कैरिबियन क्रिकेट में कार्नेवाल का मौसम
१० मई २०१०तीन साल पहले हुए वर्ल्ड कप के बाद कहा जाने लगा था कि वेस्ट इंडीज़ में क्रिकेट का माहौल अब कभी लौटकर नहीं आएगा. आज फिर वहां तुरही बज रही है, कैरिबियन अंदाज़ में तेज़ आवाज़ में फ़ैन्स बहस कर रहे हैं, बोतलें खुल रही हैं, मस्ती हो रही है.
2007 में हुए वन डे विश्वकप के दौरान स्टेडियम खाली नज़र आते थे. नियमों की भरमार थी, टिकट महंगे थे. लेकिन इस बार आयोजकों ने इसका ख़्याल रखा है कि फ़ैन्स से कितनी मांग की जा सकती है.भारत और वेस्ट इंडीज़ का मैच देखने आए बार्बाडोस के युवक केरविन बेकल्स का कहना है कि इस बार शंख लेकर स्टेडियम में आया जा सकता है, बजाया जा सकता है. उसका पीठबस्ता स्नैक्स और ड्रिंक्स से भरा हुआ था. चीज़ें बेहतर हो रही हैं - उसका कहना था.
और आस्ट्रेलिया के फ़ैन पीटर मलग्रोव का कहना था कि शोरगुल का तो कोई जवाब ही नहीं है. उसे अचरज हुआ कि यहां स्टेडियम में कुछ भी साथ लाया जा सकता है. और मेलबोर्न में? वहां तो कपड़े उतारकर तलाशी ली जाती है कि आप क्या-क्या साथ लाए हैं. ठीक है, कपड़े उतारकर शायद नहीं. लेकिन स्टेडियमों में आज हर कहीं काफ़ी कड़ाई बरती जाती है. ताकि फ़ैन्स हुड़दंग न कर सकें. साथ ही, आतंकवाद का ज़माना है.
पिछले वन डे विश्वकप के दौरान भूतपूर्व खिलाड़ियों को शिकायत थी, कि इस टूर्नामेंट के ज़रिये वेस्ट इंडीज़ में क्रिकेट को बढ़ावा देने का मौक़ा गवां दिया गया. इस बार अतीत के प्रसिद्ध तेज़ गेंदबाज़ और बार्बाडोस क्रिकेट एसोशियेशन के अध्यक्ष जोएल गार्नर कहते हैं कि विश्वकप लोगों की पहुंच के अंदर है. गार्नर का मानना है कि ट्वेंटी 20 क्रिकेट की धाक जम गई है और इसके चलते क्रिकेट के बहुतेरे नए फ़ैन्स बनेंगे.
सबसे बड़ी बात है कि घरेलू टीम बुरा नहीं खेल रही है. भारत के ख़िलाफ़ जीत और उस मैच में ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी करते हुए क्रिस गेल के 98 रन - टिकट के पांच डालर वसूल हो गए. और वेस्ट इंडीज़ अगर फ़ाइनल में हो, तो 40 डालर का टिकट भी ख़रीदा जा सकता है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: राम यादव