कूड़े में मिलता है ताजा खाना
१२ जुलाई २०१३प्लेट में उतना ही खाना लो जितना खा सकते हो.. बचपन से ही यह आदत सिखाई जाती है. पूरा खाना ना खाने पर शायद हर बच्चे ने मां से डांट खाई होगी. खाने को बर्बाद ना करना भारतीयों की आदत का हिस्सा है. लेकिन पश्चिमी देशों में खाने की खूब बर्बादी होती है.
जर्मनी की श्टेफी क्लॉत्स सुपर मार्केट के कचरे से अच्छा खाना ढूंढती हैं. इसलिए नहीं कि वो गरीब हैं या पैसे बचाना चाहती हैं. वह औद्योगिक देशों में चीजों को फेंक देने की आदत की विरोधी हैं. उन्हें कचरे में अक्सर अच्छा खाना मिल जाता है, "मुझे यह बात बहुत ही बुरी लगती है कि यह तर्क कैसे काम करता है. पूंजीवाद में जरूरत से कहीं ज्यादा सामान बनाया जाता है और फिर बाद में फेंक दिया जाता है. और ये फेंका जाने वाला सामान असल में ऐसे देशों में बनता हैं जहां खाने पीने की चीजों की भारी कमी है. और यहां वो कचरे में चला जाता है." श्टेफी क्लॉत्स को कचरे में सिर्फ फल सब्जियां ही नहीं बल्कि नूडल, दही और सिरियल्स भी मिल जाते हैं. बेकरी के कचरे में तो बहुत सारी ब्रेड भी होती हैं जो अभी भी खाने लायक होती है. हालांकि श्टेफी का कचरे से सामान निकालना पूरी तरह कानूनी नहीं है.
हजारों टन खाना बर्बाद
दुनिया भर में मांग से ज्यादा उत्पाद हो रहा है. हर सुपर मार्किट हर वक्त सामान से भरी रहती है. जर्मन खाद्य विक्रेता संघ के क्रिस्टियान बोएचर बताते हैं, "लोग चाहते हैं कि रैक भरी हुई हों और व्यापारी इस चाहत को पूरा करते हुए खाने पीने के सामानों की रैक्स भरते हैं. यह उपभोक्ताओं की मांग है जिसे व्यापारी पूरी करेंगे ही." मामला केवल उपभोक्ता को संतुष्ट करने का ही नहीं है, बल्कि अब तो जरूरतें पैदा की जा रही हैं. माहौल कुछ ऐसा बनाया जा रहा है कि ग्राहक सिर्फ जरूरत की चीजें ही नहीं खरीदे, बल्कि अगर वे गैरजरूरी सामान भी खरीदें तो अच्छा रहे.
बर्लिन के सहायता संगठन बर्लिनर टाफेल को भी लोगों की यह आदत पता है. यहां जरूरतमंदों को खाने का सामान दिया जाता है. सामान के उपयोग की तारीख देखकर उसे अलग किया जाता है. यहां बांटने के लिए हर साल 7,000 टन खाना और सब्जियां दुकानों और रेस्तरां से आती हैं. बर्लिनर टाफेल की कार्यकर्ता सबीने वेर्थ, "हम केवल बर्लिन में ही सवा लाख लोगों को खाद्य सामग्री देते हैं. कभी कभी इतना सामान होता है कि हम सोचते हैं, अब इसका क्या करें. लेकिन अगले ही पल में हम बांटना शुरू करते हैं. फिर सब ठीक हो जाता है."
दुकानों में से छांटा हुआ एक तिहाई सामान बर्लिनर टाफेल में आता है, जबकि बाकी फेंक दिया जाता है. फिर वहां या तो ये सड़ जाता है या श्टेफी जैसे कुछ लोग इसे ले जाते हैं, जो इस तरह की बर्बादी का कारण समझ नहीं पाते और सुपर मार्केटों के फेंके हुए अच्छे सामान को लेने के लिए कचरे के डिब्बे में उतरने से भी परहेज नहीं करते.
रिपोर्ट: मानसी गोपालकृष्णन
संपादन: ईशा भाटिया