कश्मीर में अमेरिकी दखल के लिए हस्ताक्षर अभियान
२४ अक्टूबर २०१०अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक ने पत्रकारों से कहा, "अमेरिका लंबे समय से कहता आया है कि भारत पाकिस्तान को कश्मीर मसला आपस में सुलझा लेना चाहिए. जब दोनों पक्षों को एक दूसरे पर भरोसा ही नहीं तो उनके बीच कोई नतीजा निकलने वाली बातचीत कैसे मुमकिन है?" मीरवाइज ने यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले 63 सालों में कई समझौते हुए लेकिन कश्मीर का मसला अनसुलझा ही रहा, अब इसमें तीसरे पक्ष की दखलंदाजी जरूरी हो गई है.
हुर्रियत के उदारवादी और कट्टरपंथी दोनों धड़ों ने अमेरिका से इस मामले में दखल देने की मांग की है. 10 साल पहले जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आए थे तब भी उनसे यह मांग की गई थी. भारतीय अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में छपे एक बयान में हुर्रियत के प्रवक्ता शाहिद उल इस्लाम ने कहा है, "हमने अमेरिका से हमेशा इस मामले में दखल देने को कहा क्योंकि वह इस मुद्दे पर अपनी चिंता जाहिर करता रहा है. अमेरिका दुनिया की बड़ी शक्ति है और लोकतंत्र और लोगों के अधिकारों की कद्र करता है."
भारत प्रशासित कश्मीर में पिछले दो दशकों से चली आ रही हिंसा में अब तक 45 हजार लोगों की जानें गई हैं. इनमें उग्रवादी, नागरिक और सुरक्षाकर्मी शामिल हैं. इस साल जून से शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों में अब तक 110 लोगों की जान जा चुकी है. केंद्र सरकार ने शांति बहाल करने के लिए तीन सदस्यों वाली एक कमेटी गठित की है. कमेटी के सदस्य शनिवार को जम्मू कश्मीर पहुंचे. ये लोग यहां नेताओं, छात्रों, आम नागरिकों और जेल में बंद उग्रवादियों से मुलाकात करेंगे.
वरिष्ठ पत्रकार और कमेटी के सदस्य दिलीप पडगांवकर ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा, "हमने जेल में बंद उग्रवादियों से मुलाकात की है और उनसे कश्मीर के राजनीतिक हल के लिए रोडमैप देने को कहा है." पडगांवकर ने यह भी कहा कि कमेटी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगी कि इस मामले पर कोई आम सहमति बनाई जा सके ताकि कश्मीर मामले का स्थाई हल निकल सके. पडगांवकर ने कहा कि इस मामले में पाकिस्तान को साथ लिए बगैर कोई स्थायी हल नहीं ढूंढा जा सकता.
भारत हमेशा से इस मामले में किसी तीसरे पक्ष की दखलंदाजी का विरोध करता रहा है जबकि पाकिस्तान इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र या किसी तीसरे देश से मध्यस्थता की मांग करता है.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः वी कुमार