आकाश में जादुई खेल
१० अप्रैल २०१५आसमान में अटखेलियां करती रोशनी, ऐसा लगता है जैसे इसके पीछे किसी अंजानी ताकत का हाथ हो. पहली बार में समझ ही नहीं आता ये है क्या. फिर लोग कयास लगाते हैं कि ये गुब्बारे हैं, या फिर क्रेन पर लगे बल्ब. फिर वो एक आकार में घूमते हैं, एक दूसरे के ऊपर से उड़ने लगते हैं. उसके बाद सोच जबाव दे जाती है. तकनीक जादू का रूप ले लेती है.
क्वाड्रोकॉप्टरों का खेल
अंधेरे में लोगों को नजर नहीं आता कि रोशनी दरअसल क्वाड्रोकॉप्टरों का खेल है. ये छोटे छोटे ड्रोन हैं जो बिना किसी शोर के हवा में उड़ते हैं. और रोशनी का स्रोत हैं ये एलईडी. लिंत्स के आर्स इलेक्ट्रॉनिका सेंटर की फ्यूचर लैब में में यह तकनीक विकसित की गई है. जर्मनी की एक कंपनी ड्रोन मुहैया कराती है. रोशनी फिट करने का काम यहां लिंत्स में होता है.
आर्स इलेक्ट्रॉनिका फ्यूचर लैब के निदेशक हॉर्स्ट होएर्टनर कहते हैं, "हम हर तरह की कलर स्कीम तैयार कर सकते हैं. पहले हम इसकी टेस्टिंग करते हैं. सबसे पहले रोशनी सफेद होती है और फिर आरजीबी यानि रेड, ग्रीन और ब्लू. इन तीन रंगों को मिला कर हम किसी भी तरह का रंग बना सकते हैं."
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस
उड़ान से पहले ड्रोनों को एक कतार में रखा जाता है. कोरियोग्राफी कंप्यूटर से होती है. टीम ने खुद यह सॉफ्टवेयर बनाया है. वे इस बात का ख्याल रखते हैं कि ड्रोन हवा में एक दूसरे से न टकराएं. जीपीएस की मदद से कंप्यूटर को हर वक्त ड्रोनों की पोज़िशन पता रहती है. जमीन पर रह कर कंप्यूटर हवा में उड़ रहे हर ड्रोन से बात करता है. वो उन्हें सही पोज़िशन के बारे में बताता है, निर्देश देता है कि अब कहां जाना है. उस वक्त हम बस बाहर से इसे देखते हैं. यह पूरा सिस्टम खुद ही कंप्यूटर के साथ मिल कर काम करने लगता है और खुद को प्रोग्राम कर लेता है.
सबसे बड़ी चुनौती है हवा में इस फॉर्म को बनाए रखना. हवा की रफ्तार एक बड़ी दिक्कत है. और एक भी ड्रोन के खराब होने का मतलब है 35 हजार यूरो का नुकसान. हालांकि अब तक ऐसा नहीं हुआ है. 2012 में हुआ पहला शो भी सफल रहा था. लिंत्सर क्लांग-वॉल्के नाम के शो के लिए 49 ड्रोन इस्तेमाल किए गए थे. आज तक इस रिकॉर्ड को कोई तोड़ नहीं पाया है.
दुनिया भर में मांग
इस शो ने लोगों का मन ऐसे जीता कि जल्द ही दुनिया भर से फरमाइशें आने लगीं. 2014 में यूरोप की सांस्कृतिक राजधानी घोषित हुए स्वीडिश शहर उमेआ ने भी रोशनी के इस खेल का मजा लिया. हॉर्स्ट होएर्टनर इस खेल को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं, "रोशनी के जितने ज्यादा बिंदु आसमान में नजर आएंगे, नजारा उतना ही खूबसूरत होगा, आपके पास ज्यादा वैरायटी होगी. फिलहाल हमने जो सिस्टम बनाया है, उसमें सौ, दो सौ पीस लग सकते हैं और यही हमारा लक्ष्य भी है, बल्कि मैं तो चाहता हूं कि इस से भी ज्यादा लगा सकूं."
रोशनी का ये अद्भुत नज़ारा यूरोप के बाद अब अमेरिका में लोगों को मंत्रमुग्ध करने निकल पड़ा है. दिमाग और तकनीक का जादुई तालमेल.
आंट्ये बिंडर/आईबी