ऐतिहासिक फोटो वाली बच्ची की दर्द भरी दास्तां
१८ अप्रैल २०१२छह दिसंबर 2011 के दिन काबुल धमाकों से थर्राया. आशूरा के मौके पर हुए आत्मघाती हमले में 70 लोग मारे गए. मृतकों में 11 साल की तराना अकबरी के कई रिश्तेदार थे. नन्हीं बच्ची खून से लथपथ घटनास्थल पर बेबसी में रोने और बिलखने के अलावा कुछ न कर सकी.
इस दौरान समाचार एजेंसी एएफपी के फोटोग्राफर मसूद हुसैनी ने उसकी तस्वीर खींची. तस्वीर को "गर्ल इन ग्रीन ड्रेस" नाम दिया गया. इस फोटो को पत्रकारिता के लिए दिया जाने वाला प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार मिला. पुरस्कार समिति ने कहा, "काबुल की भीड़ भरी दरगाह में हुए आतंकवादी हमले के बाद वह बच्ची डर के मारे रोने लगी, यह दिल तोड़ देने वाली तस्वीर है."
तराना आज भी उस दिन को याद कर रो पड़ती है. मंगलवार को एएफपी की टीम तराना से मिलने पहुंचीं. बच्ची खामोश सी रही. मेहमानों के सामने आने से कतराती रही. उसे पता ही नहीं है कि दुनिया भर के अखबारों में उसकी तस्वीर छप चुकी है. जब उसे एक अखबार दिखाया गया तो मासूम बच्ची मुस्कुरा सी पड़ी. वह बोलीं, "जब मेरे चारों ओर शव थे तो मैं जिंदा कैसे बच गई."
घर के एक कमरे को देखकर तराना अब भी रो पड़ती है. कभी उस कमरे में पूरा परिवार टीवी देखा करता था. अब वह सूना है. बीते रविवार को काबुल एक बार आतंकवादी हमलों से थर्राया. इससे तराना के मन के घाव फिर गहरे हो गए, "इन्होंने मुझे फिर से डरा दिया. मैं खुश नहीं हूं क्योंकि इससे पहले जिस दिन बम फटा उस दिन मेरा परिवार खत्म हो गया."
वह जन्नत-जहन्नुम, शरिया या आतंकवाद का राजनीतिक और महजबी मतलब नहीं समझती. सिर्फ इतना कहती है, "उन्होंने बुरी हरकत की. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था." हमले में तराना का सात साल का भाई भी मारा गया.
युद्ध बच्चों को मानसिक रूप से कैसा दृढ़ बना देता है, इसका उदाहरण तराना खुद है. अब वह लंगड़ाते हुए चलती है, पर कहती है, "मुझे उम्मीद है कि मैं जल्द ठीक हो कर स्कूल जा सकूंगी."
अच्छे वक्त का इंतजार करते हुए वह इन दिनों धूप में अपनी बहनों के साथ खेलती है. पुरस्कार जीतने वाली फोटो के पीछे तमन्ना की शक्ल में इंसानियत की हार छुपी है.
रिपोर्टः ओ सिंह/ एएफपी
संपादनः एन रंजन