किसान आंदोलन: मोदी ने "गलत आदमी से पंगा ले लिया"
९ फ़रवरी २०२१जिस तरह का आंदोलन इन दिनों दिल्ली की सीमा पर चल रहा है, ठीक वैसे ही आंदोलन का नेतृत्व तीन दशक पहले राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने किया था. मौजूदा किसान आंदोलन कई महीनों से चल रहा है. इस दौरान कड़ाके की सर्दी में कई प्रदर्शनकारियों की मौतें हुईं, पुलिस से टकराव हुआ, इंटरनेट बंद किया गया और किसानों के कुछ धड़े आंदोलन से अलग भी हुए. लेकिन 51 साल के राकेश टिकैत अपने रुख पर कायम हैं. एक वीडियो में उन्हें आंखों में आंसुओं के साथ यह कहते हुए सुना जा सकता है, "अगर ये कानून वापस नहीं लिए गए तो राकेश टिकैत आत्महत्या कर लेगा."
उनके इस वीडियो ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया. किसान आंदोलन के समर्थकों में एक नए उत्साह का संचार हुआ. वीडियो गाजीपुर बॉर्डर पर बना था जिसमें टिकैत कह रहे हैं कि वे इस जगह को खाली नहीं करेंगे. सभा में उनके भाषण के बाद अगले दिन हजारों लोग अपने ट्रैक्टर और ट्रॉली लेकर धरना स्थल पर पहुंच गए.
आंसुओं का असर
वीडियो देखने के बाद उत्तर प्रदेश के एक किसान गिरिराज सिंह भी गाजीपुर बॉर्डर के लिए निकले. लेकिन वह सड़कों पर खड़े किए गए अवरोधों और रास्ते बंद किए जाने से घंटों तक जूझते रहे. वह कहते हैं, "उस दिन टिकैत नहीं, बल्कि सब रोए थे." हरियाणा से आए एक किसान कुलदीप त्यागी कहते हैं, "यह आंदोलन का फिर जन्म होने जैसा था."
नवंबर से किसान दिल्ली के बाहरी इलाकों में धरने पर बैठे हैं. कई दौर की वार्ताओं के बावजूद सरकार उन्हें नहीं मना पाई है. स्थिति इतनी गंभीर है कि इसे 2014 में सत्ता आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ा संकट बताया जा रहा है. किसानों का कहना है कि वे कानूनों को वापस लिए जाने तक डटे रहेंगे. नए कानूनों के तहत किसान मुक्त बाजार में अपनी फसल बेच पाएंगे, जबकि किसान सरकार की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी चाहते हैं. किसानों का कहना है कि नए कानून उन्हें बड़ी बड़ी कंपनियों का मोहताज बना देंगे. लेकिन सरकार का कहना है कि नए कानूनों से कृषि के क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा और इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी. भारत में दो तिहाई लोग किसी ना किसी तरह खेती बाड़ी के काम में ही लगे हैं.
किसानों का आंदोलन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियां बटोर रहा है. पॉप सुपरस्टार रिहाना और जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग ने किसानों के समर्थन में ट्वीट किए हैं, जिसका मोदी समर्थकों ने तीखा विरोध किया है. कई अभिनेताओं और खिलाड़ियों ने इसे भारत के अंदरूनी मामलों में दखल बताया.
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उम्मीदों का भार
राकेश टिकैत अचानक इस आंदोलन का चेहरा बन गए हैं. ठीक वैसे ही जैसे 1988 में उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत बने थे. उस वक्त वह पांच लाख किसानों को लेकर दिल्ली पहुंचे थे और गन्ने की कीमतें बढ़ाने की मांग के साथ सरकारी इमारतों के सामने धरने पर बैठ गए थे.
अब राकेश टिकैत जहां धरने पर बैठे हैं, वहां उनके पिता के बहुत सारे पोस्टर लगे हैं. वह कहते हैं कि उनके परिवार से बहुत उम्मीदें हैं, खास कर उत्तर प्रदेश के किसानों को, "मैं उनकी उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश करूंगा. जिस काम के लिए मैं यहां आया हूं, उसे पूरा करके रहूंगा."
बहुत से लोग राकेश टिकैत के साथ सेल्फी लेते हैं और उन्हें अपने गांव जमा चंदा लाकर देते हैं. पत्रकार और विश्लेषक अजॉय बोस कहते हैं कि टिकैत ने जिस तरह किसानों में उत्साह भरा है, वह सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है. सरकार को लगा था कि 26 जनवरी को होने वाली हिंसा के साथ आंदोलन खत्म हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस हिंसा में सैकडों लोग घायल हुए थे.
टिकैत के बारे में बोस कहते हैं, "उन्हें खारिज कर पाना मुश्किल है. वह मुख्यधारा के नेता हैं जिन्हें आप राष्ट्र विरोधी नहीं कह सकते. वह सिख भी नहीं हैं तो आपने उन्हें खालिस्तानी भी नहीं कह सकते." टिकैत कहते हैं कि प्रदर्शन अभी महीनों तक चल सकता है, भले उन्हें पानी की सप्लाई रोक दी जाए या फिर उन्हें कैंप को कंटीली तारों से घेर दिया जाए.
हरियाणा से आए 69 वर्षीय किसान हरिंदर राणा कहते हैं कि मोदी ने "गलत आदमी से पंगा ले लिया. वह (टिकैत) ऐसे ही नहीं जाने देंगे."
एके/आईबी (एएफपी)
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