कोरोना: क्या कई राज्य जांच में कमी कर रहे हैं?
५ जून २०२०दिल्ली में रहने वाले 50-वर्षीय राजेश गुप्ता के 21 साल के बेटे को कोविड-19 संक्रमण हो चुका है. राजेश खुद भी बुखार से पीड़ित हैं और उन्हें शक है कि कहीं उन्हें और उनकी पत्नी को भी संक्रमण लग ना चुका हो. पुष्टि के लिए वो अपनी और अपनी पत्नी की कोविड-19 के लिए जांच करवाना चाह रहे हैं लेकिन जांच ही नहीं हो पा रही है.
तालाबंदी की छाया से बाहर आते भारत के शहरों में ये समस्या सिर्फ राजेश की नहीं है. कई राज्यों से जांच में अचानक कमी हो जाने की खबरें आ रही हैं. दिल्ली में स्थिति विशेष रूप से गंभीर है. राष्ट्रीय राजधानी में अभी तक कुल 25,000 से भी ज्यादा मामले आ चुके हैं और रोजाना कभी 1,000 तो कभी 1,500 से भी ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं.
लेकिन क्या ऐसे में जांचों की संख्या जान बूझकर गिराई जा रही है? दिल्ली सरकार का दावा है कि दिल्ली में हर 10 लाख लोगों पर 11,712 टेस्ट किए जा रहे हैं, जो 2,976 टेस्ट के राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है. लेकिन वहीं राजेश जैसे लोग शिकायत भी कर रहे हैं कि निजी प्रयोगशालाएं जांच के लिए बुकिंग लेकर फिर रद्द कर दे रही हैं.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार दिल्ली सरकार ने कुछ ही दिन पहले निजी प्रयोगशालाओं को कहा था कि वे ऐसे लोगों की जांच करनी बंद कर दें जिनमें कोविड-19 के कोई भी लक्षण ना दिख रहे हों. दिल्ली सरकार का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि बिना लक्षण वाले लोग भी कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने पर निजी अस्पतालों में भर्ती हो जा रहे हैं.
ऐसा करने से जिन बिस्तरों को गंभीर कोविड मरीजों के लिए बचा कर रखा जा सकता था उन्हें घेर लिया जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि सरकार के इन्हीं निर्देशों की वजह से निजी प्रयोगशालाओं ने टेस्ट करने कम दिए हैं, जिसकी वजह से राजेश जैसे लोग परेशान हो रहे हैं.
मुंबई सबसे ज्यादा संक्रमण के मामलों वाले शहरों की सूची में पहले स्थान पर है. वहां अभी तक लगभग 45,000 मामले सामने आ चुके हैं और रोजाना 1,000 से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं लेकिन मई के महीने में शहर में जांचों की संख्या को बढ़ाया नहीं गया.
मई में रोज 4,000 से 4,200 टेस्ट ही किए गए. दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र में ऐसा सिर्फ मुंबई में किया गया. इसी महीने में राज्य स्तर पर जांचों की संख्या 7,000 से बढ़कर 14,000 प्रतिदिन हो गई. बताया जा रहा है कि मुंबई में हर दस लाख लोगों पर 13,400 टेस्ट किए जा रहे हैं, जो दिल्ली से तो ज्यादा है लेकिन चेन्नई से कम है.
यही हाल बहुत से और भी शहरों और राज्यों का है. कुछ रिपोर्टों के अनुसार इसमें कम संसाधनों वाले राज्य जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड से लेकर ज्यादा संसाधनों वाले गुजरात, केरल और पंजाब भी शामिल हैं. मई में विशेष रूप से टेस्टिंग की गति में कमी आई है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा करने से नुकसान ये होगा कि राज्यों को उनकी असली स्थिति का अनुमान नहीं हो पाएगा और वो आने वाली परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे.
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