दिल्ली दंगे: अदालत ने उठाए जांच पर सवाल
२९ मई २०२०उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर कई सवाल पहले से उठ रहे थे. अब दिल्ली की एक अदालत ने इस जांच पर ऐसी टिप्पणी की है जिस से इन सवालों को वैधता मिल गई है. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में अतिरिक्त सेशंस जज धर्मेंद्र राणा ने कहा है की ऐसा लगता है कि "जांच में सिर्फ एक पक्ष को निशाना बनाया जा रहा है."
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, दंगों से जुड़े एक मामले पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में जज राणा ने कहा, "केस डायरी को पढ़ने से एक परेशान करने वाला तथ्य निकल कर आता है. ऐसा लगता है कि जांच में सिर्फ एक पक्ष को निशाना बनाया जा रहा है. जांच अधिकारी भी अभी तक ये नहीं बता पाए हैं कि दूसरे पक्ष की संलग्नता में क्या जांच की गई है." जज ने मामले से संबंधित डीसीपी को केस पर "निगरानी" रखने को और "निष्पक्ष जांच सुनिश्चित" करने को कहा.
सुनवाई जामिया मिल्लिया इस्लामिया के 24 वर्षीय छात्र आसिफ इकबाल तन्हा की गिरफ्तारी को लेकर थी. तन्हा को गुरूवार 21 मई को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आतंकवादियों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था. पुलिस का आरोप है कि तन्हा ने 15 दिसंबर 2019 को दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर में नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किया था और अपने भाषण से वहां जमा हुई भीड़ को भड़काया था, जिसके बाद वहां हिंसा हुई.
तन्हा सात दिनों से पुलिस हिरासत में थे और जज धर्मेंद्र राणा की अदालत में सुनवाई उनकी न्यायिक हिरासत को लेकर थी. जज राणा ने उनकी 30 दिन की न्यायिक हिरासत की मंजूरी तो दे दी, लेकिन पुलिस की जांच में साफ दिख रही त्रुटियों को रेखांकित भी किया. जज ने अपने आदेश में विस्तार से नहीं बताया कि वो किन पक्षों की बात कर रहे थे, लेकिन इस मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों की सूची देखकर ये स्पष्ट हो जाता है कि किन पक्षों की बात हो रही है.
तन्हा से पहले जामिया के ही दो और छात्र मीरान हैदर और सफूरा जरगर को पुलिस यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर चुकी है. स्पेशल सेल ने हैदर और जरगर के अलावा इसी मामले में कांग्रेस पार्टी की पूर्व निगम पार्षद इशरत जहां और एक्टिविस्ट खालिद सैफी को भी हिरासत में ले लिया था. ये सभी लोग दंगों से पहले दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में शामिल थे.
कुछ जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता, अधिवक्ता और एक्टिविस्टों ने पुलिस की इस कार्रवाई की पहले भी कड़ी आलोचना की है और आरोप लगाया है कि दिल्ली पुलिस युवा और पढ़े लिखे एक्टिविस्टों पर झूठे आरोप लगा रही है. वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया है कि जो लोग हिंसा से पीड़ित थे पुलिस उन्हीं को निशाना बना रही है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद का कहना है कि जिन लोगों पर शुरू में आरोप लगे थे वो खुले घूम रहे हैं और एक्टिविस्टों को हिरासत में लिया जा रहा है.
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