केरल में बन सकता है समलैंगिकों के लिए नया कानून
२९ अक्टूबर २०२०अवस्थी की उम्र 22 साल है. भारत की किसी भी सामान्य लड़की की तरह इस उम्र में उसके पास भी शादी के लिए रिश्ते आ रहे हैं. लेकिन अवस्थी को शादी नहीं करनी. उसकी मर्दों में कोई रुचि नहीं है. माता पिता को कई बार टालने के बाद आखिरकार अवस्थी ने उन्हें अपनी सच्चाई बताने का फैसला किया. उसे लगा था कि वे उसे समझेंगे लेकिन वे तो उसे इलाज कराने के लिए पहले एक नन और फिर डॉक्टर के पास ले गए.
कमाल की बात यह थी कि डॉक्टर ने भी इलाज करने का बीड़ा उठा लिया. अवस्थी पर कुछ टेस्ट किए गए और डॉक्टर ने माता पिता को आश्वासन दिया कि हार्मोन थेरेपी के जरिए वह उनकी बेटी का इलाज करेगी. अवस्थी से डॉक्टर ने कहा, "हम इस बात की जांच करेंगे कि तुम किसी पुरुष के साथ संभोग क्यों नहीं करना चाहती हो. तुम्हें यहां भर्ती होना होगा और हमें कुछ टेस्ट करने होंगे ताकि पता कर सकें कि तुम्हें क्या बीमारी है. टेस्ट के नतीजों के बिनाह पर ही कोई फैसला लिया जा सकेगा और उसके बाद काउंसलिंग सेशन भी होंगे."
कन्वर्जन थेरेपी के खिलाफ कानून
यह कहानी सिर्फ अवस्थी की नहीं है. भारत में जगह जगह लोग झाड़ फूंक करा के या फिर डॉक्टर के पास इलाज करा के अपने समलैंगिक बच्चों को "ठीक" करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन भविष्य में शायद वे ऐसा नहीं कर पाएंगे. कम से कम केरल में तो नहीं. केरल भारत का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है जहां किसी व्यक्ति के लैंगिक रुझान को बदलने की कोशिश करने को गैरकानूनी करार दिया जाएगा. किसी भी स्वास्थ्यकर्मी या धर्म गुरु द्वारा ऐसा करना अपराध माना जाएगा.
"करेक्शन थेरेपी" या "कन्वर्जन थेरेपी" के तहत कई बार समलैंगिक व्यक्तियों को तब तक मारा पीटा जाता है जब तक वह "ठीक" हो जाने का वादा ना करें. कई लोग इसे शैतान या प्रेत आत्मा का साया बताते हैं. कई मामलों में तो इसके तहत बलात्कार तक किया जाता है. संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर में इस तरह के "इलाज" के तरीकों को खत्म करने की मांग की है लेकिन अब तक सिर्फ तीन ही देशों ने ऐसा किया है. ये देश हैं ब्राजील, इक्वाडोर और माल्टा. इनके अलावा न्यूजीलैंड, कनाडा, ब्रिटेन और आयरलैंड में इस पर चर्चा चल रही है.
इलाज के नाम पर प्रताड़ना
केरल हाईकोर्ट में इसके खिलाफ एक याचिका दायर की गई है जिसे अदालत ने स्वीकार लिया है. अगले महीने से इस पर सुनवाई शुरू होगी. समलैंगिक लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था कीराला ने यह याचिका दायर की है. संस्था का कहना है कि इस साल मई में एक समलैंगिक छात्रा अंजना हरीश की खुदकुशी के बाद उन्होंने अदालत जाने का फैसला किया. अंजना ने अपनी जान लेने से पहले फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट कर के विस्तार में बताया था कि उसका "इलाज" कराने के लिए उसके घर वालों ने उसके साथ क्या क्या अत्याचार किया.
वीडियो में अंजना ने कहा कि उसे एक ईसाई मेंटल हेल्थ सेंटर में रखा गया था, जहां उसे इतनी भारी नशे की दवाएं दी जाती थी कि वह रोबोट जैसा महसूस करती थी, "मुझे कुछ 40 इंजेक्शन दिए गए... मैं मानसिक और शारीरिक रूप से टूट चुकी थी." अंजना ने बताया कि दो महीने तक चला यह "इलाज" दो अलग अलग सेंटरों में हुआ, "मुझे सबसे ज्यादा अफसोस इस बात का होता है कि मेरे अपने परिवार ने मेरे साथ ऐसा किया. जिन लोगों को मेरी रक्षा करनी थी, उन्होंने ही मुझे प्रताड़ित किया."
लॉकडाउन में बढ़े मामले
कीराला का कहना है कि मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के बाद से उनके पास मदद के लिए 1200 फोन कॉल आ चुके हैं जबकि 2019 में पूरे साल में 1500 कॉल आए थे. इनमें से ज्यादातर मामलों में लोग परिवार से परेशान हो कर आत्महत्या की बात कर रहे होते हैं. कन्वर्जन थेरेपी पर कोई आधिकारिक डाटा तो मौजूद नहीं है लेकिन कीराला का कहना है कि उसे केरल में 20 ऐसे मेन्टल हेल्थ सेंटरों की जानकारी है जहां ऐसा होता है.
अब तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने "2019 मेन्टल हेल्थ पॉलिसी" के तहत कन्वर्जन थेरेपी को "अनुचित और अवैज्ञानिक" बताया है. LGBTQ+ लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूहों का कहना है कि कन्वर्जन थेरेपी को गैरकानूनी घोषित करने से बड़ी मदद मिलेगी. लेकिन साथ ही लोगों की मानसिकता में बदलाव भी जरूरी है.
आईबी/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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