काबर झील में पानी ही नहीं बचेगा तो परिंदे कहां से आयेंगे
२६ मई २०२२बिहार की राजधानी पटना से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेगूसराय जिले जयमंगला गढ़ में करीब पंद्रह हजार एकड़ में फैली है काबर झील. भौगोलिक शब्दावली के अनुसार यह एक प्रकार की गोखुर झील है, जिसका निर्माण कालांतर में बूढ़ी गंडक नदी के धारा बदले जाने से हुआ है. मौसम के मुताबिक बरसात के दिनों में इसका क्षेत्रफल बढ़ जाता है और गर्मी के दिनों में यह झील महज दो-चार हजार एकड़ में सिमट जाती है. जैविक विविधता वाले इस झील में हजारों तरह के जलीय जीव और पौधे हैं.
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अक्टूबर माह से सर्दियों की शुरुआत होते ही यहां करीब 60 तरह के प्रवासी तथा 108 देसी प्रजाति के पक्षी अपना बसेरा बनाते हैं. 20 अक्टूबर, 1989 में बिहार सरकार ने काबर झील को पक्षी अभयारण्य घोषित किया. यहां आने वाले पक्षियों की गणना तो नहीं की गई है, लेकिन अनुमान के आधार पर इनकी संख्या लाखों में बताई गई है. हालांकि, अब यह संख्या हर साल कम होती जा रही है.
2020 में फिर शामिल किया गया रामसर साइट में
विश्व के विभिन्न वेटलैंड्स के संरक्षण के लिए ईरान के छोटे से शहर रामसर में 1971 में एक कन्वेंशन हुआ था, जिसे रामसर कन्वेंशन कहा जाता है. इस मौके पर गठित अंतरराष्ट्रीय संस्था में उस समय 171 देश शामिल थे. भारत 1981 में इसका सदस्य बना. 2002 के पहले तक काबर झील भी रामसर साइट में शामिल था.
रामसर स्थल के रूप में अधिसूचित करने के बाद ये जगहें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो जाती हैं. वहां पर्यटन का विकास होता है और इसके साथ उसके संरक्षण का काम भी होता है. हालांकि, मानक के अनुसार विकसित नहीं होने तथा कई प्रकार की विसंगतियों के कारण काबर झील को 2002 में रामसर साइट से हटा दिया गया था. 18 साल बाद 2020 में इसे फिर से शामिल किया गया.
दुनिया भर में करीब 2400 ऐसे वेटलैंड हैं, जिनमें 47 भारत में हैं. इनमें काबर झील भी एक है, जो भरतपुर अभयारण्य से तीन गुणा बड़ा है. हालांकि, इससे पहले केंद्र सरकार ने एक्वेटिक इकोसिस्टम संरक्षण की केंद्रीय योजना के तहत देश की एक सौ झीलों में काबर झील को शामिल किया था. इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से 2019 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 32 लाख रुपये से अधिक की राशि भी दी थी. इस पैसे से जलीय व वन्य जीवों के कल्याण के साथ-साथ वेटलैंड प्रबंधन व जल संरक्षण आदि का काम किया जाना था, किंतु इस संबंध में उपलब्धि शून्य रही. अब रामसर साइट में शामिल होने के बाद चर्चा है कि इसके विकास व संरक्षण के लिए लगभग एक करोड़ रुपये की व्यवस्था की जा रही है.
2019 में पूरी तरह सूख गई थी झील
पर्यावरण विशेषज्ञ अखिलेश सिंह कहते हैं, ‘‘इकोसिस्टम में वेटलैंड को सुरक्षित रखने का प्रयास दुनिया भर में किया जा रहा है. इसकी वजह साफ है, जलवायु संरक्षण तथा इकोसिस्टम का संतुलन बनाए रखने में इनका अहम योगदान होता है. ये वेटलैंड बाढ़, सूखा समेत कई आपदाओं से तो बचाते ही हैं, भोजन व आजीविका भी देते हैं. इसके साथ ही किसी भी अन्य पारिस्थितिकीय तंत्र से अधिक कार्बन को वातावरण से अवशोषित करते हैं.''
दुर्भाग्यपूर्ण है कि काबर झील में पानी की कमी होने लगी है. 2019 के जून माह में तो इस झील में एक बूंद पानी भी नहीं था. काबर नेचर क्लब के संस्थापक व पत्रकार महेश भारती कहते हैं, ‘‘काबर झील के आसपास के इलाके में पहले जमीन के नीचे 15-20 फीट में पानी मिल जाता था, किंतु अब भू-जलस्तर काफी नीचे चला गया है. अब 60-70 फीट पर पानी मिलता है. इकोसिस्टम में आए बदलाव के बुरे प्रभाव का यह एक छोटा सा उदाहरण है.''
क्यों सूख रही है झील
जानकार बताते हैं कि बरसों पहले झील के जो जल स्त्रोत थे, वे गाद भर जाने के कारण पानी पहुंचाने में कामयाब नहीं रहे. फिर बाढ़ के कारण मिट्टी का जमाव यानी सिल्टेशन होने से भी इसकी गहराई कम हो रही है. नतीजतन, झील की जल संग्रहण क्षमता लगातार कम होती जा रही है. इसके साथ-साथ ही यहां यूट्रोफिकेशन भी हो रहा है यानी किसान खेती के दौरान जिस फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करते हैं, वे बारिश के पानी के साथ बहकर जमा होते रहते हैं. इस वजह से वहां जरूरत से अधिक मात्रा में मिनरल समेत अन्य पोषक तत्व जमा हो जाते हैं. जिस कारण वहां खर-पतवार के साथ शैवालों और कवक की बहुतायत हो जाती है. इसके नतीजे में उस इकोसिस्टम के पौधों के लिए ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और वे सूख जाते हैं. यहां की जलीय जैविक व वनस्पति की विविधता पर भी इसका असर पड़ा है. इनकी संख्या में लगातार कमी आती जा रही है और पक्षियों का आकर्षण घट रहा है.
70 के दशक में झील की शोहरत थी
पत्रकार महेश भारती बताते हैं, ‘‘इस पक्षी विहार के बारे में सुनकर 70 के दशक में प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सलीम अली यहां आए थे. शोध करने वालों को यहां साइबेरिया, मंगोलिया, यूक्रेन, तिब्बत व चीन के कुछ हिस्से व ईरान के उत्तरी भाग से आए पक्षी देखने को मिलते थे.''
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जब उन देशों में बर्फ गिरने लगती है तो वे यहां का रूख करते हैं और फिर यहां गर्मी शुरू होते लौट जाते हैं. तकरीबन तीन-चार माह तक वे यहां प्रवास करते हैं. पक्षी विहार घोषित किए जाने के बाद से आजतक करीब 30-32 वर्षों में इसका अपेक्षित विकास नहीं हो सका. भारती कहते हैं, ‘‘वोट बैंक की राजनीति के कारण भी इसे ज्यों का त्यों छोड़ दिया गया है. कोई भी पार्टी आगे नहीं आना चाहती है. तीन-साढ़े तीन लाख वोट का सवाल है.''
विकास की राह में क्या समस्या है
काबर झील की जमीन किसानों की है. गर्मी के दिनों में जब पानी सूख जाता है तो बड़े भूभाग पर किसान खेती करते हैं. 2013 में तत्कालीन जिलाधिकारी मनोज कुमार ने यहां की जमीन की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी. उन्हें जमीन का मुआवजा भी नहीं मिला है. इससे किसान खासे परेशान हैं. आसपास की करीब पांच लाख की आबादी इस वेटलैंड पर निर्भर है.
बरसात के दिनों में या जब भी पानी जमा रहता है, यहां बड़ी संख्या में मछुआरे मछलियों का शिकार करते हैं. मछली पकड़ने वाले रतन सहनी सदा कहते हैं, ‘‘यहां हम पुश्तों से मछली मारते आ रहे हैं. अगर झील की साफ-सफाई हो जाए तो यह हमारे लिए भी फायदेमंद है. जब यहां हर तरह की व्यवस्था होगी, पहले की तरह पक्षी आने लगेंगे तो लोगों का आना-जाना बढ़ जाएगा. इससे सभी को फायदा होगा.''
सरकारी उपेक्षा के बीच इन दोनों के हितों का टकराव काबर झील के विकास में बड़ी बाधा है. किसान अपनी जमीन का मुआवजा चाहते हैं. पत्रकार महेश भारती कहते हैं, ‘‘किसानों और मछुआरों के हित को ध्यान में रखकर काबर झील के विकास और संरक्षण की योजना बने. राज्य सरकार और जिला प्रशासन को आपसी तालमेल से काम करने की जरूरत है.''
रीजनल चीफ कंजरवेटर ऑफ फारेस्ट अभय कुमार द्विवेदी का कहना है, ‘‘किसानों और मछुआरों के हितों का टकराव हमारे लिए समस्या है. इनके मुद्दों को देखने की जरूरत है. इसके लिए जिलाधिकारी से बात हुई है. हम चाहते हैं कि जमीन को नोटिफाई कर लें, ताकि अपनी योजना के अनुसार वहां काम कर सकें. रामसर साइट में उतने ही एरिया को नोटिफाई किया गया है, जितने में हमेशा पानी रहता है.'' पक्षियों का शिकार भी यहां की एक बड़ी समस्या है. स्थानीय लोगों का कहना है कि वन विभाग के कर्मचारियों व पुलिस से शिकारियों की साठगांठ है, जिस वजह से शिकारी बेदाग बच निकलते हैं.
धार्मिक पर्यटन का भी है केंद्र
काबर झील के बीच में लगभग 181 बीघे जमीन का एक बहुत बड़ा गढ़ है. इसके एक किनारे पर जयमंगला देवी का मंदिर है जो भारत के 51 शक्तिपीठों में एक माना जाता है. यह वाममार्गियों के लिए साधना का केंद्र है. यह एक सिद्ध पीठ भी है और शक्तिपीठ भी. इसे मौर्यकालीन माना जाता है. कहा जाता है कि विष्णुगुप्त और चाणक्य ने अपनी रचनाओं में भी इस गढ़ का जिक्र किया है. यह धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकता है.
अभय कुमार द्विवेदी कहते हैं, ‘‘रामसर साइट घोषित होने के बाद एक एजेंसी को नए सिरे से मैनेजमेंट प्लान तैयार करने को दिया गया है. इको टूरिज्म के लिहाज से अगल-बगल के गांवों के लोगों को शामिल कर सोशियो-इकोनॉमिक नजरिये से पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना है.''
वहीं, बेगूसराय के पत्रकार राजीव रंजन कहते हैं, ‘‘जरूरत है दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम करने की. गाद निकाल कर बूढ़ी गंडक नदी से झील को जोड़ तक जल स्रोत उपलब्ध कराने की व मनमाने तरीके से चल रही आर्थिक क्रियाओं को रोकने की, अन्यथा काबर झील को इतिहास का अध्याय बनने से कोई रोक नहीं सकता.''