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ऐसे तंत्र से कैसे मिटेगी भूख

२८ अगस्त २०१३

भारत में 230 अरब रुपये के नए खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम में दो तिहाई आबादी को खाना मुहैया करने की योजना है. इसकी कामयाबी सरकारी तंत्र, परिवहन और हजारों लाखों दुकानदारों पर निर्भर करेगी.

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तस्वीर: picture-alliance/AP

ब्रजकिशोर 52 साल के हैं और दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में लगभग 30 साल से राशन की दुकान चला रहे हैं. गोदाम में छत तक बोरियों की टाल है, जिन पर सरकारी मुहर लगी है. इनमें चावल, गेहूं और चीनी भरा है. ये सब सरकारी स्कीम का अनाज है. कीमत सिर्फ दो रुपया प्रति किलो.

ब्रजकिशोर की दुकान में काम करने वाले शख्स ने जमीन पर कई बोरियों को खोल कर फैला रखा है. ग्राहकों को सौदा देने के लिए उसे इधर उधर जाना पड़ता है. इस सिलसिले में वह बीच बीच में गंदे जूतों से वहां फैले अनाज को रौंद देता है. भारत में जो नया कानून बन रहा है, उससे 80 करोड़ लोगों को महीने में पांच किलो सस्ता अनाज देने की योजना है. इसी तरह की दुकानों से.

Indien Reisanbau
भारत में खेती के विशाल इलाकेतस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP/Getty Images

खुली धांधली

भारत में इस वक्त भी दुनिया की सबसे बड़ी जन वितरण प्रणाली चल रही है. लेकिन ग्राहकों की शिकायत है कि दुकानदार उनसे धोखा करते हैं. उनके राशन की कालाबाजारी कर दी जाती है. उधर, ब्रजकिशोर जैसों की अलग ही शिकायत है, "हम लोग मुनाफा नहीं कमाते, महीने में मुश्किल से 8,000 से 10,000 रुपये मिलते हैं. हम पर यह काम थोपा जाता है." उनका कहना है कि इसी तरह के फैसलों की वजह से भ्रष्टाचार बढ़ता है.

भारत सरकार का दावा है कि मौजूदा नीति में खाद्य सुरक्षा बिल को जोड़ दिया जाएगा, तो भारत में कोई भी भूखा नहीं रहेगा, कोई भी कुपोषित नहीं होगा. पिछले साल के एक सर्वे के मुताबिक भारत में करीब 42 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. हालांकि भारत में भुखमरी नहीं है, यानी किसी की भूख से मौत नहीं होती. दुबले पतले कुपोषित भारतीय बच्चों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आने वाली तस्वीरें सरकार के लिए शर्मिंदगी जरूर बनती हैं.

कालाबाजारी की मार

पैंतीस साल की संतोष के चार बच्चे हैं उसके पति के पास कोई काम नहीं. संतोष का कहना है कि उसके हिस्से का 10 किलो अनाज कालाबाजारी की भेंट चढ़ जाता है, "हमें 20 किलो गेहूं और पांच किलो चावल मिलता है. गेहूं में धूल भरी होती है." संतोष जैसे दूसरे लोग भी हैं, जिनका कहना है कि उनकी शिकायतें हवा में उड़ा दी जाती हैं.

ब्रजकिशोर दबे जुबान में मानते हैं कि जो सरकारी अनाज बच जाता है, महीने के आखिर में वह बाजार भाव से बेच देते हैं क्योंकि उन्हें भी तो "घर चलाना है". उनका कहना है कि 35 किलो अनाज बेचने पर उन्हें सिर्फ 12 रुपये कमीशन मिलते हैं.

Nahrungsmittel Markt in Kalkutta
अनाज का ट्रांसपोर्ट एक बड़ी समस्यातस्वीर: DW

खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि भारत का कोई भी परिवार राशन कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है और उसे किफायती रेट पर 35 किलो अनाज मिल सकता है. उनका दावा है कि नए कानून से 67 फीसदी आबादी को फायदा पहुंच सकता है, "ज्यादा लोगों तक पहुंच जरूरी है." भारत में फिलहाल 10 करोड़ परिवारों के पास गरीबी रेखा के नीचे यानी बीपीएल कार्ड है, जबकि 14 करोड़ परिवारों के पास सामान्य राशन कार्ड है.

बाल्टी में 40 छेद

नई योजना के तहत राशन देने की शर्तें बदल दी जाएंगी और परिवार की जगह प्रति व्यक्ति राशन देने की व्यवस्था होगी. भारत में पिछले दो तीन साल में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है और आम ग्राहकों का कहना है कि सामान्य खाने पीने की चीजें भी उनकी पहुंच से बाहर होती जा रही हैं.

सरकार का दावा है कि नई योजना भारत की 80 करोड़ आबादी की मदद करेगी लेकिन इसकी कामयाबी टूटे फूटे रोड और परिवहन तंत्र, मुनाफाखोरों और पांच लाख राशन की दुकानों पर निर्भर होगी. खुद भारत सरकार के योजना आयोग ने 2005 के सर्वे में पाया कि जन वितरण प्रणाली का 58 फीसदी अनाज सही लोगों तक नहीं पहुंच पाता है.

सरकार के कृषि लागत और मूल्य आयोग सीएसीपी के अशोक गुलाटी का कहना है कि जन वितरण प्रणाली "ऐसी बाल्टी है, जो भरी हुई है लेकिन जिसमें 40 छेद हैं. सबसे बड़ी चुनौती दोबारा तंत्र तैयार करने की नहीं, बल्कि इन छेदों को भरने की है."

सरकार की योजना है कि इस साल 50 लाख किलो अतिरिक्त अनाज इस प्रणाली में डाला जाएगा. नई योजना के बारे में अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रह्मण्यम का कहना है, "एक बूढ़ा शख्स बड़ी मुश्किल से ढेर सारे पत्थर ढोता हुआ आगे बढ़ रहा है. उससे कहा जाता है कि वह कुछ पत्थर और संभाल ले, जिससे उसकी मांसपेशियां मजबूत होंगी."

एजेए/एनआर (एएफपी)

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