कतर का बायकॉट कर सऊदी अरब ने तीन साल में क्या पाया
५ जून २०२०कतर का बहिष्कार करने में सऊदी अरब का साथ देने वाले देशों में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र शामिल हैं. इस फैसले ने अरब देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग को अधर में डाल दिया और यह राजनयिक संकट अब तक जारी है. जल्द समाधान के आसार अब भी नहीं दिखते.
5 जून 2017 को कतर विरोधी गठजोड़ ने कतर के साथ अपने व्यापार और सभी राजनयिक संपर्क रोक दिए. इतना ही नहीं, कतर से जुड़ने वाले जमीन, समुद्र और हवाई मार्ग भी अवरुद्ध कर दिए गए. इस गठजोड़ ने कतर पर आंतकवाद को समर्थन देने के आरोप लगाए क्योंकि वह राजनीतिक इस्लामिक आंदोलन मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता है.
सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस गठजोड़ ने कहा कि अगर कतर चाहता है कि उस पर लगाई गई पाबंदियों को हटाया जाए तो इसके लिए उसे 13 शर्तों को पूरा करना होगा.
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इन शर्तों में मुस्लिम ब्रदरहुड से रिश्ते तोड़ना सबसे अहम था. सऊदी अरब और उसके सहयोगी खासकर मिस्र, इस सामाजिक क्रांतिकारी आंदोलन को एक आतंकवादी संगठन मानते हैं और अपने यहां निरंकुश शासन व्यवस्था के लिए खतरा समझते हैं.
शर्तों में कतर की सरकारी मीडिया कंपनी अल जजीरा को बंद करना भी शामिल था जिसने 2011 में कई अरब देशों में तानाशाही सरकारों को उखाड़ने वाले अरब स्प्रिंग प्रदर्शनों की व्यापक कवरेज की थी. कतर से यह भी कहा गया कि वह ईरान के साथ अपने संबंधों को सीमित करते हुए उससे सैन्य और खुफिया सहयोग को बंद करे.
इन शर्तों के जवाब में कतर ने किसी भी आतंकवादी संगठन के साथ सहयोग से इनकार किया और तुर्की व ईरान पर निर्भरता बढ़ा दी. इन दोनों देशों ने कतर को होने वाला निर्यात बढ़ा दिया. ईरान ने तो कतर को अपने वायुक्षेत्र में आने की अनुमति दे दी.
सऊदी क्राउन प्रिंस का स्टाइल
जब कतर को अलग थलग किया, उसी महीने मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस नियुक्त किए. वह अपनी छाप छोड़ने के लिए कोई बड़ा फैसला करने के लिए उतावले थे. मध्य पूर्व मामलों को कवर करने वाली पत्रिका जेनिथ के संपादक डैनियल गेरलाख कहते हैं, "उस वक्त मोहम्मद बिन सलमान अपने देश की विदेश नीति में ठोस संकल्प की कमी पाते थे. उन्हें कभी महसूस ही नहीं हुआ कि सावधानी पूर्वक धीरे धीरे आगे बढ़ने की कूटनीति के अपने फायदे होते हैं. उसके बाद से वे एक ठोस रुख दिखाना चाहते थे."
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बाद में यमन युद्ध के मामले में भी उनका यही रवैया देखने को मिला. गेरलाख कहते हैं, "कतर में, मोहम्मद बिन सलमान विदेश नीति के मुताबिक नहीं बल्कि घरेलू और सुरक्षा नीति के मुताबिक चल रहे हैं."
कुछ प्रगति
दो साल से ज्यादा के बहिष्कार के बाद पिछले साल अक्टूबर में सऊदी अरब और कतर के वार्ताकारों की बैठक हुई ताकि संकट को हल किया जा सके, लेकिन वार्ता शुरुआत से ही बहुत मुश्किल रही.
दिसंबर में कतर के विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए इंटरव्यू में कहा कि "कुछ प्रगति हुई" लेकिन उनका देश "ऐसी कोई रियायत नहीं देगा जिससे उसकी संप्रभुता प्रभावित हो और उसकी घरेलू और विदेश नीति में कोई हस्तक्षेप हो."
फरवरी में फिर बैठक हुई. रॉयटर्स ने अमान सूत्रों के हवाले से लिखा कि कतर ने पूरे क्षेत्र में आवाजाही की आजादी मांगी है, लेकिन सऊदी अरब ने इससे पहले कतर से अपनी विदेश नीति में बदलाव करने को कहा. एक राजनयिक ने कहा, "यही कतर के लिए मुश्किल है क्योंकि विदेश नीति को लेकर बहुत सारे मतभेद हैं"
सहयोग के फायदे
हाल के दिनों में तेल के दाम धड़ाम से गिरकर गर्त में पहुंच गए. पूरा मध्य पूर्व क्षेत्र तेल और गैस से मिलने वाले राजस्व पर बहुत ज्यादा निर्भर है. ऐसे में अपने संकट को हल करना उनके सबसे ज्यादा अहम है.
इसके अलावा कोरोना महामारी ने भी आपसी सहयोग की जरूरत को स्पष्ट कर दिया. गेरलाख कहते हैं, "ऐसे दौर में प्रतिद्वंद्विताओं की कोई जगह नहीं बचती."
जर्मनी की माइंत्स यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर रिसर्च ऑन द अरब वर्ल्ड में प्रोफेसर अल हामारनेह कहते हैं कि इस विवाद ने विश्व मंच पर एक समूह के तौर पर इस क्षेत्र के देशों की ताकत को भी कम किया है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "सबसे गंभीर नुकसान एक साझा राजनीतिक और आर्थिक पहचान को हुआ है. कहां तो खाड़ी देशों के व्यापक एकीकरण पर चर्चा हो रही थी. लेकिन अब सब खत्म हो गया है. क्षेत्र के साझा संगठन खाड़ी सहयोग परिषद के प्रभाव में भी बहुत कमी आई है. हर किसी को नुकसान हुआ है."
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मतभेद भुलाने का अवसर
अमेरिका में आने वाले राष्ट्रपति चुनाव और विदेश नीति में हालिया बदलाव संकट के समाधान की संभावाएं दिखाते हैं.
गेरलाख कहते हैं, "अगले छह महीने में नए अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव होगा. सऊदी अरब के लिए यह समय बहुत अहम है. ट्रंप की नीति सऊदी अरब को लेकर खासी दोस्ताना रही है, लेकिन नवंबर के बाद इसमें बदलाव हो सकता है."
अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल के मुताबिक राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पहले ही सऊदी अरब और संयु्क्त अरब अमीरात पर दबाव डाल रहे हैं कि वे अपने देशों में कतर एयरलाइंस पर लगे प्रतिबंध को हटाएं ताकि ईरानी वायुक्षेत्र पर उसकी निर्भरता को खत्म किया जा सके.
रिपोर्ट: क्निप केर्स्टेन, इमाने मेलूक/एके
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