कालेधन पर सख्त हुआ सुप्रीम कोर्ट
२९ अक्टूबर २०१४इस बंद लिफाफे में जेनेवा के एचएसबीसी बैंक में मौजूद खातों की जानकारी है. हालांकि इस सूची पर भी विवाद है क्योंकि माना जा रहा है कि यह बैंक के एक कर्मचारी ने चोरी कर फ्रांस सरकार को दी और वहीं से भारत सरकार तक पहुंची. ऐसे में बैंकों में खाता रखने वालों की निजता और भारत की अंतरराष्ट्रीय नीतियों पर भी चर्चा शुरू हो गयी है. इसके अलावा बीजेपी और कांग्रेस के भी बहस चल रही है कि कालाधन मामले में जांच शुरू करवाने का श्रेय किसे जाना चाहिए.
एक दिन पहले चीफ जस्टिस एचएल दत्तु ने सरकार को फटकारते हुए कहा है, "आप विदेश में बैंक अकाउंट रखने वाले लोगों को बचाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?" जस्टिस दत्तु ने कहा कि सरकार को अदालत के आदेश में बदलाव की मांग नहीं करनी चाहिए, "हम (पहले से निर्धारित) आदेश को छूएंगे भी नहीं और एक शब्द तक नहीं बदलेंगे."
सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अपील की थी कि केवल अवैध अकाउंट रखने वालों के ही नाम जारी किए जाएं. अदालत ने इस अपील को खारिज करते हुए कहा है कि सरकार का काम केवल पूरी सूची उपलब्ध कराना है, खाते अवैध हैं या नहीं इसकी जांच सीबीआई और अन्य एजेंसियां करेंगी. चीफ जस्टिस ने यहां तक कहा कि सरकार को खुद किसी तरह की जांच करने की जरूरत नहीं है क्योंकि अगर सरकार ने इसमें दखल दिया तो जांच आजीवन पूरी नहीं हो सकेगी, "आप कुछ ना करें. आप केवल हमें जानकारी दें और जांच के आदेश हम देंगे."
सरकारी वकील की दलील थी कि इस तरह से लोगों के खातों के बारे में जानकारी देना उनकी निजता का हनन होगा. इसके जवाब में अदालत ने कहा, "आपको लोगों में रुचि लेने की कोई जरूरत नहीं है. वह स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम का काम है." आधे घंटे की सुनवाई के बाद अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार के पास 500 नामों वाली सूची है. इनमें स्विट्जरलैंड के अलावा जर्मनी में खाते रखने वालों के भी नाम हैं. अदालत ने कहा कि सरकार विदेशों से मिले एक दो या चार नाम नहीं, बल्कि पूरी की पूरी सूची अदालत के सामने पेश करे.
जर्मनी में वित्त मंत्रालय में 50 देशों के प्रतिनिधि विदेशियों के खातों की जानकारी के आदान प्रदान पर एक समझौता तय करने के लिए बैठक कर रहे हैं. उधर भारत सरकार की दलील है कि जर्मनी के साथ हुए दोहरे कराधान संधि की वजह से वह खाताधारियों का नाम नहीं बता सकती.