कोरवई बना विश्व धरोहर
मध्य जर्मनी का कोरवई अब यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल हो गया है. देखते हैं इस ऐतिहासिक जगह की कुछ खूबसूरत तस्वीरें.
नदी किनारे
फ्रांसीसी धर्मगुरुओं ने कोरवई का मठ वेसर नदी के किनारे साल 822 में तैयार किया. 14 साल बाद पेरिस से सेंट वीटुस के अंतिम अवशेष यहां लाए गए. जल्दी ही यह जगह तीर्थ के तौर पर मशहूर होने लगी और मध्ययुगीन यूरोप में यह प्रमुख धर्मस्थलों में गिनी जाने लगी.
संरक्षित शहर
यह प्लेट मठ के बाहर लगा है और बताता है कि शहर किस तरह चर्च के इर्द गिर्द तैयार किया गया. 12वीं सदी में वह शहर नष्ट हो गया. बाद में पुरातत्ववेत्ताओं ने इसके अवशेष निकाले, जो धरती के नीचे संरक्षित थे. यह लिपिबद्ध तख्त मध्ययुगीन विश्व के सबसे पुराने अवशेषों में गिना जाता है.
सबसे पुराना वेस्टवर्क
विश्व धरोहर बनने में यह हिस्सा भी काम आया. रोमन काल में चर्चों के पश्चिमी हिस्से के प्रवेशद्वार को वेस्टवर्क कहा जाता था और यह नौवीं सदी का वेस्टवर्क है, जो दुनिया का सबसे पुराना है. इसके ऊपर के हिस्से को 16वीं सदी में जोड़ा गया.
मेहराबों का हॉल
निचले तल पर कई मेहराब बने हैं. खंबे काफी मजबूत हैं, जिन पर ऊपरी तल का भार टिका है. ऊपर में प्रमुख कमरे हैं. इसकी वास्तुशिल्प आज भी लोगों को आकर्षित करती है.
शाही गलियारा
ऊपरी तल पर लंबे खूबसूरत गलियारे दिखते हैं. जर्मन राजाओं और शहंशाहों की कभी इसी जगह पर ताजपोशी हुआ करती थी. यहां से वे चर्च के हर हिस्से को देख सकते थे. यह मठ मिशनरी गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था.
शानदार दीवारें
इस हिस्से को देख कर पता लग सकता है कि उस जमाने में किस तरह दीवार पर कलाकारी की जाती थी. पेंटिंग काफी बारीक हैं, जिसमें ग्रीक पौराणिक कथाओं के आधार पर तस्वीरें बनीं हैं.
चर्च का कायापलट
लगभग 30 साल चले युद्ध में कारोलिनजियन चर्च बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. सिर्फ वेस्टवर्क बच गया. 1667 में इसकी जगह नई इमारत को तैयार किया गया.
किले का विहंगम दृश्य
उस 30 साल वाले युद्ध में कोरवई की कई और इमारतें भी तबाह हुईं. 1671 में मठ को दोबारा तैयार किया गया. बाद में यहां का रुतबा धीरे धीरे लौटने लगा. उन्नीसवीं सदी में राटीबोर के ड्यूक परिवार ने इस किले को अपने कब्जे में लिया और यह परिवार आज भी यहां रहता है.
किले की लाइब्रेरी
कोरवई में मध्ययुग की कई ऐतिहासिक पांडुलिपियां थीं लेकिन कोई सुरक्षित नहीं रह सका. आधुनिक लाइब्रेरी 19वीं सदी में शुरू की गई और इसमें करीब 75,000 किताबें हैं. जर्मन कवि ऑगुस्ट हॉफमन फॉन फालेर्सलेबन भी यहां के लाइब्रेरियन रह चुके हैं. उनकी कृतियां भी यहां हैं.
जर्मनों का गीत
ऑगुस्ट हॉफमन फॉन फालेर्सलेबन करीब 14 साल तक इस किले में रहे. उन्हें बाद में यहीं के चर्च में दफन किया गया. उन्हें "डस लीड डेयर डॉयचेन" गाने के लिए खास तौर पर याद किया जाता है. इसका तीसरा पैरा अब जर्मनी का राष्ट्र गान है.
विश्व ऐतिहासिक धरोहर
हर साल एक लाख से ज्यादा सैलानी यहां आते हैं. अब विश्व धरोहर बनने के बाद उनकी संख्या बढ़ सकती है.