में उन्होंने पेरिस समझौते से अलग होने का फैसला किया. जहां दुनिया का हर देश इस समझौते में शामिल है, वहीं दुनिया की सबसे बड़ी ताकत कहा जाने वाला अमेरिका ही इसका हिस्सा नहीं रहा. जो बाइडेन का कहना है कि ट्रंप ने पर्यावरण को जितना नुकसान पहुंचाया, उस सब को वह पलटना चाहते हैं. लेकिन क्या वाकई ऐसा मुमकिन है. आइए जानते हैं कि पर्यावरण के लिहाज से बाइडेन ने क्या क्या वादे किए हैं और उनके सामने क्या क्या चुनौतियां हैं.
2050 तक क्लाइमेट न्यूट्रल बनेगा अमेरिका?
जो बाइडेन यूरोपीय संघ की तरह अमेरिका को भी 2050 या उससे भी पहले क्लाइमेट न्यूट्रल बनाना चाहते हैं. पर्यावरणविदों ने इसका स्वागत किया है. इस योजना की व्यवहारिकता के बारे में अमेरिका के गैर संगठन एंवायरनमेंटल डिफेंस फंड के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट नैट केयोहेन का कहना है, "दुनिया के तीन सबसे बड़े क्लाइमेट उत्सर्जक - ईयू, चीन और अब अमेरिका 2050 या 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की शपथ ले रहे हैं. यह एक बहुत बड़ा कदम है."
अकसर देश कार्बन न्यूट्रल बनने की बात करते हैं जिसका मतलब होता है कि वे कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन को काबू में करने पर काम कर रहे हैं. लेकिन क्लाइमेट न्यूट्रल होने से मतलब उन सभी गैसों से है, जिनके उत्सर्जन से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. सीओ2 की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है. इसके बाद मीथेन का नंबर आता है.
अमेरिका को क्लाइमेट न्यूट्रल बनाने के लिए बाइडेन क्या करेंगे, यह योजना तो सार्वजनिक नहीं की गई है लेकिन नैट केयोहेन का कहना है कि उनका पहला काम 2005 की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन को पचास फीसदी कम करना होना चाहिए.
क्या क्या करेंगे बाइडेन?
जर्मन पर्यावरणवाद क्रिस्टोफ बेर्टराम का कहना है कि ऐसा कोई एक बड़ा कदम नहीं हो सकता जिसे आज उठाया जाए और जो भविष्य को बदल दे, "राजनीतिक उद्देश्यों को देखते हुए जरूरी है कि आप बाकी नीति निर्माताओं को और समाज के दूसरे हिस्सों को भी साफ साफ बताएं कि लंबे समय के लिए आपकी योजनाएं क्या हैं."
2050 तो अभी बहुत दूर है लेकिन सब यही जानना चाहते हैं कि बाइडेन फौरन क्या करेंगे. इनमें अमेरिका के पावर सेक्टर को 2035 तक क्लाइमेट न्यूट्रल बनाना सबसे ऊपर है. बेर्टराम कहते हैं कि इस दिशा में अगले तीन से चार साल में ही साफ नतीजे देखे जा सकेंगे. इसके अलावा यातायात में और उद्योग में मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर भी ध्यान दिया जाएगा. केयोहेन का कहना है कि मीथेन को कम करने पर बाइडेन पहले दिन से ही काम कर सकते हैं.
1990 से 2017 तक अमेरिका में हुए मीथेन उत्सर्जन का 31 फीसदी वहां के तेल और गैस उद्योग के कारण हुआ. इसके बाद कृषि उद्योग का नंबर आता है.
दुनिया का नेतृत्व कर पाएगा अमेरिका?
चार साल के "अमेरिका फर्स्ट" के बाद बाइडेन ने दुनिया के साथ मिल कर जलवायु परिवर्तन का सामना करने का फैसला किया है. केयोहेन का कहना है कि पिछले चार सालों में अमेरिका के प्रति दुनिया का रवैया बदला है. ऐसे में बाइडेन पर दोबारा देशों का भरोसा जीतने का भारी काम आया है.
बेर्टराम का कहना है कि उन्हें यकीन है कि अमेरिका एक बार फिर पर्यावरण को बचाने के लिए नेतृत्व करेगा. उनके अनुसार अमेरिका के कई राज्यों में पर्यावरण के लिए कई तरह के प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिनका बाइडेन को फायदा मिलेगा.
वहीं, अमेरिका स्थित गैर सरकारी संगठन क्लाइमेट एंड एनर्जी प्रोग्राम की रेचल क्लीटस का कहना है कि बाइडेन को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने होंगे, "दुनिया अब अमेरिका की बातें नहीं सुनना चाहती, उसके उठाए कदम देखना चाहती है." पेरिस संधि से अमेरिका के अलग होने को वह शर्मनाक बताती हैं. उनका कहना है, "हमारी नजरें उन पर (बाइडेन पर) रहेंगी कि पहले 100 दिनों में वे क्या सब करते हैं. और पहले दिन में किया उनका काम भी बड़ा बदलाव लाएगा."
रिपोर्ट: इलियट डग्लस/आईबी
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