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समाजयूरोप

औरतों और मर्दों की दोस्तियों का मिजाज अलग अलग क्यों

क्लेयर रोठ
१९ अगस्त २०२२

औरतें और आदमी अपनी मित्रताओं को अलग अलग ढंग से निभाते और संवारते हैं. ये अंतर प्राथमिक स्कूल में शुरू हो जाते हैं और कॉलेज और शादी के दिनों में भी जारी रहते हैं.

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Symbolbild Freundschaft
तस्वीर: Svetlana/Zoonar/picture alliance

आपने अपनी जिंदगी में ये बात नोट की होगीः पुरुषों और स्त्रियों का अपने दोस्तों के साथ अलग-अलग रिश्ता होता है. औरतें जहां अक्सर ज्यादा भावनाप्रधान या निजी विषयों पर बात करने के लिए तैयार और बेताब रहती हैं, वही पुरुषों की दोस्तियां कम बातचीत और ज्यादा हरकतों में बीतती हैं- जैसे कि खेल देखना या वीडियो गेम खेलना. 

50 साल से अधिक समय से मित्रता का अध्ययन करने वाले ऑक्सफोर्ड के मनोविज्ञानी रॉबिन डनबर ने भी इस बात को नोटिस किया है. डनबर का शोध दिखाता है कि बहुत शुरुआती उम्र से लड़कियों और लड़कों में दोस्तियों का अंतर साफ हो जाता है- लड़कियों की दोस्तियां आमतौर पर संवाद आधारित और भावनाप्रधान होती हैं, जबकि लड़कों की दोस्तियां ज्यादा कैजुअल यानी लापरवाह होती है.

डनबर कहते हैं, "लड़के इस बात पर ज्यादा निर्भर नहीं रहते हैं कि तुम कौन हो बल्कि उनका ध्यान इस बात पर रहता है कि तुम मेरे पाले में हो या नहीं. वो पाला या क्लब क्या है, कैसे बनता है, इससे फर्क नहीं पड़ता...वे शुक्रवार रात एक साथ पीने-खाने के लिए निकले हुए लड़के हो सकते हैं या फुटबाल खेलने के लिए जुटे लड़के."

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डनबर कहते हैं कि उन्होंने अपनी टीम के साथ, फेसबुक में हजारों लोगों की तस्वीरों देख कर जो अध्ययन किए हैं, वे इस बात की तस्दीक करते हैं. महिलाएं अपने फेसबुक प्रोफाइल में अपनी तस्वीरें डालती हैं या करीबी दोस्त के साथ वाली तस्वीर अक्सर वे दो लोग होते हैं. पुरुषों की प्रोफाइल तस्वीरों में वे अक्सर दूसरे पुरुषों के एक समूह के साथ दिखेंगे या खेल या हाइकिंग जैसी किसी गतिविधि वाली तस्वीर लगाएंगे. उनका, अपने साथ अपने सबसे अच्छे दोस्त या अपनी पत्नी की तस्वीर लगाने की संभावना कम है.

डनबर कहते हैं कि ये सोशल मीडिया पर्यवेक्षण दिखाता है कि वास्तव में दोस्तियों को क्या चीज संचालित कर रही होती है. उसके असर प्राइमरी स्कूलों में मौजूद होते हैं, जहां शोधकर्ताओ ने पाया कि शुरू में लड़कियां, लड़कों के साथ धींगामश्ती करना चाहती हैं लेकिन जब ये धींगामश्ती कुछ ज्यादा ही रूखी और तीखी होने लगती हैं तो लड़कियां उससे हट जाती हैं और आपस में बात करने लगती हैं.

लड़कों के लिये दोस्ती में खेल या दूसरी गतिविधियां अहम होती है लड़कियों में बातचीत
लड़कों के लिये दोस्ती में खेल या दूसरी गतिविधियां अहम होती है लड़कियों में बातचीततस्वीर: Soeren Stache/dpa/picture alliance

दोस्ती निभाने की कला

डनबर और दूसरे शोधकर्ताओं ने पुरुष और स्त्री मित्रताओं में एक बड़ा अंतर देखा है उन्हें निभाने को लेकर. जब पुरुष देश में यहां से वहां जाते हैं, तो उनका अपने दोस्तों से संपर्क अक्सर छूट जाता है. जबक औरतें अपने कॉलेज के दिनों के दोस्तों के साथ संपर्क बनाए रखती हैं.

डनबर कहते हैं, अक्सर जब नौकरी या बच्चों की वजह से जिंदगी व्यस्त हो जाती है, तो औरतें ही होती हैं जो दोस्तियां बरकरार रखने के लिए ज्यादा जद्दोजहद करती हैं. इस तरह जब वे प्रौढ़ावस्था में पहुंचती है तो एक पुरुष का एक स्त्री के सामाजिक सर्किल में ही खप जाने की संभावना ज्यादा होती है. यानी उसकी दोस्ती अपनी पत्नी की सहेलियों के पतियों से हो जाती है या इसका उलट होता है. पुरुषों के लिए एक घनिष्ठ सपोर्ट सिस्टम की किल्लत तब समस्या बन जाती है जब वे बूढ़े होते हैं और संभवतः अपनी पत्नियों से ज्यादा जी रहे होते हैं.

सामाजिक शोधों में "अकेलेपन की मौतों" का उल्लेख और अध्ययन भलीभांति दर्ज हैं. ये किसी के साथ भी संभव है चाहे पुरुष हो या स्त्री. आशय उन मौतों से है जब शादीशुदा दंपत्ति में से एक व्यक्ति की मौत अपने जीवनसाथी की मौत के कुछ ही दिन बाद हो जाती है. शोध दिखाते हैं कि इन मौतों की मुख्य वजह होता है सामाजिक अलगाव और अकेलापन. 2005 में ऑस्ट्रेलिया में उम्रदराज होने से जुड़े एक अध्ययन के मुताबिक दोस्त होने और एक सामाजिक नेटवर्क बना रहने से बूढ़े लोगों में मृत्यु के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है.  

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डनबर ने इस बात का भी उल्लेख किया कि संभवतः गर्भावस्था की कड़ी मेहनत और बच्चों की देखभाल के शुरुआती वर्षों की बदौलत ही औरतें वयस्क उम्र में रिश्ते बनाए रखने के लिए ज्यादा तत्पर रहती हैं. हेटरोसेक्सुअल संबंध होने की स्थिति में, स्त्रियों को, जैसे स्तनपान कैसे कराएं की सलाह, जीवनसाथी से नहीं मिल सकती. लिहाजा नयी परिस्थितियों में खुद को ढालने के लिए उन्हें दूसरी महिलाओं पर निर्भर रहना होता है.                     

मर्द अपनी मित्रों के पतियों से दोस्ती कर लेते हैं लेकिन बीवियों के दोस्तों से बहुत कम
मर्द अपनी मित्रों के पतियों से दोस्ती कर लेते हैं लेकिन बीवियों के दोस्तों से बहुत कमतस्वीर: Channel Partners/Zoonar/picture alliance

ये अनुभव अक्सर एक मां और बेटी के बीच प्रगाढ़ रिश्ता निर्मित कर देता है. डनबर कहते हैं कि यूरोप में अध्ययन के प्रतिभागियों की फोन की बातचीत के ब्यौरों का इस्तेमाल किया गया था. इसमें दिखाया गया कि अपने जीवनकाल के दौरान पति-पत्नी विशेष रूप से एक दूसरे को ही सबसे ज्यादा कॉल करते हैं, लेकिन  एक महिला के लिए ये स्थिति, प्रौढ़ावस्था में आते ही और बाद में अचानक बदल जाती है. इस बिंदु पर, वो सबसे ज्यादा जिससे बात करती है वो उसकी बेटी होती है.          

महिला मित्रताओं का उद्भव

अमेरिका में बोस्टन कॉलेज में प्रोफेसर अना मार्तीनेस अलेमान ने 1990 के दशक के मध्य में महिला दोस्तियों पर अध्ययन किए थे. उन्होंने पाया कि इन नजदीकी मित्रताओं ने महिलाओं के सामाजिकीकरण में एक रचनात्मक भूमिका निभाई थी, उनकी अस्मिता के निर्माण और दुनिया में अपनी जगह को लेकर उनकी बौद्धिक समझ को प्रभावित किया था.

दस साल बाद उन्होंने उन्हीं महिलाओं को लेकर फिर से अध्ययन किया, ये देखने के लिए कि उनकी सामाजिक दुनिया किस तरह की हो चुकी थीः क्या उन्होंने अपनी दोस्तियां कायम रखी थीं?

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बहुत सारी महिलाओं ने दोस्ती कायम रखी थी और जैसे जैसे वे उम्रदराज हुईं, उनकी मित्रता भी दरअसल प्रगाढ़ होती गई. कॉलेज खत्म करने के बाद के दिनों में, जब कुछ महिलाएं नये शहरों का रुख करने का अकेलापन झेल रही थी, पार्टनरों और बच्चों के अलावा गर्भावस्था और कभीकभार पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में करियर बनाने के लिए जूझ रही थी, तो ऐसे में उनकी दोस्तियां "उच्च प्रगाढ़ता” या करीबी हासिल कर लेती थी.

मार्तीनेस अलेमान ने लिखा, "भौगोलिक रूप से अलग होने के बावजूद महिलाओं की दोस्तों के आपसी संवाद ज्यादा विस्तृत, व्यापक और तीक्ष्ण पाए गए हैं. कई महिलाएं अपनी कॉलेज की सहेलियों से अच्छी-खासी दूरियों पर रह रही हैं, तो ये भी उल्लेखनीय है कि उनकी बातचीत अब सुनियोजित और एक बड़ी हद तक इरादतन होती हैं."

कॉलेज में लड़कियां जो दोस्ती बनाती हैं वो उनके जीवन में लंबे समय तक कायम रहती है
कॉलेज में लड़कियां जो दोस्ती बनाती हैं वो उनके जीवन में लंबे समय तक कायम रहती हैतस्वीर: Ute Grabowsky/photothek/imago images

प्रवृत्ति और मित्रताएं

बच्चों की परवरिश भी एक भूमिका निभाती है, हालांकि इस पहलू पर स्वभाव बनाम तालीम के सवाल को खोल कर देखना कमोबेश नामुमकिन है. डनबर कहते हैं कि अवचेतन के लिहाज से हो सकता है कि लैंगिक परवरिश, लड़कों और लड़कियों में अलग अलग ढंग से दोस्ती की ओर प्रवृत्त होने में छोटी सी भूमिका निभाती हो, लेकिन इतने भर से पूरी बात खुल जाती है- वो ऐसा नहीं मानते. यही सामाजिक व्यवहार, वानरों में भी देखा जा सकता है. वो कहते हैं- जब युवा नर वानर खेलते हैं, तो वे धींगामश्ती या धक्कामुक्की करते हैं जबकि युवा मादा वानर डंडियां उठाकर शिशुओं की तरह हिलती डुलती हैं. ठीक जैसे बच्चियां अपनी गुड़िया से खेलती हैं.       

इंसानी रिश्तों मे परिवार भी निश्चित रूप से भूमिका निभा सकता है. उदाहरण के लिएः अमेरिकी जर्नल ऑफ प्राइमेटोलॉजी में 2019 में प्रकाशित एक शोध ये दिखाता है कि किशोरवय में लड़की जितना अपनी मां के साथ संपर्क में रहती है, उतना ही उसकी अपनी दोस्तियां भी प्रगाढ़ होने की संभावना बढ़ जाती है.

शोध-पत्र में मित्रता के लिए प्रवृत्त होने वाली परिकल्पना को भी रेखांकित किया गया है. ये सिद्धांत इस बारे में है कि कैसे लोग- पुरुषों की अपेक्षा ज्यादातर औरतें- तनाव पर प्रतिक्रिया करती हैं.

मनोविश्लेशकों ने मोटे तौर पर उन दो तरीकों की शिनाख्त की है जिनके जरिए लोग तनाव पर प्रतिक्रिया करते हैं- लड़ते हैं या भाग उठते हैं. टेंड और बीफ्रेंड का सिद्धांत, लोगों का तनाव से निपटने के एक तीसरे तरीके के बारे में रोशनी डालता है– और वो है दूसरे लोगों से जुड़ना, उनसे संपर्क बनाना.

यूसीएलए की मनोविज्ञानी शैली टेलर ने इस सिद्धांत को गढ़ा है. ये शब्दावली उस सिद्धांत पर आधारित है कि लोग (आमतौर पर महिलाएं) जब तनावग्रस्त होते हैं तो वे अपने से उम्र में छोटे लोगों या बच्चों की ओर उनका झुकाव होने लगता है और दूसरे लोगों से भी जुड़ना चाहते हैं. वो कहती हैं, सामाजिक अलगाव और संबंधों से जुड़ी समस्याओं की प्रतिक्रिया में इन संपर्कों को बनाने का आवेग या धक्का, मस्तिष्क में ऑक्सीटोसिन की कमी से पैदा होता है.

संकट के समय औरतों का रवैया पुरुषों की तुलना में अलग होता है
संकट के समय औरतों का रवैया पुरुषों की तुलना में अलग होता हैतस्वीर: Álvaro Laforet/Hm Hospitales/dpa/picture-alliance

2011 में अपने एक पर्चे में इस सिद्धांत को पेश करते हुए टेलर ने लिखा था कि इससे एक वजह समझने में मदद मिल सकती है कि औरतों में क्यों पुरुषों की अपेक्षा लंबे समय तक जीने की संभावना होती है. पुरुष अक्सर तनाव के प्रतिक्रियास्वरूप या तो उससे जूझते हैं या हार मान लेते हैं. इसकी वजह से वे नशे की लत या दिल की बीमारियों के शिकार हो सकते हैं, बात बाजदफा आत्महत्या तक चली जाती है. दूसरी तरफ ये तथ्य कि महिलाएं जरूरत पड़ने पर अपने दोस्तों की ओर उन्मुख होती हैं, इसका उनकी सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

इन बदलावों की वजह क्या है?

अपने छोटों के पास जाने को प्रवृत्त होने और लोगों से मित्रता बनाने से जुड़ी परिकल्पना को, औरतों में मातृत्व से जुड़े सहजबोध से भी समझा जा सकता है. हालांकि यहइस बात को नहीं समझा पाती कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं आखिर क्यों बातचीत और भावनात्मक असहायता में ज्यादा दिलचस्पी दिखाती हैं और क्यों महिला मित्रताएं आमतौर पर खेल जैसी गतिविधियों के इर्दगिर्द नहीं केंद्रित होती हैं.

हालांकि स्त्री और पुरुष दोस्तियों की प्रकृति बिल्कुल अलग अलग होती है और सामाजिक शोध में ये बात बार बार रेखांकित भी की जा चुकी है. लेकिन उसके कारणों को समझना कठिन है. इसके लिए एक सदियों पुराने, बड़े विवादित और राजनीतिक रूप से पेचीदा सवाल का जवाब चाहिए होगाः क्या स्त्री और पुरुष मस्तिष्क में अंतर होता है? आखिर लैंगिक अंतर किस हद तक प्रकृति पर टिके होते हैं, और किस हद तक परवरिश पर?

कुछ अध्ययनों में इस सवाल का जवाब देने की कोशिश भी की गई है. लेकिन लगता है कि जैसे ही एक अध्ययन प्रकाशित होता है, उस पर सवाल उठाती हुई समीक्षा पीछे पीछे आ जाती है. इसीलिए ये बात अभी भी अस्पष्ट  है कि स्त्री और पुरुष दोस्तियां इतनी अलग अलग क्यों होती हैं.