काम नहीं तो तनख्वाह भी नहीं
संसद का पटल प्रस्तावों, बहसों और कानून निर्माण की जगह है. मगर कई बार कानूननिर्माताओं का यही सदन टूटे माइक्रोफोन, टूटी मेजों और टूटी हड्डियों तक का गवाह बनता है. देखिए भारत के सांसदों पर जनता का कितना धन खर्च होता है.
नो वर्क, नो पे
देश की नीतियां तय करने वाले भारत के सांसदों ने अपनी खुद की तनख्वाह तय करने में कोई कंजूसी नहीं दिखाई. आज की तारीख में उनका वेतन देश की औसत आय का करीब 68 गुना है. बहुत से लोग चाहते हैं कि जिन पर इतना खर्च हो रहा है वे जनता के हित में काम भी करें, वरना काट ली जाए तनख्वाह.
कई गुना संपत्ति का फॉर्मूला?
आंकड़े दिखाते हैं कि ऐसे 304 भारतीय सांसद जो 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद फिर 2009 में फिर चुनावी मैदान में थे, केवल एक टर्म में ही उनकी औसत संपत्ति में करीब 300 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई. ऐसा कैसे संभव हुआ, नहीं कह सकते.
मनपसंद सैलरी तय करने का हक
27 अगस्त 2010 को सांसदों ने अपनी तनख्वाह को तीन गुना बढ़ाने का निर्णय लिया. बेसिक पे 16,000 से 50,000 रूपए तक लाई गई. इसके अलावा संसदीय क्षेत्र और दफ्तर के खर्चों के लिए मिलने वाली राशि को दोगुना कर दोनों को 40,000 तय किया गया. यानि हर सांसद को महीने के न्यूनतम 1.3 लाख तो तय हैं.
ऊपर से टैक्स-फ्री है आय!
तनख्वाह के ऊपर आयकर की मार से वेतनभोगी आम लोगों के हाथ में और कम पैसे आते हैं. लेकिन सांसदों का वेतन टैक्स-फ्री होता है और साथ में पेट्रोल का खर्च, टेलीफोन बिल और घर का किराया भी नहीं देना. घर के फर्नीचर, बिजली, पानी यहां तक कि कपड़े धुलवाने का खर्च भी राज्य उठाता है.
आम आदमी जैसे कोई खर्चे नहीं
आमतौर पर यात्रा के खर्चे महीने के बजट को हिला देते हैं. मगर सांसद देश में कहीं भी फर्स्ट क्लास में रेल यात्रा कर सकते हैं और साथ ही उन्हें हर साल 34 मुफ्त हवाई टिकट मिलने की भी सुविधा है. साथ ही सांसदों के पति या पत्नी के लिए भी संसद सत्र के दौरान साल में 8 बार मुफ्त हवाई टिकट मिल सकता है.
संसद सत्र में 'एक्स्ट्रा' आय
जितने दिन संसद का सत्र चलता है उतने दिनों का सांसदों को 1,000 रूपए का अतिरिक्त दैनिक भत्ता भी मिलता है. इसके अलावा प्रत्येक सांसद को हर साल अपने संसदीय क्षेत्र में अपनी पसंद के किसी विकास प्रोजेक्ट में कुल 5 करोड़ रूपए खर्च करने का अधिकार है.
बाकी देशों में ऐसा नहीं होता
देश भर में हुई आचोलना के बाद 2010 में वेतनवृद्ध पर चर्चा में कई सांसदों ने यह प्रस्ताव रखा कि आगे से वेतन के मुद्दे पर फैसला किसी स्वतंत्र संस्था को सौंपा जाए. फ्रांस और जापान में एमपी का वेतन देश में सबसे ऊंचे पदों पर कार्यरत नौकरशाहों के हिसाब से तय किया जाता है. जर्मनी में बेसिक लॉ का अनुच्छेद 48 (3) कहता है कि बुंडेसटाग के सदस्यों का वेतन उनके स्वतंत्रता से जीने के लिए पर्याप्त होना चाहिए.
बिना वेतन या भत्ते वाले सांसद
स्विट्जरलैंड में तो सांसदों को कोई वेतन या भत्ता ही नहीं मिलता. वे साल भर कहीं काम करते हैं और जिन दिनों संसद का सत्र चल रहा होता है, केवल उतने दिनों के लिए उनकी कंपनी या संस्था उन्हें बिना तनख्वाह काटे छुट्टी देती है.
ऊपरी कमाई पर रोक
मेक्सिको में सांसदों को खूब ज्यादा वेतन मिलता है लेकिन शर्त है कि वे किसी और पेशे या व्यापार से पैसा नहीं कमा सकते. वहीं अमेरिकी संसद के सदस्यों के लिए नियम है कि वे सदन से मिलने वाली तय सैलरी के 15 फीसदी से अधिक राशि किसी बाहरी स्रोत से नहीं कमा सकते. भारत में कई सांसद कई लाभ वाले पदों पर काम करते हैं और कमाई पर भी कोई रोक नहीं है.
ब्रिटिश मॉडल बने मॉडल?
यूके में विधि के अनुसार एक रिव्यू बॉडी होती है जो प्रधानमंत्री को सांसदों, जजों, रक्षा अधिकारियों जैसे वरिष्ठ पदों के वेतन और पेंशन पर सलाह देती है. यह एक स्वतंत्र इकाई है जिसमें कोई भी सांसद शामिल नहीं होता. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी सांसदों के लिए भी एक वेतन आयोग की सिफारिश कर चुके हैं.