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काला धन रखने वालों को कानूनी नोटिस

५ फ़रवरी २०११

सरकार ने कहा है कि विदेशी बैंकों में काला धन रखने वाले 17 लोगों को उसने नोटिस भेजे हैं और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू हो गई है. सरकार ने नाम सार्वजनिक करने से इनकार किया. वैसे एक मैगजीन नामों का खुलासा कर चुकी है.

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तस्वीर: AP

एक दिन पहले ही भारतीय मीडिया की रिपोर्ट में काला धन रखने वाले 15 नाम सामने आए हैं जिनमें कुछ लोगों के अलावा ट्रस्ट भी शामिल हैं. इन लोगों पर आरोप है कि स्विट्जरलैंड के पड़ोसी देश लिष्टेनश्टाइन के बैंक में इन्होंने करोड़ो रुपये काले धन के रूप में जमा किए. वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा, "हमें कुछ नामों के बारे में जानकारी मिली है और 17 लोगों को नोटिस भेज दिए गए हैं. कानूनी कार्रवाई शुरू हो गई है."

Der indische Finanzminister Pranab Mukherjee
तस्वीर: UNI

मुखर्जी ने फिर दोहराया कि जिन लोगों ने विदेशी बैंकों में धन जमा कर रखा है उनके नाम सार्वजनिक करना संभव नहीं है. "सरकार अपनी ओर से ये नाम नहीं बता सकती क्योंकि अन्य देशों के साथ हमारी संधि है कि हम इन लोगों के खिलाफ मिली जानकारी का इस्तेमाल सिर्फ टैक्स के लिए ही करेंगे. हम ये नाम अदालत में जारी कर सकते हैं जब वहां इस केस पर सुनवाई होगी."

ये वहीं नाम है जिन्हें जर्मन सरकार ने भारत को सौंपा. जर्मन सरकार ने लिष्टेनश्टाइन के एलजीटी बैंक में खाता रखने वाले 1,400 लोगों के बारे में जानकारी पैसे देकर हासिल की और फिर उन देशों के साथ उसे साझा करने की पेशकश की जिनके नागरिकों के उस बैंक में खाते हैं. भारत सरकार जर्मनी से इस बारे में जानकारी मिलने के बावजूद उसे सार्वजनिक करने से बच रही है और इसके लिए जर्मनी के साथ गोपनीयता संधि का हवाला दे रही है. हालांकि ये नाम सुप्रीम कोर्ट में सील लिफाफे में जमा हैं.

काले धन का मुद्दा भारत में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है और विपक्षी पार्टियां सरकार पर दबाव बना रही हैं कि सरकार इन नामों को देश के सामने रखे. कोर्ट भी कह चुकी है कि यह सीधे सीधे देश की संपत्ति की लूट खसोट का मामला है और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. जनवरी महीने में प्रणब मुखर्जी ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर इस मुद्दे पर सरकार का रुख साफ करते हुए बताया कि काले धन के मुद्दे पर सरकार ने बहुसूत्री रणनीति पर काम करना शुरू किया है लेकिन कई देशों की सरकारों के साथ उसकी संधि की शर्तों की वजह से नाम सार्वजनिक करना संभव नहीं है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए कुमार

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