कमला हैरिस के गांव में उनकी जीत के लिए दुआ
४ नवम्बर २०२०तमिलनाडु के तुलासेंद्रापुरम गांव के मंदिर में स्थानीय लोगों ने डेमोक्रैटिक पार्टी की जीत के लिए विशेष पूजा अर्चना की है. गांव में कमला हैरिस के बड़े-बड़े बैनर लगे हैं और उनकी जीत के लिए शुभकामनाएं दी गई हैं. ग्राम पंचायत की सदस्य 34 वर्षीय उमादेवी का कहना है कि वह महिला राजनेता होने के नाते हैरिस से जुड़ाव महसूस करती हैं.
वह कहती हैं, "वह हमारे गांव की बेटी हैं." उमादेवी का पांच साल का एक बेटा है और वह सिलाई-कढ़ाई कर घर चलाने में अपने पति का हाथ बंटाती हैं, जो पेशे से ड्राइवर हैं. कमला हैरिस के बारे में उमादेवी कहती हैं, "यह उनके लिए मुश्किल और चुनौतीपूर्ण रहा होगा. लेकिन जब भी कुछ नया करना हो तो ऐसा ही होता है. मैं भी अपनी नई भूमिका के लिए उत्साहित और थोड़ी घबराई हुई हूं."
यह गांव चेन्नई से दक्षिण में 320 किलोमीटर दूर स्थित है. यहीं पर एक सदी से ज्यादा समय पहले कमला हैरिस के नाना का जन्म हुआ था. हैरिस का जन्म अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया में हुआ. उनकी मां भारतीय मूल की थीं जबकि पिता जमैकन मूल के. उनके माता-पिता पढ़ाई के लिए अमेरिका पहुंचे थे.
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हैरिस की उपलब्धियां
कमला हैरिस जब पांच साल की थीं तो वह तुलासेंद्रपुरम गई थीं. वह चेन्नई के बीच पर अपने नाना के साथ बिताए गए समय की बात करती हैं. कैलिफोर्निया की पूर्व अटॉर्नी जनरल 55 वर्षीय हैरिस पहली अश्वेत और पहली भारतीय मूल की महिला हैं जिन्हें अमेरिका में मुख्यधारा की किसी बड़ी पार्टी की तरफ से उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है. अब तक इस पद के लिए उम्मीदवार बनने वाली वह चौथी महिला हैं.
हैरिस से प्रेरित उमादेवी पिछले साल दिसंबर में ग्राम पंचायत की सदस्य चुनी गई हैं. उनका कहना है कि उनकी प्राथमिकता गांव में सड़क बनवाना है. उनके गांव में 200 किसान परिवार रहते हैं. वह कहती हैं, "हमारे यहां की सड़क बहुत खराब है. उसे बनवाना चाहते हैं ताकि हमारे गांव में बेहतर अवसर आएं."
कानून में स्तानक हैरिस की तरह उमादेवी को पढ़ने का मौका नहीं मिला. वह 15 साल की थीं जब मां के कहने पर उनकी पढ़ाई रुकवा दी गई. जनसंख्या के आंकड़े बताते हैं कि भारत में लगभग 60 प्रतिशत लड़कियां शिक्षित हैं जबकि कुछ राज्यों में यह दर 90 प्रतिशत है.
तमिलनाडु के जिस थिरुवारुर जिले में तुलासेंद्रापुरम गांव स्थित है, वहां साक्षरता दर 82 प्रतिशत है. जिला शिक्षा अधिकारियों का कहना है कि सभी लड़कियां का नाम स्कूल में लिखाया गया है.
शिक्षा की अहमियत
उमादेवी कहती हैं कि अगर अगली पीढ़ी की लड़कियों को हैरिस की तरह नाम कमाना है तो उनके लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है. वह कहती हैं, "आज हमारी सब लड़कियां पढ़ती हैं. इसका मतलब है कि वे माध्यमिक स्कूल में जाती हैं जो गांव से कई किलोमीटर दूर है. कॉलेज भी दूर है लेकिन लड़कियां वहां भी जाती हैं और स्नातक की डिग्री ले रही हैं." लेकिन उन्हें इस बात से शिकायत है कि युवाओं को आसपास अच्छा काम नहीं मिलता.
पास के गांव पैनगानाडु के माध्यमिक विद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाने वाले एस तमिलसेलवन कहते हैं कि वह हैरिस के चुनाव प्रचार और उनके भाषणों पर लगातार नजर रखे हुए थे और अपने छात्रों को प्रेरित करने के लिए वे उनका इस्तेमाल करेंगे. वह बताते हैं, "मेरे छात्रों को उनके बारे में पता है. लेकिन मैं चाहता हूं कि उनमें से कुछ उनके जैसे बनें. मेरे छात्रों में बहुत से ऐसे हैं जो अपने परिवार में से पहली बार स्कूल में आकर पढ़ रहे हैं और अपनी महत्वाकांक्षाओं को आकार देने में उन्हें बहुत मुश्किलें आती हैं."
हेमलता राजा भी तुलासेंद्रापुरम पंचायत की सदस्य हैं. उमादेवी की तरह वह भी खुद को गृहिणी बताती हैं. वह महिलाओं के लिए निर्धारित 33 प्रतिशत आरक्षण के तहत पंचायत के लिए चुनी गई थीं. औपचारिक शिक्षा ना होने के बावजूद ये दोनों महिलाएं उसी जज्बे से लैस दिखती हैं, जो सामाजिक न्याय के लिए हैरिस में है.
36 वर्षीय राजा को भी 13 साल की उम्र में स्कूल छोड़ देना पड़ा क्योंकि उनके माता पिता को यह पसंद नहीं था कि पढ़ाई के लिए उनकी बेटी गांव से बाहर जाए. राजा कहती हैं, "मैं अपने आसपास के लोगों की परेशानियों को दूर करना चाहती हूं. पता नहीं कर पाऊंगी या नहीं, लेकिन कोशिश करती हूं. जब हम देखते हैं कि हमारे गांव से किसी ना किसी तरह नाता रखने वाली कोई महिला अमेरिका में इतने बड़े बड़े काम कर रही है तो इससे हमें भी थोड़ी सी प्रेरणा मिलती है."
एके/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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